सतना/पन्ना। जिले में आजादी के 75 सालों बाद भी कई गांव सड़क, बिजली और पेयजल सुविधा विहीन है। जहां के लोगों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है कि सुनकर रोंगटे खड़े हो जाये। ऐसा ही मामला पन्ना जिले के गुनौर विकासखंड और विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत विक्रमपुर के ग्राम ददोलपुर का सामने आया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार सोहद्रा आदिवासी पति प्रताप सिंह आदिवासी को प्रसव पीड़ा की वजह से अस्पताल ले जाना था पर जननी एक्सप्रेस केवल विक्रमपुर तक पहुंच पाई जहां से ददोलपुर 1 किलोमीटर दूर है और वाहन तो दूर पैदल पहुंचना भी मुश्किल होता है। महिला को दर्द बढ़ता ही जा रहा था तभी युवाओं ने साहस और सूझबूझ का परिचय देते हुए महिला को प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठा कर पांच युवकों ने 1 कि.मी. का दलदल युक्त मार्ग एवं नाला पार करवाकर विक्रमपुर पहुंचाया जहां से जननी एक्सप्रेस के माध्यम से जिला चिकित्सालय पहुंचाया गया। जहां महिला ने नवजात शिशु को जन्म दिया और रास्ते की कठिनाइयों को भूल गई, वापस जाते समय भी यही हाल हुआ फिर कुर्सी में बैठा कर विक्रमपुर से ददोलपुर तक पहुंचना पड़ा। स्थानीय युवा राहुल अहिरवार ने बताया कि यहां सड़क और पुल का निर्माण नहीं होने से बारिश के दिनों में आवागमन मुश्किल हो जाता है, नाले का जल बहाव हल्की बारिश में भी काफी तेज हो जाता है, जिसे पार करना खतरे से खाली नहीं होता, स्थानीय लोगों ने अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से अनेकों बार फरियाद की पर किसी के द्वारा ध्यान नहीं दिया गया जिससे इस आधुनिक युग में भी लोग कठिनाइयों में गुजारा कर रहे हैं।
तीन महीने गांव में कैद हो जाते हैं ग्रामीण
ग्राम पंचायत विक्रमपुर के ग्राम ददोलपुर के ग्रामीण बारिस के तीन माह गांव में कैद हो जाते है, क्योकि आवागमन का मार्ग सही नही होने के कारण वाहन गांव में नही पहुंच पाता, यदि कोई बीमार हो जाये तो उसे चारपाई के माध्यम से नाला पार कर कीचड युक्त एक किलोमीटर का मार्ग से ले जाया जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि चुनाव के समय गांव के विकास के बहुत वादे किये जाते है लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई गांव की सुध नही लेता है, सबसे ज्यादा समस्या गर्भवती महिलाओं व बच्चों को उठानी पडती है, जिन्हे वाहन उपलब्ध नही हो पाता है। वर्षो से पुल व सडक की मांग की जाती रही है लेकिन आज तक किसी ने इन मांगों पर ध्यान नही दिया। आजादी के 7 दशक बाद भी ग्रामीण नकरीय जीवन जीने को मजबूर है।