With this experiment, farmers can earn Rs 6 thousand per hectare, check immediately:रीवा। फसलों के विकास के लिए जिंक एक महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है। यह फसल उत्पादन के साथ-साथ उनकी गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक है। मृदा में जिंक की कमी फसलों के लिये गंभीर समस्या है। इसलिये फसल उत्पादन में जिंक का उचित प्रबंधन आवश्यक होता है। जिन खेतों में धान के बाद गेहूं की बोनी जाती है, वहाँ जिंक की आवश्यकता अधिक होती है।
उपसंचालक किसान कल्याण तथा कृषि विकास यू.पी. बागरी ने जिले के किसानों को मृदा में जिंक की कमी से फसलों को होने वाले नुकसान से अवगत कराते हुए जिंक की आपूर्ति के उपायों की जानकारी दी है। श्री बागरी ने बताया कि धानकी पत्तियों में कत्थई रंग के धब्बे जिंक की कमी का लक्षण है। यह सामान्य रूप से रोपाई के दो से चार सप्ताह के बाद दिखाई देते है। धब्बे आकार में बड़े होकर पूरी पत्ती में फैल जाते है। जिसे खैरा रोग के नाम से जाना जाता है। जिंक की अत्यधिक कमी होने पर कल्लों की संख्या कम हो जाती है, जड़ों की वृद्धि रूक जाती है एवं बालियों में बांझपन आ जाता है। फलस्वरूप फसल उत्पादन में कमी होती है।
इसी प्रकार गेंहू में जिंक कीअत्याधिक कमी की दशा में पत्तियों के मध्य भाग में मटमैले हरे रंग के धब्बे बनते हैं। यह बाद में गहरे हरें रंग में बदल जाते है तथा कुछ दिनों में पत्तियां गिर जाती है। पत्तियों के अग्रक एवं आधार हरे रहते है। गेहूं फसल में जिंक की कमी के कारण कल्ले कम बनते है, पौधों की बढ़वार कम हो जाती है और पौधा छोटा रह जाता है। अत्यधिक कमी की दशा में सैकडों कल्ले बनते है जो अत्यंत छोटे होकर झाड़ीनुमा हो जाते है।
प्रति हेक्टेयर कितना करें जिंक का प्रयोग
श्री बागरी ने बताया कि जिंक की आपूर्ति के लिए जिंक सल्फेट एवं जिंक चीलेट्स समान रूप से प्रभावी उर्वरक हैं। जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत तथा जिंक चीलेट्स 12 प्रतिशत जिंक की मात्रा से युक्त है। यह आर्थिक दृष्टिकोण से सुलभ एवं प्रभावकारी हैं। मृदा विश्लेषण के आधार पर 25 से 50 किलोग्राम जिंक सल्फेट का प्रयोग प्रति हेक्टेयर भूमि में करने पर जिंक की कमी को दूर किया जा सकता है। साथ ही फसल उत्पादकता को भी बढ़ाया जा सकता है।
श्री बागरी के मुताबिक जिंक सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का मूल्य लगभग एक हजार रुपए है। इसके द्वारा 15 से 20 प्रतिशत फसल उत्पादन में वृद्धि के साथ प्रति हैक्टेयर 5 से 6 हजार रुपए का लाभ प्राप्त किया जा सकता है। एक बार जिंक सल्फेट डालने के तीन वर्ष तक उसका प्रभाव रहता है। साथ ही गेंहू फसल में भी पूरा उत्पादन मिलता है। सामान्यतः जिंक का प्रयोग खेती की तैयारी के समय खेत में भुरक कर या खड़ी फसल में जिंक सल्फेट 0.5 से 1 प्रतिशत का घोल बनाकर स्प्रे कर किया जा सकता है।