रीवा। सरकारी शराब की दुकानों पर अवैध रूप से वसूली का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। शराब की कीमत प्लेसमेंट कंपनी ने अपनी मर्जी से ही तय कर रखी है। खरीददारों को रेट बढ़ाने की बात कह कर मनमानी वसूली की जा रही है। आलम यह है कि दुकानों पर 50-100 रुपए तक ग्राहकों से वसूली की जा रही है। आबकारी नीति के अनुसार हर दुकान पर शराब की कीमत को दर्शाने वाली सूची मोटे अक्षरों में लगाना जरूरी है, मगर एक भी दुकान पर यह सूची नहीं लगी दिख रही है। शराब दुकानों पर निर्धारित कीमत से अधिक राशि वसूलने के बारे में जानकारी आबकारी विभाग के अधिकारियों को होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
जबकि अबकारी विभाग ने शराब दुकानों के खुलने के साथ ही दुकानों के बाहर रेट सूची चस्पा करने के आदेश दिए थे। हालांकि कुछ दुकानदारों ने इस नियम का पालन करने का प्रयास किया है लेकिन उनके द्वारा विभाग की नहीं, अपनी रेट सूची बैनर पोस्टर बनाकर लगाई गई है। इस सूची में भी कुछ शराबों का रेट ही नहीं दर्शाया गया है। हैरानी इस बात की है कि शहरी सहित ग्रामीण अंचल की दुकानों में अपने मन मुताबिक अलग-अलग रेट तय किए गए हैं।
इनके मुनाफे का आंकड़ा यदि इनके मुनाफे पर भी नजर डाली जाए तो मनमर्जी से दाम वसूलने के चक्कर में इनके मुनाफे का आंकड़ा भी काफी बड़ा है। इन 77 अंग्रेजी देसी-विदेशी शराब की दुकानों से प्रतिदिन 10-15 लाख रुपए से अधिक का अवैध मुनाफा होता है। जैसे किसी बीयर की कीमत से 100 से 150 रुपए प्रति बॉटल के हिसाब से मुनाफा कमाया जा रहा है, इसी प्रकार शराब में पाव में 50-100 रुपए और फुल में 200 रुपए की वसूली की जाती है। हालांकि शराब दुकान संचालकों की मानें तो देसी-विदेशी शराब मिलाकर करीब 928 ब्रांड होते हैं और इन ब्रांडों की रेट सूची दुकान पर लगा पाना मुश्किल है। इसलिए इस क्षेत्र में जो ब्रांड ज्यादा बिकते हैं, उनके रेट बताए जा रहे हैं। हालांकि उनका यह तर्क नियमों के विपरीत है।
यह है नियम: जानकारी के अनुसार जिले में अंग्रेजी देसी कंपोजिट मिलाकर शराब की 77 दुकानें संचालित हो रही हैं। आबकारी अधिनियम और नियम के तहत प्रत्येक शराब की दुकान के बाहर उस दुकान में कौन सा ब्रांड है और उसकी कीमत क्या है, उसकी जानकारी के लिए ठेके के बाहर की लिस्ट चस्पा करनी जरूरी होती है, लेकिन जिले में संचालित होने वाली शराब की दुकानों पर इस तरह के किसी भी नियम की पालना नहीं हो रही है। हद तो यह है कि शहरी दुकानों के सामने से ही होकर अधिकारी-कर्मचारी गुजरते हैं लेकिन उनका कोई ध्यान इस ओर नहीं जा रहा, या फिर सब कुछ जानकर भी वह अनजान बने हुए हैं।