वीरेंद्र सिंह सेंगर (बबली), (खरी-खरी)। आज की राजनीति छल, दाम की हो गई। चुनाव मैदान में कौन कितनी चतुरता से जनता को बरगला ले इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल ही है। रीवा लोकसभा क्षेत्र में भी एक ऐसे नेता है जिनकी माया का अंत नही, कब किसको इस्तेमाल कर फेक दे कहा नहीं जा सकता है। विधानसभा चुनाव में उन्होने अपने दो नुमाइंदो का जमकर इस्तेमाल किया, एक अपनी ही पार्टी का गद्दार तो दूसरा अपने ही समाज का गद्दार, दोनो ही नेता जी के हाथ की कठपुतली बने रहे। जब लोकसभा चुनाव आया तो नेता जी का नुमाइंदा अपनी ही पार्टी से निष्कासित गद्दार ने पत्रकारवात्न कर हलचल मचाने का प्रयास जरुर किया लेकिन नेता जी के मंसूबे पर कामयाब नहीं हुआ।
नेता जी लोकसभा चुनाव में खुद स्टार प्रचारक बन संसदीय क्षेत्र में घूमने लगे। संसदीय क्षेत्र में अचानक क्या आभास हुआ की नेता जी बीमार पड़ गये और आनन-फानन सरकारी अस्पताल के व्हील चेयर में नजर आये चेहरे न कोई सिकन थी और न ही बीमारी जैसे लक्षण समझ में आते रहे। थोडी ही देर में बिस्तर पर नजर आये और चहेते यूटूबरों के आगे ऐसी बयानबाजी की जैसे चुनावीरण आने वाली परिणाम की चिंता सता रही हो रही। अपने चहेते यूटूबरों के माध्यम से जनता के बीच हमदर्दी का बयानबाजी कर कैमरे से ओझल होते ही अस्पताल से लापता हो गये।
अब यहां जनता इस बात को सोचने के लिए विवश हो गई कि यदि स्टार प्रचारक की तबियत ही खराब हुई तो महानगर की अस्पतालों या शहर के निजी अस्पतालों की ओर रूख क्यों नहीं किये, जबकि इनके लिए तो शासन से हर प्रकार की सुविधा उपलब्ध है।
सोच का विषय तो यह भी है कि एक ओर स्टार प्रचारक बीमार है तो वहीं दूसरी ओर प्रत्याशी संसदीय क्षेत्र में प्रचार कर रहे? क्या उनके अपने स्टार प्रचारक के तबियत बिगड़ने की जानकारी नहीं लगी? राजनीति के गलियारे से लेकर जनता के बीच इस बात की चर्चा होने लगी की बीमारी कहीं स्टार प्रचारक नेता जी का चुनावी शगूफा तो नहीं हैं।