रीवा।शासकीय माधव सदाशिवराव गोलवलकर महाविद्यालय में पांचवें दिन भी अन्तर्राष्ट्रीय वेबिनार सीरीज का आयोजन हुआ। बुधवार को प्रथम सत्र में डॉ. अरसद जाविद सह प्राध्यापक वाइल्ड लाइफ इकोलाजी वेटनरी विश्वविद्यालय लाहौर का व्याख्यान हुआ, जिन्होंने जैव विविधता (वाइल्ड लाइफ) के संरक्षण पहलुओं पर चर्चा की। द्वितीय सत्र में डॉ. इजाज खान सहायक प्राध्यापक अब्दुल वली खान विश्वविद्यालय मर्दान पाकिस्तान ने खैरबर पखतुनिया प्रांत में हिन्दू साही डायनेस्टी 822 से 1026 के भूस्थल एवं पुरातत्विक संरचनाओं फ ोर्ट, वाच टॉवर तथा तलघर आदि की जानकारी दी। उन्होंने इस क्षेत्र में पाये जाने वाले बौद्ध मोनेस्टी की भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह क्षेत्र में वर्तमान के पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान क्षेत्र में आता है। तृतीय सत्र में अनीता बोस लेखक थाईलैण्ड बैंकाक ने दक्षिण पूर्वी एशिया के देशों थाईलैण्ड, वियतनाम, लागोस, कंबोडिया, मलेशिया तथा इंडोनेशिया के त्योहारों तथा पूजा पद्धतियों की चर्चा की तथा पी.पी.टी के माध्यम से प्रदर्शित किया। चौथे सत्र में अनुपमा दमुनूपोला सीनियर लेक्चरर केलानिया विश्वविद्यालय श्रीलंका ने महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु सांस्कृतिक यात्राओं के योगदान की जानकारी दी। उन्होने इस संबंध में श्रीलंका भारत सहित अन्य देशों के उदाहरण प्रस्तुत किये। पांचवे सत्र में थारिन्डू पेरिस असिस्टेट लेक्चरर रूहूना विश्वविद्यालय श्रीलंका के हेरीटेज प्रबंधन एवं उससे संबंधित प्राचीन संदर्भ ग्रंथों की जानकारी दी। छठवें सत्र में डॉ. जे.के.ए जयासिंघा रूहाना विश्वविद्यालय श्रीलंका ने कथारागामा पवित्र मंदिर के सांस्कृतिक एवं धार्मिक पक्षों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि यह भगवान विष्णु एवं शिव, गणेश, स्कंद देवता का मंदिर है, जिसकी मान्यता श्रीलंका के सभी धर्मों की अनुनायियों द्वारा दी जाती है। यह इस क्षेत्र का एक सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र है। वर्ष भर इस मंदिर में लोग पूजा अर्चना करते हुए सांस्कृतिक समारोह का आयोजन करते हैं। उन्होंने सिघली गीत के माध्यम से पी.पी.टी प्रजेन्टेशन प्रस्तुत किया। सातवें सत्र में पौंडलिक सीताराम बाघ डायरेक्टर यायुआ टेक्नालाजी पुणे ने अंकोरवाट मंदिर परिसर कंबोडिया पर व्याख्यान मंदिर परिसर क्षेत्र से ही प्रस्तुत की। उन्होंने वहां के सूर्यास्त मंदिर संरचना, शिल्पकला के बारे में बताया। आठवें सत्र में कृृष्ण जुगनू लेखक उदयपुर ने भी अंकोरवाट मंदिर के संरचना तथा शिल्पकला पर चर्चा करते हुए बताया कि यह मंदिर 90 अंश कोण में बना हुआ है तथा सूर्य की किरणों के साथ ही यह घूमता है। उन्होंने मंदिर की संरचना के संबंध में बताया कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 3 लाख मजदूरों द्वारा 35 वर्ष में पूर्ण किया गया, जिसमें अलग-अलग प्रकार की मूर्तियां निर्मित हैं। मंदिर के निर्माण में काला एवं बलूई पत्थर का उपयोग हुआ है। श्री पौंनडलिक ने बताया कि 21 मार्च के दिन सूर्यास्त का समय यहां के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। मंदिर के निर्माण एवं शिल्पकला ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किये जाने हेतु जानकारी दी। कार्यक्रम में महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एस.एम. शुक्ला, प्रो स्कंद कुमार मिश्र, प्राध्यापक आरके तिवारी, डॉ शैलजा सचान, विश्वजीत तिवारी, शैलेन्द्र लगरखा सहित अन्य छात्र व कर्मचारियों की सहभागिता रही।
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