रीवा। जिले के महिला एवं बाल विकास विभाग के परियोजना अधिकारी और सुपरवाइजर काम बंद कर घरों में कैद हो गए है, विभागीय कार्यो से उन्होंने बिल्कुल किनारा काट रखा है। कामबंद हड़ताल के बाद कार्य भी प्रभावित हो रहा है। हालांकि उनकी नाराजगी उनकी मांगो को लेकर है जिन पर विचार भी अब तक नहीं किया गया और अब वह अब इन मांगो को लेकर प्रदेश भर में हड़ताल कर रहे है। रीवा में भी परियोजना अधिकारी व सुपरवाइजर संयुक्त मोर्चे के आव्हान पर हड़ताल शुरू है। समस्या इस बात की भी है कि कामबंद अनिश्चितकालीन हड़ताल में जाने से परियोजना एवं पर्यवेक्षक सेक्टर का काम ठप हो गया। हालांकि सोमवार को जयस्तंभ चौक में एकत्र होकर सभी पदाधिकारियों व कर्मचारियों ने पहले अपनी बात रखी है लेकिन अभी तक उनकी मांगो को लेकर किसी प्रकार का कोई निराकरण नहीं होने से उनमें आक्रोश है और वह पूरी तरह से काम बंद कर घरों में कैद हो गए है।
ज्ञापन में बताई समस्या
बता दें कि परियोजना अधिकारी संघ के जिलाध्यक्ष शंखधर त्रिपाठी, पर्यवेक्षक संघ की जिला अध्यक्ष श्रद्धा बाजपेई के नेतृत्व में मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन सौंपा गया। इस अवसर पर जीवेन्द्र सिंह, मीना शर्मा, पुर्णिमा सिंह, संगीता श्रीवास्तव, राजकुमारी उपाध्याय सहित समस्त परियोजना अधिकारी और पर्यवेक्षक उपस्थित रहे। इस दौरान शासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी परियोजना अधिकारी व सुपरवाइजरों द्वारा की गई। बताया कि प्रदेश के परियोजना अधिकारियों और पर्यवेक्षकों की लंबित मांगे पूरी नहीं होने के कारण अनिश्चितकालीन कामबंद हड़ताल पर जाने की चेतावनी दी।
क्या है इनकी मांगे
मुख्य मांगो में परियोजना अधिकारियों का ग्रेड-पे 3600 रुपए से बढ़ाकर 4800 रुपए किया जाए। पर्यवेक्षकों का ग्रेड-पे 2400 रुपए से बढ़ाकर 3600 रुपए किया जाए। परियोजना अधिकारियों को सामान्य प्रशासन, पुलिस वित्त विभाग की तरह चार स्तरीय (टाइम स्केल) दिया जाए। पर्यवेक्षकों का नियमित प्रमोशन करके परियोजना अधिकारी के रिक्त से पद भरे जाए। वर्तमान में पिछले 30 वर्षों से अनेक पर्यवेक्षक एक ही पद पर पदस्थ हैं। पर्यवेक्षक को पूरे सेवाकाल में 3 प्रमोशन दिया जाए। परियोजना का विकेन्द्रीकरण कर अधिकारियों को आहरण संवितरण अधिकार दोबारा दिए जाए। वर्ष 2016 से आहरण संवितरण अधिकारों को बिना किसी औचित्य के केन्द्रीकरण कर जिला अधिकारियों को दिया है। विकासखण्ड सशक्तिकरण अधिकारी के पद नाम से प्रभारी शब्द हटाया जाए। साथ ही विकासखण्ड सशक्तिकरण अधिकारी के 313 स्वीकृत पदों को समर्पित करके उतनी ही राशि से हर जिले में सहायक संचालक ट्रेनिंग का पद सृजित किया जाए। वर्ष 2014 के बाद के सभी बाल विकास परियोजना अधिकारियों/विकासखंड महिला सशक्तिकरण अधिकारी की परिवीक्षा अवधि समाप्त की जाए। पर्यवेक्षकों को प्रतिमाह भ्रमण के आधार पर नियमित यात्रा भत्ता प्रदान किया जाए।