रीवा। श्रावण मास पूर्णत: भगवान शिव को समर्पित होता है, तो वहीं पंचमी तिथि नागों को समर्पित मानी गई है और नाग शिव के प्रिय आभूषण माने गए हैं। यही कारण है कि देवस्वरूप नाग पूजन के लिए श्रावण मास की पंचमी तिथि विशिष्ट स्थान रखती है। इस वर्ष नागपंचमी मंगलवार को है और इसी दिन मंगला गौरी व्रत का भी योग है। इस कारण इस वर्ष नागपंचमी की तिथि शिव पूजन हेतु विशिष्ट बन गई है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने पंचमी तिथि को नाग सर्प को वर दिया था कि जन्मेजय के सर्प यज्ञ के दौरान ऋ षि आस्तिक मुनि उनकी रक्षा करेंगे। पंचमी के दिन ही आस्तिक मुनि ने नागों की रक्षा की थी, अत: पंचमी तिथि नागों को विशेष प्रिय हो गई। नाग पंचमी के दिन जो मनुष्य 12 नाग- अनंत, वासुकी, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, काली, तक्षक और पिंगल का विधिवत पूजन करता है, उसे या उसके परिवार को सर्प भय सदा के लिए समाप्त होता है।
नागपंचमी के शुभ मुहूर्त
ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया कि पंचमी तिथि 2 अगस्त को प्रात: 5.14 बजे से प्रारम्भ होगी, जो 3 अगस्त प्रात: 5.42 मिनट तक रहेगी। पूजा का शुभ मुहूर्त 2 अगस्त को सुबह 5.40 बजे से लेकर 8.28 बजे तक रहेगा।इस दिन सायं 5.30 बजे तक उत्तरा फाल्गुनी एवं उसके बाद चन्द्रमा का नक्षत्र हस्त होगा, जो नागपंचमी के पर्व को विशेष शुभ बना रहा है।
उल्लेखनीय है कि नागपंचमी का पूजन मध्यान्ह व्यापी पंचमी तिथि में किया जाता है। नागों की पूजा के साथ नागपंचमी के दिन हनुमान जी के ध्वजारोहण का भी विधान है। इसके अलावा दीवारों पर गोबर के नागों को अंकित कर के नाग पूजा संपन्न की जाती है। अपने गृह द्वार की दहलीज के दोनों ओर गोबर से सर्प आकृति बनाकर उनका दूध, दुर्वा, पुष्प, अक्षत, गन्ध एवं लड्डुओं से पूजन करते हुए नाग स्त्रोत का पाठ करने से सर्प भय नहीं होता।
नागपंचमी में कालसर्प शांति का सिद्ध मुहूर्त
श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि अर्थात नागपंचमी, कालसर्प दोष की शांति का सर्वाधिक प्रशस्त मुहूर्त माना गया है, जो वर्ष में केवल एक बार आता है। इसका मुख्य कारण सूर्य का चंद्र अधिष्ठित राशि कर्क में संचरण होना तथा चंद्रमा का इस दिन कन्या राशि में संचरण रहना है। राहु केतु की भावगत स्थिति के आधार पर 12 प्रकार के काल सर्पयोग माने गए हैं। राहु केतु की बाएं और दाएं और ग्रहों की स्थिति के आधार पर उदित और अनुदित कालसर्प योग होते हैं। इस प्रकार से कुल 24 प्रकार के कालसर्प योग का निर्माण होता है। अब यदि इन्हें लग्नों के अनुसार विभाजित किया जाए तो 288 प्रकार के काल सर्प योग प्राप्त होंगे। समस्त प्रकार के कालसर्प दोष की शांति का शुभ मुहूर्त नागपंचमी माना गया है।
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