सीधी. विश्व के पर्यटन नक्से में तेजी से अपनी पहचान बना रहे संजय टाईगर रिजर्व सीधी की सुरक्षा में तैनात मैदानी अमले की लापरवाही के चलते महीने भर से अलग-अलग जगहों में आग लगने से वन्य क्षेत्र को भारी क्षति हुई है। स्थानीय जानकारों की माने तो वन्य क्षेत्रों के जल जाने के कारण यहां रहने वाले वन्य जीवों के रहवास में भारी दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। संजय टाईगर रिजर्व क्षेत्र की सुरक्षा व्यवस्था में गर्मी के दिनों में बीट गार्डों के अलावा काफी संख्या में फायर वाचर लगाए जाते हैं। साथ ही इनको वाहन भी उपलब्ध कराया जाता है।
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बावजूद इसके अलग-अलग क्षेत्रों में आग लगती है और 4-6 घंटे में अपने से आग बुझ जाती है। उस दौरान काफी क्षेत्र का जंगल भी जल कर खाक हो जाता है। वैसे तो प्रतिवर्ष गर्मी के दिनों में संजय टाईगर रिजर्व क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में आग लगती है। किंतु इस वर्ष आग की विभीषिका ज्यादा ही रही है। कई स्थानों में तो आग लगने से जंगल को 70 फीसदी तक की क्षति हुई है। आग से प्रभावित क्षेत्र में कोर क्षेत्र का रेंज कुसमी भी शामिल रहा। यहां विशेष वन्य प्राणी रहवास माच महुआ से लेकर रूंदा भदौरा तक है। यहां की कोई भी ऐसी बीट नहीं बची जहां आग न लगी हो। वहीं पोंड़ी रेंज में जहां जंगली हांथियों का रहवास है इसमें डोमार पाठ, राजा पाठ, बुढंडोल जलकर खाक हो गया है।
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यहां तक कि तिलैया पाठ जहां जंगली भैंसा लाया गया है वहां के चारों तरफ का जंगल जलकर समाप्त हो गया। अगर वस्तुआ रेंज की बात करें तो यहां सभी बीटों का एक-एक कोना जल चुका है। जिसमें करवाही तक आरएफ-224, सिरहोरी धार आरएफ-241, आरएफ-240, पीएफ-245 ए वहीं पूर्व उमरिया में आरएफ-202, 203, 205, 206 एवं पीएफ-241, 242, 200, पीएफ-201बी पूरी तरह जलकर खाक हो गया है। अगर दुबरी रेंज के डेवा क्षेत्र का जायजा लिया जाए तो यहां का जंगल भी करीब 70 फीसदी जल चुका है। दुबरी रेंज जहां सबसे अधिक वन्य जीव पाए जाते हं यहां के कंजरा, बघनाद, पेंड्राताल और खैरा क्षेत्र जलकर खाक हो गया है। यहां सबसे अधिक चीतलों की संख्या चारा-पानी के लिए अब भटकने लगी है।
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संजय टाईगर रिजर्व सीधी में वन्य प्राणियों एवं जंगलों की सुरक्षा के लिए बीटगार्ड एवं श्रमिकों का भारी-भरकम अमला तैनात है। गर्मी के दिनों में जंगलों में आग न लगे इसके लिए लगभग 50 लाख रुपए का बजट भी संजय टाईगर रिजर्व के अधिकारी खर्च कर रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि यदि इतने बड़े अमले की मौजूदगी एवं भारी बजट खर्च होने के बाद भी आखिर संजय टाईगर रिजर्व के अलग-अलग क्षेत्रों में आग क्यों लग रही है। यदि आग लग जाती है तो उसे जल्द बुझ़ाने की व्यवस्था क्यों नहीं बन पाती। तत्संबंध में विभागीय सूत्रों का कहना है कि गर्मी के दिनों में जिस बीट में आग लगती है तो संंबंधित बीटगार्ड छुट्टी पर निकल जाते हैं।
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जिससे बाद में उन्हें कहने का अवसर मिले कि उनके न रहने पर आग लगने की घटना हुई और जंगल को भारी क्षति हुई। जबकि बीटगार्ड के छुट्टी में जाने पर उनके अधीनस्थ 4 श्रमिक मौजूद होते हैं। यहां के बीटगार्डों एवं श्रमिकों की मनमानी काफी चरम पर है। अधिकांश बीटगार्ड समीपी क्षेत्र में रहने वाले ग्रामीणों को महुआ पेंड़ बेंचने और पत्ता तोडऩे वालों से वसूली में लगे रहते हैं। कुछ श्रमिकों के माध्यम से तो महुआ, गेंहूं, चना घर-घर भेजकर वसूली भी कराई जाती है। कुछ बीटगार्ड शराब के नशे में चौकी में ही पड़े रहते हैं। ऐसे में जंगल की सुरक्षा कौन करेगा।