Sculptures from 10th to 18th century are present in Sidhi: जिला मुख्यालय के वीथिका भवन में दशवीं शताब्दी से लेकर अठारहवीं शताब्दी तक के दुर्लभ पुरातात्विक प्रतिमाओं को संग्रहित कर रखा गया है। जिले में कई वर्षों तक चलते गहन शोध एवं खोज के बाद इनका संग्रहण विशेषज्ञों की देखरेख में किया गया है। यहां रखी गई पुरातात्विक महत्व की कई ऐसी प्रतिमाएं हैं जो ग्रामीण क्षेत्रों एवं सुदूर क्षेत्रों में अव्यवस्थित तरीके से मौजूद थीं। उनके प्राचीन महत्व को देखते हुए उन्हें जिला प्रशासन द्वारा सहेज कर वीथिका भवन में रखा गया है। सीधी जनपद में अब तक किए गए अन्वेषण में अकाबरी, खैरा, खुताली, खैरपुर, चंदरेह, धवावली, बबुआरी, नकझर, वर्दी, भंवरसेन, रजडिहा, सर्रा, मझौली, चितांग, कमर्जी, पटपरा और बघोर आदि में पूर्व पाषाण युगीन औजार अनेक स्थल में प्राप्त हुए हैं।
इनमें प्रमुख स्थल अकावरी, खुताली, खैरपुर, खैरा, धितौरा, चदरेह, धवावली, नकझर, बबुआरी, बरगवां, बर्दी, बीछी, बरहई, राजघाट, रामपुर, लौआर, सिहावल, हिनौती, सिंगरौली, सोन नदी की घाटी आदि शामिल हैं। सन 1980 में अन्वेषण के दौरान कुछ स्थानों पर मध्य या पाषाण युगीन हथियार मिले हैं। इनमें मेरौली, बंकी, घघरिया, बयारा, बबुरी, बघोर और पटपरा इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं कि यहां पर पाषाण युगीन जीवाश्म नीला सांडू, गौर एवं कछुए के जीवाश्म उत्खनन में पाए गए हैं। ये स्थान प्रमुख रूप से सोन नदी घाटी और इसकी सहायक नदियों बनास और महान नदी के घाटी क्षेत्र में आते हैं। इससे यह विदित होता है कि जहां कहीं से मानव सीधी जनपद में आया यहां विद्यमान रहा। उसकी बसाहट नदियों के किनारे-किनारे तक पर्वत कंदराओं में रही है। इस क्षेत्र में अभी उत्खनन कार्य ऐतिहासिक अनुसंधान कार्य ठीक दृष्टि से नहीं हो सका है।
फिर भी जो हथियार प्राप्त हुए हैं उनमें भवरसेन के पास गोलाकार में पाषाण के अनगढ़े औजार हैं। बर्दी के पास जो औजार पाए गए हैं उनमें पाषाण कालीन हस्तकुठार प्रमुख है। नरकुई नदी के तट पर छोटा टीकट ग्राम में मध्य पाषाण युगीन लगभग 9-10 हजार वर्ष पूर्व निर्मित चाल्सेडनी, अगेन्ट तथा चर्ट आदि औजार पाए गए हैं। चकमक पत्थरों से निर्मित लघु आकार के औजार एक से डेढ़ इंच के पाए जाते हैं। इनका प्रयोग उस काल में शिकार के लिए तीरों के अग्र भाग के रूप में किया जाता था। नरकुई नदी के दोनों किनारे पर लगभग 1/2 किलोमीटर की लंबाई और एक किलोमीटर की चौड़ाई में इस प्रकार के हथियार पाए गए हैं। इनमें प्रमुख रूप से आठ टूल्स, आठ फलक के टुकड़े, 9 कोर, 9 फलक, 6 अनगठित ब्लेड, 17 चिप्स, 27 चक्र और 38 ब्लेड के टुकडे प्राप्त हुए हैं। सीधी जनपद का प्राचीन इतिहास पुरापाषाण काल के मानवों से प्राप्त होता है। उनकी बस्तियों के निशान सीधी जनपद में सोन व उसकी सहायक बनास एवं महान नदियों के घाटी क्षेत्र में विशेषकर हिनौती, बीछी, बघोर, भवरसेन, सिहावल, नकझर, सिंगरौली वर्दी, चंदरेह, खैरा, नुलहास तथा पटपरा आदि में मिलते हैं।
