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रीवा। नगर निगम में करीब 20 वर्ष बाद इतिहास दोहराया गया है, यह इतिहास इस बात को लेकर है कि नगर निगम में महापौर और परिषद् में अलग-अलग पार्टियों का कब्जा है। हालांकि उस दौर में जब परिसद पर कांग्रेस और महापौर भाजपा का था, एमआईसी तक के लिए पार्षद नही थे तब दोनो दलो ने मिल-जुलकर जनता के विकास की बात की और विकास के एजेंडो पर सहमति भी जताई लेकिन वर्तमान में परषिद् व महापौर अलग दल के होने की चर्चाओं ने लोगो को असमंजस में डाल दिया है। चौक-चौराहों के जानकारों के बीच चर्चा तेजी से हो रही है कि परिषद् पर भाजपा का बहुमत होगा और महापौर कांग्रेस का है तो महापौर कुछ नहीं कर पाएगा, सरकार भाजपा की है तो महापौर को जीरो कर दिया जाएगा, महापौर का चुनाव भले ही कांग्रेस जीत गई लेकिन वह कुछ कर नही सकेंगे और इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा जनक्त को यह समझ आ जायेगा कि महापौर भाजपा का ही जिताया जाए।
आपको बता दें कि चर्चाएं जो भी हो लेकिन मप्र नगर पालिक अधिनियम 1956 के विभिन्न प्रावधानों में अलग-अलग शक्तियां महापौर और परिषद् को दी गई है। बता दें कि अधिनियम की धारा 25 में महापौर की शक्तियों दी गई हैं जिसमें धारा 25(1) के अनुसार नगर निगम कार्यालय एमआईसी तथा अपील समिति का कार्यालय एवं नगर निगम में कार्यरत अधिकारियों-कर्मचारियों पर प्रशासकीय नियंत्रण महापौर का होगा, मतलब साफ है कि कर्मचारी महापौर के प्रशासकीय नियंत्रण में रहेंगे। वहीं धारा 37(1) की बात की जाए तो अधिनियम क्रमांक 20 में वर्णित प्रवधाना के अनुसार मेयर इन काउंसिल (एमआईसी) के गठन का अधिकार महापौर को दिया गया है, महापौर के द्वारा एमआईसी में कम से कम 5 व अधितम 10 सदस्य रखे जा सकते हंै।
अधिनियम के अनुसार महापौर प्रशाद पर्यंत पद धारण करेगा। स्वीकृतियों के संबंध में निगमायुक्त को 40 लाख, महापौर को 2 करोड़ व एमआईसी को 5 करोड़ तक की स्वीकृति देने का नियम है, अधिनियम में साफ है कि एमआईसी किसी भी संबंध में जांच व रिपोर्ट या राय मांग सकती है। वहीं निगम अध्यक्ष की बात की जाए तो अधिनियम में उन्हें यह अधिकार है कि सलाहकार समिति गठित कर सकेगा और समितियों द्वारा दी गई रा एमआईसी के विभाग प्रमुख के समक्ष रखी जाएगी। जिसके बाद वह इस सुझाव पर विचार करेगा, महापौर की सहमति से ही सम्मिलन की तारीख अध्यक्ष नियत करेंगे। महापौर के अनुमोदित एजेंडे पर ही चर्चा की जाएगी।