रीवा। देश की आजादी में जिले के कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का विशेष योगदान रहा है, वह देश के लिए अपने प्राणों का न्यौछावर करने के लिए भी तैयार थे व अंग्रेजो का डटकर सामना भी किया। उनके द्वारा दी गई प्रताडऩा को भी झेला लेकिन इन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में कुछ ऐसे भी थे जो देश की आजादी के लिए अंग्रेजो से डटकर लड़े लेकिन अपने ही परिवार जनों से उनको हार मिली। ऐसी ही कहानी रीवा शहर में मॉडल स्कूल के सामने रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी दंपत्ति की है, वह अब इस दुनिया में तो नहीं है लेकिन उनकी कहानी लोगो के मन में आज भी कई सवाल खड़े करती है। हम बात कर रहे है स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदिरा सिंह व उनकेे पति वीरेन्द्र सिंह की। बता दे कि स्वतंत्रता सेनानी वीरेन्द्र सिंह का निधन को बीते वर्ष हो गया था लेकिन स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदिरा सिंह भी बीते दिनों हो गया। यह बुजुर्ग दंपत्ति जीवित अवस्था में अपने बेटे पर प्रताडऩा का आरोप लगाता रहा। यह प्रताडऩा इतनी ज्यादा थी कि दोनो ने अपने अंतिम संस्कार तक के लिए बेटे से अधिकार छीन लिया और शपथ पत्र में साफ किया था कि ऐसी संतान जो माता पिता को प्रताडि़त करे उसको उनके अंतिम संस्कार का कोई अधिकार नहीं, इसलिए उनका अंतिम संस्कार उनका बेटा डा.अशोक सिंह न करे। बता दे कि अंग्रेजो का डटकर सामना करने वाले यह बुजुर्ग दंपत्ति अंतिम सांस तक अपने बेटे के खिलाफ रहे व बेटे की बुराईयों का सामना करते रहे। ऐसा नहीं है कि यह परिवारिक मामले तक ही सीमित रहा, बेटे की प्रताडऩा को लेकर उन्होंने कानूनी, प्रशासनिक व न्यायानलिय शिकायते भी की और मामले विचाराधीन रहे।
बेटी ने दी मुखाग्रि—बता दे कि इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बुजुर्ग दंपत्ति की दो औलादे थी, बेटे पर तो प्रताडऩा का आरोप रहा लेकिन उनकी बेटी डॉ.रमा सिंह से उनका काफी मोह था, वह ही उनकी देखभाल कर रहीं थी। इतना ही नहीं मौत के बाद मुखाग्रि भी उनके द्वारा ही दी गई। इंदिरा सिंह का अंतिम संस्कार प्रयागराज में किया गया। बता दे कि परिवारिक विवाद इतना बढ़ा था कि परिवार जनो ने ही इंदिरा सिंह के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का अधिकार छीनने शिकायत की थी, जिसकी जांच अब भी चल रही है, यहीं वजह भी रही कि उनके अंतिम संस्कार में प्रशासन ने किसी प्रकार की कोई सम्मान नहीं दिया गया।
बेटे ने भी किया मना—
बता दे कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंदिरा सिंह ने सपथ पत्र में तो बेटे से अंतिम संस्कार का अधिकार छीन लिया था लेकिन उनकी मौत के बाद जब बात अंतिम संस्कार की आई तो उनकी बेटी डॉ.रमा सिंह ने अपने भाई डॉ.अशोक सिंह से कहा कि वह मुखग्रि देना चाहे तो दे सकते है उन्हें कोई आपत्ति नही है भले ही उन्होंने ऐसा शपथ पत्र दिया था लेकिन बेटे ने भी अंतिम संस्कार से इंकार कर दिया।