रीवा। संसदीय क्षेत्र रीवा में 26 अप्रैल को चुनाव हो चुका है। जिले के साढ़े 18 लाख मतदाताओं में से करीब 9 लाख मतदाताओं ने अपना जनादेश ईवीएम कैद करवा दिया है। इस बार संसदीय क्षेत्र रीवा के मैदान में 14 प्रत्याशी थे। हालांकि मैदान में ज्यादा जोर भाजपा, कांगे्रस व बसपा का ही रहा। मतदाताओं ने अपना प्रतिनिधि भी चुन लिया है। रीवा का अगला सांसद कौन होगा इसका खुलासा 04 जून 2024 को मतगणना के बाद होगा।
जनता अपने पिछले निर्णय पर अमल किया फिर परिवर्तन अभी से कहना उचित नहीं होगा। कौन जीतेगा, कौन हारेगा इस पर राजनैतिक पंडित उलझे हुए हैं। पिछले कई चुनावों के बाद रीवा संभाग में मतदान प्रतिशत 50 प्रतिशत से कम रहा है। सतना में अपेक्षाकृत रीवा व सीधी में 10 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ है। मतदान कम होने से सतना, रीवा व सीधी का चुनावी समीकरण उलझ गया है। यहां तय नहीं हो पा रहा कि जनादेश किधर गया हैै।
रीवा-सतना में बसपा तो सीधी में गोंगपा की मजबूत इंट्री से राजनीतिक पंडितों का फार्मूला काम नहीं कर रहा है। राजनीतिक पंडितों द्वारा अपने-अपने तरीके से समीकरण सुलझाने में लगे हैं। कोई रिपीट तो कोई परिवर्तन तो कुछ कहते हैं कि इस बार चौकाने वाला परिणाम आयेगा। जनता ने तय कर दिया है लेकिन कयासों का दौर चल रहा है।
देखा यह गया है कि जब-जब मतदान कम हुआ उसके परिणाम अलग ही रहे हैं। लोगों की उम्मीद से परे रहा। चाहे 1989 का चुनाव हो या फिर 1996 या फिर 2009 का। इन चुनावों में बसपा को ही फायदा हुआ। केवल एक दो बार ही ऐसा हुआ जब भाजपा या कांग्रेस को फायदा मिला। इस बार भी मतदान का प्रतिशत कम है लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि परिणाम क्या होगा। इस बार भाजपा व कांग्रेस दोनो ने काफी जोर लगाकर चुनाव लड़ा है। राजनीतिक पंडित भी मानते हैं चुनाव तो त्रिकोणी रहा लेकिन टक्कर भाजपा व कांग्रेस के बीच ही दिख रही थी।
इस साल चुनाव के समय शादी ब्याह का सीजन व गेहूं की कटाई का सीजन होने के कारण जिले का निर्णायक वोटर गरीब मजदूर वर्ग वोटिंग तो किया लेकिन साइलेंट रहा। उसने अपना कोई रुख ही नहीं व्यक्त किया। इससे यह तय करना पाना कठिन हो रहा है कि चुनाव परिणाम किसके पक्ष में जायेगा। लाड़ली बहना का अंडर करेंट कितना है कितना नहीं स्पष्ट नहीं हो पा रहा। चुनाव मेंं जाति का भी जोर खूब चला है। ऐसी स्थिति में अब चुनाव परिणाम की ओर देखना ही उचित होगा।