रीवा। बसामन मामा गौशाला में गौवंशों की दुर्दशा रुकने का नाम नहीं ले रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के आलम यह है कि गौवंश भूख-प्यास से तड़पकर मर रहे हैं। गौवंशों के लिए जहां एक ओर पर्याप्त बजट की बात प्रदेश की भाजपा सरकार कर रही है, वहीं दूसरी ओर अधिकारी बजट का रोना रोते हैं। एक अनुमान के हिसाब से बसामन मामा गौशाला में करीब 21 लाख रुपए प्रतिमाह का खर्च है, लेकिन यह राशि कहां जाती है इसका हिसाब नहीं है। ऐसा इसलिए भी कहना गलत नहीं होगा क्योंकि यदि यह राशि गौवंशों पर खर्च होती तो इस प्रकार से रोजाना दर्जनों गौवंशों की गौशालाओं में मौत नहीं होती। साफ है कि गौवंशों को दाना-पानी नहीं मिल रहा है। अब यह राशि अधिकारी निगल रहे हैं या फिर सत्तापक्ष के नेता, यह तो जांच में ही सामने आएगा। लेकिन इस गौशाला को लेकर किए जा रहे बड़े-बड़े दावे फिलहाल खोखले ही साबित हो रहे हैं।
20 रुपए प्रतिदिन प्रति गौवंश मिलती है राशि
बसामन मामा गौशाला में दाना-पानी के लिए प्रति गौवंश 20 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दिए जाने का दावा सरकार कर रही है। इन राशि के हिसाब से ही खर्च निकाला जाए तो बीते जनवरी माह में गौशाला में 3800 से अधिक गौवंश होने का दावा एक आरटीआई रिपोर्ट में किया गया था। यदि औसतन 3500 गौवंश भी गौशाला में लगा लिए जाएं तो प्रतिमाह 21 लाख रुपए खर्च होता है। इस हिसाब से प्रतिवर्ष 2.52 करोड़ रुपए गौशाला के नाम से बजट आवंटित हो रहा है। फिर भी हकीकत यह है कि गौवंशों को सूखा भूसा तक नसीब नहीं हो रहा है।
5 रुपए प्रति गौवंश दाना के लिए
बता दें कि एक गौवंश के लिए 5 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से दाना के लिए दिया जाता है, लेकिन जब गौशाला में जायजा लिया गया तो वहां सूखा भूसा तक सुबह 11 बजे तक गौवंशों की नाद में नहीं डाला गया था। पशु आहार (दाना) कहां रखा है इसकी जानकारी प्रबंधक नहीं दे सके। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रतिमाह आने वाले 21 लाख रुपये में और 5.25 लाख रुपए जो दाना के लिए आता है उसमें बंदरबांट किया जा रहा है। साल का हिसाब लगाया जाए तो सिर्फ दाना के लिए आने वाले 63 लाख रुपए की राशि का बंदरबांट जिम्मेदार अधिकारी व नेता करते हैं।
जंगल में सूखा, चराने के बाद नहीं मिलता भूसा
बसामन मामा गौशाला प्रबंधन द्वारा यह भी जानकारी दी गई कि हजारों की संख्या में पशु जंगल में चरने के लिए जाते हैं, लेकिन ग्रामीणों की मानें तो जिस जंगल में ये जाते हैं वहां सूखा पड़ा हुआ है। वहां बरसात में तो चारा रहता नहीं तो इस भीषण गर्मी में कैसे गौवंशों का पेट भरेगा। बताया गया कि जो गौवंश चरने के लिए जाते हैं उनको दाना पानी नहीं मिलता है। उनको लाकर मैदान में छोड़ दिया जाता है। शायद यही वजह है कि गौवंश भूखे पेट तड़प-तड़प कर मर रहे हैं।
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