रीवा। शहर में बिछिया बने जगन्नाथ मंदिर कई मायनों में खास है। इसकी अहमियत का अंदाजा इसी से लगा सकते है कि राजघराने के महाराजा रघुराज सिंह ने इसके लिए सोने का रथ बनवाकर पुरी से भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा लेकर आए थे। इसके साथ ही विंध्य में पुरी से लगातार 14 बार भगवान्न जगन्नाथ की प्रतिमा रीवा में लाकर अलग-अलग स्थानों में विराजित की गईं। इसके बाद लगातार हर पांच वर्ष में जगन्नाथ पुरी से 14 बार विंध्य की अलग-अलग स्थानों में मूर्तियां स्थापित की गई है। जगन्नाथ मंदिर के पुजारी नरेन्द्र द्विवेदी बताते है कि भगवान जगन्नाथ प्रतिमा की स्थापना पहले लक्ष्मण बाग स्थित मंदिर में होनी थी। इसके लिए महाराजा रघुराज सिंह जूदेव ने लक्ष्मण बाग में मंदिर भी बनवाया था लेकिन पुरी से सोने की रथ में सवार भगवान जगन्नाथ का रथ बिछिया नदी के किनारे स्थापना के पूर्व रात में विश्राम के लिए रोका गया था। इसके बाद दूसरे दिन यह रथ यहां से नहीं हिला। जबकि इसके लिए महाराजा ने वेदज्ञाताओं व पुरोहितों से विशेष पूजा अर्चना भी करवाई। इसके बावजूद जब रथ नहीं हिला तो महाराजा रघुराज सिंह ने स्थाई मंदिर बनवाया था।
विंध्य की सेना के सैनिकों के अंशदान से बना मंदिर
बिछिया स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर का निर्माण होने से पूर्व ही महाराजा रघुराज सिंह का निधन हो गया। इसके बाद महाराजा व्यंकट सिंह ने इस स्थान पर भव्य मंदिर बनाने का काम शुरु किया। इस काम में उस दौरान विध्य सेना के सैनिकों को अहम भूमिका निभाई थी। इस दौरान सभी सैनिकों से एक एक रुपए का अंशदान देकर तीन लाख रुपए की लाख से इस भव्य मंदिर का निर्माण कराया था।
महाराजा रघुराज सिंह ने सात दिनों तक की थी कठिन तपस्या
मंदिर के पुजारी बताते है यह प्रतिमा महाराजा रघुराज सिंह की सात दिनों की कठिन तपस्या के बाद पुरी मंदिर के पट खुलने पर दर्शन हुए थे। इसी के बाद उन्होंने इस प्रतिमा को लाने का निश्चिय किया और इसके लिए सोने के विशेष रथ से रीवा लाए। इसके पीछे जो कहानी है उसके अनुसार महाराजा रघुराज सिंह भगवान जगन्नाथ की पुरी में दर्शन के बाद प्रसाद लेने से इंकार कर दिया। इसके तत्काल बाद ही वह एक असाध्य बीमारी से पीडि़त हो गए है। इसके बाद उन्होंने स्वयंरचित जगदीश शतकम् पाठ का वाचन किया है। इसके बाद सात दिनों तक उन्हें भगवान जगन्नाथ के दर्शन नहीं जब उन्हें दर्शन मिला तब उनकी बीमारी ठीक हुई। इसके बाद ही जगन्नाथ की इस प्रतिमा को लेकर रीवा आए।
संवत 1857 से कलयुग के अंत तक चलेगा जगदीश शतकम पाठ
बता दें महाराजा रघुराज सिंह द्वारा स्वविरचित जगदीश शतकम् पाठ संवत 1857 से चल रहा है। दावा है कि उनके द्वारा शुरू यह पाठ क लयुग के अंत में भगवान के प्रकट होने तक नियमित चलेगा।
मंदिर में पुरोहित ने की संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना
महाराजा ने बिछिया में भगवान जगन्नाथ की मंदिर में पूजा अर्चना व पुरोहित के लिए विंध्य में संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कराई। जिससे की यहां संस्कृति से पढऩे वाले पुरोहित व आचार्य से मंदिर पूजा अर्चना में में कभी आड़े नहीं आए।
अविवाहित कन्याओं के शीघ्र जुड़ते है रिश्तें
बिछिया जगन्नाथ मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां सोमवार व गुरुवार को भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने एवं मौरी चढ़ाने पर अविवाहित कन्याओं के विवाह शीघ्र होते हैं। इसके साथ ही सच्चे मन से मांगी गई है। मनोकामना पूरी होती है।
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