सीधी. लोकसभा के चुनाव मैदान में इस मर्तबा विकास ही मुख्य मुद्दा रहेगा। चुनाव प्रचार के दौरान सत्ता पक्ष को घेरने के लिए कुछ इसी तरह की रणनीति विपक्षी दलों द्वारा तैयार की गई है। दरअसल दो दशक से भाजपा प्रदेश की सत्ता में काबिज है और एक दशक से केंद्र में भी भाजपा नेतृत्व की सरकार है। ऐसे में चुनाव मैदान में उतरने वाले प्रत्याशियों की प्राथमिकता है कि सत्ता पक्ष के उम्मीदवार को घेरने के लिए विकास का न होना बड़ा मुद्दा हो सकता है। राजनैतिक जानकारों का मानना है कि लोकसभा क्षेत्र सीधी में विकास कार्यों को लेकर सीधी जिला सबसे ज्यादा उपेक्षित रहा है। सीधी संसदीय क्षेत्र में शामिल ब्यौहारी में भी विकास के बड़े कार्य नहीं हुए। ऐसे में यहां के मतदाताओं में इस बात को लेकर असंतोष है। यह दीगर बात है कि अधिकांश मतदाता चुनाव के दौरान खुलकर बोलना नहीं चाहता। लेकिन उसे मालूम है कि रोजगार को लेकर जो काम होना चाहिए वह नहीं हुआ।
यही वजह है कि आज घर-घर पढ़े-लिखे बेरोजगार युवाओं में काफी मायूशी है। चुनाव के दौरान भी भाजपा की ओर से पढ़े-लिखे युवाओं को रोजगार देने की दिशा में जो सार्थक पहल होनी चाहिए वह नजर नहीं आ रही। रोजगार के संबंध में सत्ता पक्ष की रणनीति शुरू से ही गुमराह करने वाली रही है। चुनाव में रोजगार बड़ा मुद्दा है। इसी तरह ललितपुर-सिंगरौली रेलवे लाईन का जो कार्य चल रहा है उसमें अपेक्षित तेजी नहीं आ रही है। काम तो चल रहा है लेकिन देखकर लगता है कि उसमें कोई तेजी नहीं है। सीधी वासी दशकों से रीवा-सिंगरौली के बीच रेल चलने का इंतजार कर रहे हैं। यह दिवाश्वप्र ही साबित हो रहा है। यदि किसानों की बात की जाए तो अधिकांश क्षेत्रों में सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है। केवल 25 फीसदी क्षेत्रों में ही सिंचाई के लिए नहर है। ऐसे में अधिकांश किसानों को अवर्षा के चलते सही तरीके से फसल की उपज तक नहीं मिल पा रही है। लोकसभा चुनाव के दौरान इसको भी विपक्षी दल की ओर से बड़ा मुद्दा बनाने की तैयारी की जा रही है। सीधी संसदीय क्षेत्र से संबद्ध सिंगरौली जिले में बड़ी संख्या में नई कंपनियों ने अपना कारोबार शुरू किया है।
यहां भी विस्थापित परिवारों को रोजगार प्राथमिकता से न मिलने की शिकायतें लंबे समय से बनी हुई हैं। सीधी संसदीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाओं का हाल पूरी तरह से बेहाल है। कहने के लिए सरकारी अस्पताल तो मौजूद हैं लेकिन इनमें स्वीकृत डॉक्टरों का स्टाफ ही नहीं है। डॉक्टर के बिना अस्पताल की कल्पना भी करना संभव नहीं है। अन्य स्टाफ मौजूद हैं लेकिन डॉक्टरों की भारी कमी है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो दर्जनों ऐसे स्वास्थ्य केंद्र संचालित हो रहे हैं जिनमें डॉक्टर ही नहीं है। जिला मुख्यालय में ही नजर दौड़ाई जाए तो यहां विशेषज्ञ डॉक्टरों का टोटा है। जिनकी पदस्थापना करानें का वायदा चुनाव में तो किया जाता है बाद में सबकुछ ठंडे बस्ते में चला जाता है। सुविधाओं के नाम पर यहां के मतदाता लंबे समय से केवल छले जा रहे हैं।
कांग्रेस के कार्यकाल का भी लेखा-जोखा कर रहे मतदाता
लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाता कांग्रेस के कार्यकाल की चर्चा भी प्राथमिकता से कर रहे हैं। जहां भी चुनावी चर्चा शुरू होती है तो कुछ लोग भाजपा सरकार की कमियों को प्राथमिकता से गिनाना शुरू कर देते हैं। चर्चा में शामिल कुछ लोग कांग्रेस शासन की कार्यकाल की जानकारी देकर भी उसकी तुलना करना शुरू कर देते हैं। ऐसा आभाष हो रहा है कि चुनावी चर्चा के दौरान आम जनता ही आपस में भाजपा और कांग्रेस सरकार के काम-काजों का तुलनात्मक अंतर करके अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित कर रहे हैं। अभी लोकसभा चुनाव के प्रचार-प्रसार का श्रीगणेश औपचारिक रूप से होना है। चुनावी प्रचार शुरू होने के बाद स्वाभाविक है कि चुनाव मैदान में उतरने वाले सभी रणबांकुरे मतदाताओं के बीच प्राथमिकता से पहुंचने का प्रयास करेंगे।
उस दौरान सत्ता पक्ष के लोग जहां अपनी सरकार की उपलब्धियों की जानकारी देंगे वहीं विपक्षी दलों की ओर से कमियां गिनाते हुए नए वायदे किए जाएंगे। राजनैतिक जानकारों का कहना है कि चुनाव मैदान में उतरने वाले सभी प्रत्याशी सीधी संसदीय क्षेत्र के ही हैं। इस वजह से आम मतदाता उनको काफी करीब से जानता है। चुनाव में भले ही बड़े-बड़े वायदे किए जाएं लेकिन आगे क्या होने वाला है इसे अच्छे तरीके से जनता जानती है। चुनाव जीतने के बाद नेता जी से सहजता के साथ मिलना भी संभव नहीं रहता। आम जनता यदि अपनी कोई समस्या लेकर माननीय के पास जाना चाहें तो उसे मिलने के लिए काफी पापड़ बेलने पड़ते हैं। यदि मिलने में इतनी ज्यादा मशक्कत करनी पड़ती है तो आम जनता का काम कैसे होगा इसका तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।