Arbitrary recovery started in these private schools in the new session: सीधी.नए शैक्षणिक सत्र में स्कूलों में प्रवेश का कार्य तेजी के साथ चल रहा है। प्रायवेट स्कूलों में शुल्क को लेकर फिर से मनमानियां चरम पर पहुंच चुकी हैं। चर्चा के दौरान कई अभिभावकों ने बताया कि प्रायवेट स्कूलों में प्रवेश शुल्क के साथ ही अन्य तरह की कई शुल्क वसूली जाती हैं। जिसका विरोध करने पर कुछ भी नहीं सुना जाता। कुछ अभिभावकों का कहना था कि बढ़ती महंगाई में किसी तरह से परिवार का जीविकोपार्जन किया जा रहा है। सभी अभिभावक यह चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ें। इसी के चलते प्रायवेट स्कूल में प्रवेश कराया जाता है। बाद में मालूम पड़ता है कि प्रवेश शुल्क एवं निर्धारित मासिक शुल्क देने के बाद भी कई तरह के शुल्क वसूलना शुरू हो जाता है। परीक्षा शुल्क के नाम पर भी प्रायवेट स्कूलों में हजारों की राशि मांगी जाती है।
चमक-दमक वाले बड़े स्कूलों का हाल तो और भी ज्यादा खराब है। यहां कई तरह की डे्रस थोप दिए जाते हैं। उसकी व्यवस्था में भी आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावकों को काफी दिक्कतें होती हैं। अभिभावकों का आरोप है कि इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई के नाम पर सबसे ज्यादा शुल्क वसूलने का काम चल रहा है। कुछ अभिभावकों का कहना था कि इंग्लिश मीडियम पढ़ाई के नाम पर कई सालों से वह भारी भरकम शुल्क दे रहे थे। स्थिति यह है कि बच्चे न तो इंग्लिश में ही सही तरीके से पढ़ाई कर सके हैं और न ही हिन्दी माध्यम में। इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई का वायदा करके अभिभावकों से केवल भारी भरकम शुल्क वसूलने का काम ही किया जाता है। मजबूरी में कई अभिभावक बच्चों की शैक्षणिक योग्यता सुधारने के लिए अब हिन्दी माध्यम की अच्छी स्कूलों में ही बच्चों का नाम लिखाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।
वहीं जानकारों का कहना है कि वर्तमान में इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई कराने का झांसा देकर अधिकांश स्कूल संचालकों द्वारा भारी भरकम शुल्क वसूला जा रहा है। वस्तुस्थिति यह है कि जिला मुख्यालय में सीबीएससी से संबद्ध कुछ स्कूलें ही हैं। जबकि इंग्लिश मीडियम से पढ़ाई का झासा देने वाले स्कूलों की संख्या आधा सैकड़ा से ऊपर है। उनके द्वारा बाहरी तामझाम बनाकर अभिभावकों से मनमानी शुल्क वसूलने का खेल सालों से खेला जा रहा है। इस मामले में जिला शिक्षा विभाग के जिम्मेदार अधिकारी भी पूरी तरह से सुस्त हैं। उनके द्वारा स्कूलों का निरीक्षण करने के दौरान इस बात के लिए कार्यवाही नहीं की जाती कि यदि संबंधित स्कूल इंग्लिश मीडियम नहीं है तो प्रचार-प्रसार में धोखेबाजी क्यों की जा रही है।
जिला शिक्षा विभाग की उदासीनता के चलते ही सीधी जिले में इंग्लिश मीडियम स्कूल कस्बों से लेकर गांवों तक खुल चुके हैं। ऐसे स्कूलों में न तो प्रशिक्षित शिक्षक हैं और न ही गुणवत्ता युक्त पढ़ाई की व्यवस्था है। प्रायवेट स्कूलों में ग्रीष्मकालीन शुल्क भी शिक्षकों के वेतन के नाम पर वसूले जाते हैं। लेकिन जो शिक्षक यहां पठन-पाठन कराते हैं उनको ग्रीष्मकालीन अवकाश का वेतन कुछ चुनिंदा स्कूलों में ही दिया जाता है।
नए शैक्षणिक सत्र में अभिभावकों पर बच्चों का प्रवेश स्कूलों में कराने के साथ ही ड्रेस एवं किताबों की खरीदी के नाम पर भी लुटने को मजबूर रहते हैं। इसको गंभीरता से लेते हुए प्रदेश सरकार द्वारा इस बार सभी जिला मुख्यालयों में बैठक लेकर यह सुनिश्चित कराने के निर्देश दिए गए थे कि प्रायवेट स्कूल संचालकों द्वारा डे्रस एवं किताब के लिए दुकानें निर्धारित न की जाएं। सीधी जिला प्रशासन की ओर से भी बैठक लेकर इस आशय के निर्देश प्रायवेट स्कूलों को दिए जा चुके हैं। इसके बाद भी कुछ अभिभावकों ने चर्चा के दौरान बताया कि अधिकांश प्रायवेट स्कूलों में सप्ताह के दिनों में कई तरह के ड्रेस निर्धारित किए गए हैं वहीं इंग्लिश मीडियम पढ़ाई के नाम पर निजी प्रकाशको की कई तरह की किताबें खरीदने के लिए बाध्य किया जाता है।
निजी प्रकाशकों की किताबेंं काफी महंगी रहती हैं। 20 पेज की किताब करीब 100 रूपए में दी जाती है। स्कूलों में निजी प्रकाशकों की निर्धारित पूरी पुस्तकों का सेट लेने पर नर्सरी एवं तीसरी तक के छात्रों के लिए 5-6 हजार रूपए लिए जाते हैं। वहीं स्कूलों में निर्धारित सभी ड्रेस लेने पर उसकी कीमत भी 5-6 हजार रूपए आती हैं। स्कूलों के प्रवेश के दौरान ही कई तरह के शुल्क मिलाकर प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों से 10-15 हजार रूपए होते हैं। एक शैक्षणिक सत्र में प्राथमिक कक्षाओं के छात्रों से 30-40 हजार रूपए लिए जाते हैं। माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों से 35-50 हजार रूपए एवं हाई स्कूल व हायर सेकण्ड्री के विद्यार्थियों से 50-60 हजार रूपए का शुल्क वसूला जाता है। नए सत्र में अभी जिला प्रशासन की बैठक के बाद कुछ नहीं कहा जा रहा है लेकिन जुलाई में स्कूल खुलने के बाद सबकुछ