सीधी. सीधी संसदीय क्षेत्र से लगातार तीन बार विजयश्री हांसिल करके भाजपा ने इसे अपना अजेय किला बना दिया है। भाजपा को यहां से यह उपलब्धि चुनावी क्षेत्र के नए परिसीमन के बाद से मिलनी शुरू हुई है। साल 2009 से भाजपा प्रत्याशी को सीधी संसदीय क्षेत्र से ऐतिहासिक विजय मिल रही है। दरअसल संसदीय क्षेत्र सीधी शुरुआती दौर में सोशलिस्टों के कब्जे में थे। पहले दो चुनाव में यह शहडोल सीट के साथ जुड़ी थी। फिर कांग्रेस ने यहां अपनी पैठ बनाकर इसे अपना गढ़ बना लिया। साल 1962, 1967, 1980, 1984 और 1991 में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी की जीत हुई। हालांकि बीच में कई बार जनसंघ और भाजपा के प्रत्याशी भी जीते। इसके बाद भाजपा ने इस सीट पर अपना स्थाई कब्जा जमाया। कांग्रेस के हांथ से फिसली सीधी संसदीय सीट तो अब भाजपा का गढ़ है। इस संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के कई दिग्गजों ने हांथ आजमाया। लेकिन उन्हें करारी शिकस्त मिली। पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह राहुल और भाई राव रणबहादुर सिंह भी यहां से चुनाव लड़ चुके हैं। साल 2009 से लगातार तीन चुनाव जीतकर भाजपा यहां से हैट्रिक लगा चुकी है।
यहां भाजपा का वोट प्रतिशत भी लगातार बढ़ रहा है। सीधी संसदीय क्षेत्र में कुल 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इनमें सीधी जिले की विधानसभा क्षेत्र सीधी, चुरहट, सिहावल, धौहनी, सिंगरौली जिले की विधानसभा क्षेत्र देवसर, चितरंगी, सिंगरौली और शहडोल जिले की विधानसभा ब्यौहारी शामिल है। राजनैतिक जानकारों का कहना है कि इस बार भाजपा के अजेय किले को ढहाने के लिए कांग्रेस द्वारा काफी बारीकी के साथ कार्ययोजना को बनाकर उस पर अमल करना शुरू कर दिया गया है। भाजपा को शिकस्त देने के लिए कांग्रेस के बड़े नेता भी पूरी मुस्तैदी के साथ कार्ययोजना को तैयार कराने में जुटे रहे। अब यह प्रयास किया जा रहा है कि भाजपा को सीधी संसदीय क्षेत्र से चौथी बार रोंका जाए। सीधी संसदीय क्षेत्र से इस बार भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर होना तय है। लेकिन त्रिकोंणीय मुकाबले में इस चुनाव में गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी की इंट्री हो जाने के कारण भाजपा-कांग्रेस दोनों को ही क्षति उठानी पड़ेगी। दरअसल गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह के भाजपा से इस्तीफा देकर चुनाव मैदान में उतरने के कारण यहां का चुनाव काफी रोमांचक हो गया है। गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की पैठ आदिवासी मतदाताओं में सबसे ज्यादा है।
ऐसा नहीं है कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी इससे पूर्व चुनाव मैदान में नहीं उतरी थी, गोडवाना गणतंत्र पार्टी के पास संसाधनों की कमी के कारण इससे पूर्व के सभी प्रयास सफल नहीं हो सके थे। इस बार गोंगपा से अजय प्रताप सिंह के चुनावी मैदान में उतरने के कारण पार्टी के बड़े नेताओं के साथ ही कार्यकर्ताओं में भी काफी उत्साह देखा जा रहा है। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के लोकसभा चुनाव के मैदान में उतर जाने से ज्यादा नुकसान भाजपा को होगा या फिर कांग्रेस को। फिर भी यह माना जा रहा है कि गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी ने इस बार लोकसभा चुनाव में जिस तरह से अपनी धमाकेदार उपस्थिति की है उससे जीत का समीकरण बिगडऩे वाला है। इसको भाजपा और कांग्रेस के नेता समझ रहे हैं।
सीधी संसदीय क्षेत्र से मुख्य मुकाबला अभी तक के चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के बीच ही होता रहा है। अन्य छोटे दलों के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरकर वोटकटवा की भूमिका अदा करते रहे हैं। किंतु इस बार राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह के गोंगपा का दामन थामकर चुनाव मैदान में उतर जाने से आदिवासी मतदाताओं का मिजाज जरूर कुछ बदलने की चर्चाएं हैं। जानकार भी मानते हैं कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी का प्रभाव आदिवासी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा है। आदिवासी मतदाता गोंगपा को पूरा समर्थन देने के लिए सामने भी आते रहे हैं। यह दीगर बात है कि कुछ आदिवासी मतदाताओं की दिलचस्पी पुराने समय से ही भाजपा-कांग्रेस में रही है।
इसी वजह से भाजपा-कांग्रेस की ओर से ऐसे आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में रिझाने का प्रयास किया जाएगा। जिनके लिए वह पूर्व में कुछ योजनाएं लेकर सामने आए थे। आदिवासी मतदाताओंकी संख्या सीधी संसदीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा है। इसी वजह से गोंगपा की इंट्री से बड़े राजनैतिक दलों का समीकरण आने वाले दिनों में बिगडऩे की चर्चाएं भी होने लगी हैं। आदिवासी मतदाता भाजपा-कांग्रेस को अपना कितना समर्थन देेंगे यह तो चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद ही पता चलेगा। फिर भी यह माना जा रहा है कि आदिवासियों का काफी वोट इस बार के चुनाव में बिखरने वाला है। आदिवासियों का रुझान भी अलग-अलग पार्टियों को लेकर सामने आ रहा है। कुछ क्षेत्रों में जरूर आदिवासी मतदाता गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को लेकर लामबंद होने लगे हैं। भाजपा-कांग्रेस के पक्ष में मतदाताओं का रुझान ज्यादा सामने आ रहा है।