रीवा। मार्च माह का प्रारंभ हो चुका है, इस माह में होली का त्योहार आने वाला है। उससे पहले होलाष्टक शुरु होगा। मशहूर ज्योर्तिविद राजेश साहनी ने बताया कि फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरु होता है। होलाष्टक से होलिका दहन की तैयारियां शुरु हो जाती हैं. होलिका दहन के अगले दिन सुबह होली मनाते हैं. होली से पूर्व 8 दिन में कोई भी शुभ कार्य नहीं होता है क्योंकि यह होलाष्टक के दिन होते हैं, जो मांगलिक या शुभ कार्यों के लिए अशुभ माने जाते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, होलाष्टक यानी होली से पूर्व 8 दिनों में सभी ग्रहों का स्वभाव उग्र रहता है, जो शुभ कार्यों के लिए अच्छा नहीं माना जाता है। इस समय में कोई शुभ कार्य करने से उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होगा। ग्रहों की उग्रता से उसके दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। होलाष्टक फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होगा और फाल्गुन पूर्णिमा को होलिका दहन के साथ खत्म हो जाएगा। इस आधार पर इस साल होलाष्टक 10 मार्च को लग रहा है क्योंकि इस दिन ही फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि सुबह 2.56 बजे लग रही है। फाल्गुन पूर्णिमा इस साल 17 मार्च को है। ऐसे में होलाष्टक का अंत 17 मार्च को होलिका दहन के साथ हो जाएगा।
होलाष्टक में क्यों नहीं होते शुभ कार्य
ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि से ही हिरण्यकश्यप ने बेटे प्रह्लाद को तरह-तरह की यातनाएं देनी शुरु कर दी थी। होलिका दहन तक भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए कई षडयंत्र रचे गए. लेकिन प्रभु श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का कुछ भी बुरा नहीं हुआ। फाल्गुन पूर्णिमा को हिरण्यकश्यप की बहन होलिका स्वयं जलकर मर गई, लेकिन प्रह्लाद जीवित बच गए। अष्टमी से पूर्णिमा तक भक्त प्रह्लाद पर कई तरह के अत्याचार हुए थे। इस वजह से इन 8 दिनों में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। इन 8 दिनों को अशुभ माना जाता है। अन्य मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने कामदेव को फाल्गुन अष्टमी के दिन भस्म किया था लेकिन उसके पश्चात कामदेव की पत्नी रति के अनुरोध पर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया था। इन मान्यताओं के अनुसार होली से पूर्व की 8 दिन की अवधि शुभ कार्यों के लिए वर्जित की गई है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार…
अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव के होते हैं। ग्रह-नक्षत्र के कमजोर होने के कारण इस दौरान जातक की निर्णय क्षमता कम हो जाती है। जिससे गलत फैसले से हानि की संभावना रहती है।
यह कार्य हैं वर्जित
— वैवाहिक कार्य।
— धन संपत्ति में निवेश।
— नए व्यवसाय की शुरुआत।
— गृह प्रवेश, निर्माण या मरम्मत संबंधी कार्य।
— मुंडन संस्कार।
— नए वाहन की खरीदी।
— किसी भी प्रकार के संस्कार
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