रीवा। टीआरएस कॉलेज में बीते दिवस विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के कार्यक्रम में स्ववित्तीय व जनभागीदारी अतिथि विद्वानों के लिए दी गई सौगात का खूब ढि़ंढोरा पीटा गया था, आलम यह था कि विधानसभा अध्यक्ष द्वारा यह सौगात दी गई इस बात का खूब प्रचार-प्रसार किया गया व टीआरएस प्राचार्य सहित कुछ चिंहित प्रोफेसर भी इस बात को लेकर खूब वाहवाही लूट रहे थे, लेकिन अब इन सभी की पोल खुल गई है, दरअसल भरे मंच में घोषणा के बाद भी अतिथि विद्वानों का मानदेय नहीं बढ़ाया गया। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम के सामने की गई घोषणाएं फिसड्डी निकली जिससे महाविद्यालय के प्राचार्य सहित प्राध्यापकों की छवि तो खराब ही हुई, इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम पर से भी लोगो का विश्वास उठने की बात चर्चाओं में है, कहा जा रहा है कि उनके सामने कही गई बातों पर भी अमल नहीं हुआ तो अब कॉलज प्रबंधन किसका सम्मान करेगा।
क्या है मामला…
बता दें कि फरवरी के शुरुआती माह में कॉलेज में बढ़ा बदलाव हुआ था, जिसमें तत्कालीन प्राचार्य डॉ.अर्पिता अवस्थी को हटाकर डॉ.केके शर्मा को प्राचार्य बनाया गया था, प्राचार्य कुर्सी में बदलाव होते ही चर्चाएं होने लगी कि राजनीति प्रतिद्धंदता में यह बदलाव हुआ, इस पर चर्चाएं तब बढ़ गई जब विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ। कार्यक्रम में द्वारा सत्ता पक्ष के एक प्रभावशाली नेता की तरह जमकर भाषण बाजी भी हुई, अतिथि विद्वानों के वेतन बढ़ोत्तरी का मुद्दा आया तो जनभारीदारी प्रभारी डॉ.आरएन तिवारी मंच पर कूद पड़े और वेतन 2 हजार और बढ़ाने यानि 20 हजार प्रतिमाह फरवरी से देने की बात कही लेकिन अजब बात यह है कि भरे मंच के बीच हुई घोषणा के बाद भी अब तक वेतन नहीं बढ़ाया गया। अब इस बात को लेकर स्ववित्तीय व जनभागरीदारी अतिथि विद्वानों में खासा आक्रोश है।
पूर्व प्राचार्य पर था निशाना, अब खुद छिप रहें
बता दें कि अतिथि विद्वानों के मानदेय की बात आने पर जनभागीदारी प्रभारी डॉ.आरएन तिवारी ने मंच पर पूर्व प्राचार्य डॉ.अर्पिता अवस्थी पर निशाना साधते हुए कहा था कि जुलाई 2020 से अतिथि विद्वानों का मानदेय 20 हजार किए जाने का निर्णय था लेकिन तत्कालीन प्राचार्य डॉ.रामलला शुक्ला के स्थानांतरण हो जाने से ऐसा नहीं हो पाया जबकि इसके लिए पर्याप्त बजट था लेकिन पूर्व प्राचार्य डॉ.अर्पिता अवस्थी ने 20 हजार न करके 18 हजार किया। चर्चा है कि डॉ.आरएन तिवारी ने इस बात को मुद्दा बनाकर डॉ.अर्पिता अवस्थी पर खूब अरोप लगाए थे ऐसा लग रहा था कि वह ही वेतन न बढऩे पर दोषी थी लेकिन अब खुद स्ववित्तीय व जनभागरीदारी अतिथि विद्वानों से नजर छिपाते फिर रहे हैं, ऐसा अतिथि विद्वानों का कहना है। वहीं यह भी कहा जा रहा है कि तत्तकालीन प्राचार्य रामलला शुक्ला के सामने कई बार मानदेय बढ़ाने की बात को लेकर मांग की गई लेकिन उन्होंने नहीं बढ़ाया और इतना ही नहीं कुछ कटौती भी दिए जाने वेतन में की जाती रही और अब कुर्सी से हटे तो उनके शुभचिंतको ने मंच में यह कह दिया कि वह मानदेय बढ़ाने वाले थे और अब मानदेय न बढऩे से ही कही गई इन बातों का मखौल उड़ाया जा रहा है।
बजट का बता रहे आभाव
वहीं अतिथि विद्वानों की माने तो विधानसभा अध्यक्ष ने फरवरी 2020 से अतिथि विद्वानों को बढ़ा मानदेय देने की बात कही थी लेकिन घोषणा फिसड्डी निकली। अब कॉलेज प्रबंधन बजट न होने की बात कह रहा है लेकिन भरे मंच में पर्याप्त बजट होने की बात कही गई थी। अतिथि विद्वानों का कहना हैकि स्ववित्तीय पाठ्यक्रम में आए हुई कुल आय से 80 प्रतिशत अतिथि विद्वानों के भुगतान में देना है तो महाविद्यालय इस राशि को खर्च कहा करता है। उन्होंने कहा कि कॉलेज प्रबंधन अपनी कही हुई बातों पर ही पीछे हट रहा है।
राजनीति का बन गया अखाड़ा!
बता दें कि टीआरएस कॉलेज को इन दिनों का राजनीति का अखाड़ा भी कहा जाने लगा है जिसकी वजह दो सत्ताधारी नेताओं के बीच चल रही आपसी बर्चश्व की लड़ाई माना जा रहा है, चर्चाओं में कहा जा रहा है कि कम से कम इसके पूर्व सत्ताधारी नेताओं की घोषणाओं पर अमल तो हुआ भले 5 हजार का मानदेय बढ़ा था लेकिन बढ़ा तो लेकिन अब तो मात्र 2 हजार की घोषणा करने के बाद ही इस वादे को पूरा करने में पसीने छूट रहे है। स्ववित्तीय और जनभागीदारी के कुछ अतिथि विद्वान जो विधानसभा अध्यक्ष के पास मानदेय बढोत्तरी की मांग लेकर गए थे और जब घोषणा हो गई तो वह भी पूरा श्रेय ले रहे थे कि वेतन उनकी मांग के चलते बढ़ा है लेकिन अब चर्चा है कि वह भी चेहरा छिपाते फिर रहे हैं।
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