संजय गांधी स्मृति महाविद्यालय सीधी के तत्कालीन प्रोफेशर डॉ. संतोष सिंह चौहान की गहरी दिलचश्पी सीधी जिले के इतिहास को लेकर रही है। उनके द्वारा सीधी-सिंगरौली क्षेत्र के संभावित स्थानों का काफी भ्रमण करनें के साथ ही खोजबीन की गई। उनकी शिद्दत के चलते ही ग्रामीण क्षेत्रों में अव्यवस्थित तरीके से मौजूद पुरातात्विक महत्व से जुडी प्रतिमाओं की जानकारी सामने आने के साथ ही उन्हें सूचीबद्ध किया गया। डॉ. चौहान ने विंध्य क्षेत्र के इतिहास को खोजने में अपना अहम योगदान देने के साथ ही काफी शोध भी किया। उन्होने अपनी पुस्तक सोनांचलम नमामि एवं चला हंसा वहि गांव में इसका विस्तार से उल्लेख भी किया है।
वीथिका भवन सीधी में 10 वीं शदी ई. की प्रतिमा द्विभुजी सूर्य, देव आयच्छ, पंचायतन शिवलिंग, प्रतिमा का पाश्र्व भाग, हनुमान उध्र्व भाग, रत्न पुष्प पट्टिका, स्तंभ पट्टिका खंडित, विष्णु प्रतिमा का बांएं हांथ का पाश्र्व भाग, नायिका का उध्र्व भाग, 11 वीं शताब्दी ई. का शिर दल खंडित, उमा महेश्वर (दो खंडों में) द्वादशा खंड का भाग, महिषासुर मर्दिनी, देवप्रतिमा, नंदी खंडित, द्वार शाखा का भाग, अलंकृत द्वार शाखा खंडित, नंदी खंडित, अमल सरिका, गणेश उद्र्व भाग, स्थापना खंड (पुष्प), नंदी, अमलक, देवी प्रतिमा पैर, विष्णु प्रतिमा खंड, युगल प्रतिमा खंड, उमा महेश्वर प्रतिमा का उद्र्व भाव, जलहली, शिवलिंग, अमलसारिका, 10-11 वीं शदी ई. के नव गृह, लक्ष्मी नारायण, खंडित विष्णु, खंडित नंदी, विष्णु मस्तक, मालाधारी गंधर्व, कृष्ण जन्म, गणेश मस्तक, सनाल पद्म, स्थापत्य खंड, स्थापत्य खंड, ध्यान मुद्रा में देव, विष्णु परिकर का बांई ओर का भाग, खंडित देवी, देव मस्तक, नायिका, पैर, चतुर्भुज देवता, स्थापत्य खंड, मुंह खोले हुए पुरुष संभवत: कीचक, अलंकृत स्थापत्य खंड, स्थापत्य खंड, देव पुरुष का बांयां हांथ, देव प्रतिमा का बांई ओर का निचला भाग, स्थापत्य खंड, स्थापत्य खंड, गजमुख, गजमुख, स्थापत्य खंड, संभवत: सिंह, कमल फुल्ला, 11-12 वीं शदी ई. कृष्ण जन्म, 12 वीं शदी ई. पूजक, देवी प्रतिमा का उध्र्व भाग, 12-13 वीं शदी ई. चतुर्भुज सूर्य, द्विभुजीय कार्तिकेय, देवपुरूष, स्थापत्य खंड, 13 वीं शदी ई. देव प्रतिमा उध्र्व भाग, 13-14 वीं शदी ई. नायिका, कृष्ण जन्म, 14 वीं शदी ई. शती स्तंभ अश्व सहित, प्रतिमा खंड 15 वीं शदी ई. चतुर्भुजी, देवी पुरुष, स्थापत्य खंड, गणेश, नायिका, चतुर्भुजी देव, खंडित देव, देव पुरुष, सती स्तंभ, सती स्तंभ, सती स्तंभ दो खंडों में, सती स्तंभ, देवी प्रतिमा, 18 वीं शदी ई. योद्धा, 19 वीं शदी का सती स्तंभ का भाग मौजूद है।