The water you drink from Rewa is becoming dangerous
रीवा. जिलेवासी पेयजल संकट से जूझ रहे हैं। जो पानी पीने के लिए है भी, वह अच्छा नहीं है। जिले के अधिकांश क्षेत्रों का पानी पीने योग्य नहीं है और लोगों को बीमार बना रहा है। लोगों को यह नहीं पता कि सूखे कंठ को तर करने के लिए वह जिस पानी का उपयोग कर रहे हैं वह जानलेवा है। जिले के अधिकांश क्षेत्रों के पानी में हार्डनेस के साथ ही नाइट्रेट की मात्रा अधिक है, जिसका असर सीधा स्वास्थ्य में पड़ रहा है। बरसात के दिनों में इन घातक तत्वों की मात्रा कम हो जाती है, लेकिन गर्मी के दिनों में जब जल स्रोतों में पानी कम होता है तब इनकी मात्रा बढ़ जाती है। यही कारण है कि गर्मी में उल्टी-दस्त की शिकायतें ज्यादा आती हैं। इसका खुलासा पूर्व में पीएचई के वाटर टेस्टिंग विभाग की रिपोर्ट से हुआ था। विशेषज्ञों की मानें तो हार्डनेस से पथरी रोग होता है, वहीं नाइट्रेट की अधिकता से लोग उल्टी दस्त व डायरिया के शिकार होते हैं। वर्तमान में बढ़ रहे उल्टी दस्त के मरीजों की संख्या का कारण भी यही है।
दुखद पहलू यह है कि लोक स्वास्थ्य व यांत्रिकी विभाग रीवा यह जानता है कि पानी पीने योग्य नहीं है, इसके बावजूद कोई उपाय नहीं किया जा रहा है। दुखद पहलू यह है कि रीवा जिले में पीएचई विभाग की जल परीक्षण प्रयोगशाला तो है लेकिन उसके पास पानी की गुणवत्ता के संबंध में कोई रिपोर्ट ही नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि विभाग द्वारा पानी की सेंपलिंग ही नहीं की जा रही है। प्रयोगशाला के केमिस्टों से जानकारी चाही गई तो उनके पास कोई जानकारी नहीं मिली। एमपी वाटर लैब पोर्टल की माने तो जिले के अधिकांश भाग का पानी हार्ड है। खासतौर से रीवा, गंगेव व सिरमौर ब्लॉक के पानी में हार्डनेस के साथ ही कैल्सियम की मात्रा बहुत ज्यादा है। इसके साथ ही नाइट्रेट की मात्रा भी बढ़ रही है, जिससे लोगों को उल्टी दस्त की बीमारी का शिकार होना पड़ रहा है।
सिरमौर में कैल्सियम व हार्डनेस हाई
वैसे तो हर ब्लॉक के पानी में तत्वों की मिनिमम स्टेज के करीब उपलब्धता है, लेकिन सिरमौर में ज्यादा है। सिरमौर में नाइट्रेट 15 एमजी से अधिक है। कैल्सियम मिनिमम 60 एमजी से अधिक 74 से 80 एमजी तक है। वहीं हार्डनेस 380 से 400 तक है। यहां एल्काइली भी मिनिमम 200 से काफी अधिक है।
बसाहट के हैंडपंपों में नाइट्रेट ज्यादा : देखा यह गया है कि घनी व अजा-अजजा बसाहटोंं में स्थित हैंडपंपों के पानी में नाइट्रेट की मात्रा ज्यादा है। इसकी वजह यह है कि हैंडपपों के पास गंदगी अधिक है और गंदे पानी का जमाव होता है। जहां गंदा पानी जलस्रोत में मिल जाता है वहां नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है। जब इसकी मात्रा 40 एमजी पहुंच जाती है तो लोग उल्टी दस्त के शिकार होने लगते हैं। यह स्थिति वाटर हार्वेस्टिंग के सही उपाय न होने के कारण हो रही है।
जल परीक्षण प्रयोगशाला में नहीं होती जांच
जल परीक्षण प्रयोगशाला में पानी की सेंपलिग नहीं ली जा रही है। यही कारण है कि यहां के प्रयोगशाला के कर्मचारियों को पानी के सबंध में कोई जानकारी नहीं है। प्रयोगशाला में सिर्फ और सिर्फ कर्मचारी बैठ कर गप-शप करते नजर आते हंै। जिले में किन क्षेत्रों का पानी पीने योग्य है कहां का नहीं, यह जानकारी इनके पास नहीं है। यह पुराने आकड़े के अनुसार वर्तमान स्थति का अंदाजा लगा रहे है। इसी कारण लोग बीमार पड़ रहे हैं।