रीवा। निशा का शाब्दिक अर्थ रात होता है। रात अंधेरी भी होती है और पूर्णिमा की हुई तो उजाले भरी भी होती है। निरालानगर की गरीब बस्ती में दिनभर भटकने वाले और कचरे बीनने वाले बच्चों के लिए निशा पाण्डेय पूर्णिमा की रात बनकर आई हैं। वे गरीब बच्चों के जीवन में शिक्षा और संस्कार का प्रकाश फैला रही हैं। पिछले चार सालों में उन्होंने दर्जन भर बच्चों को शिक्षा की राह दिखाई है। जो बच्चे दिनभर गंदी बस्ती में भटकते थे वे अब किताबें पढऩे लगे हैं। निशा पाण्डेय इन बच्चों को किताबेंए पेंसिलए कॉपी तथा पठन.पाठन की अन्य सामग्रियां भी उपलब्ध करा रही हैं। बच्चे भी निशा दीदी से घुल.मिलकर खुशी.खुशी जीवन को नई दिशाए नया आकार दे रहे हैं।
निशा पाण्डेय शासकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज रीवा में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत हैं। रीवा इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने के बाद निशा 2009 से पॉलिटेक्निक कॉलेज में कार्यरत हैं। उनकी प्रथम पदस्थापना झाबुआ जिले में हुई। निशा 2011 से रीवा पॉलिटेक्निक कॉलेज में पदस्थ हैं। उनके कॉलेज के ठीक बगल में निराला नगर मलिन बस्ती स्थित है। इनके बच्चों को कचरे में बचपन बिताते हुए देखकर निशा के मन में बच्चों का जीवन संवारने की लौ जागृत हुई।
उन्होंने बस्ती में आना.जाना शुरू किया। बच्चों से जान.पहचान बढ़ाने के बाद उन्हें कॉलेज के प्रवेश द्वार के समीप पढ़ाने लगीं। धीरे.धीरे बच्चे निशा से घुल.मिल गए। उन्होंने बच्चों को शिक्षा के साथ.साथ साफ.सफाईए स्वास्थ्य रक्षाए रोगों से बचाव तथा स्वच्छता से भोजन ग्रहण करने के संबंध में जागरूक किया। उनके लगातार प्रयासों से गलियों में भटकने वाले बच्चे शिक्षा की राह में कदम बढ़ा रहे हैं। अनुकूल वातावरण और सहयोग मिलने पर इन बच्चों का जीवन और भाग्य संवर जाएगा।
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