शहडोल.प्रदेश के निकायों की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। स्थिति यह है कि कर्ज लेकर शहरी विकास के कार्य किए जा रहे हैं। शहडोल नगरपालिका अपने ही संपत्तिकर, किराया और जलकर की राशि वसूल नहीं पा रही है। वहीं करोड़ों रुपए के कर्ज में है। जिसका लाखों रुपए नगरपालिका को ब्याज के रूप में हर साल चुकाना पड़ रहा है। ऐसे में नपा जहां एक ओर कर्ज की राशि नहीं अदा कर पा रही। वहीं नगर पालिका अध्यक्ष घनश्याम जायसवाल ने चुनाव के दौरान बाजार बैठकी न लगने की घोषणा को पूर्ण करने के लिए वित्तीय वर्ष समाप्त होने के बाद परिषद की बैठक में 1 अप्रैल से बाजार बैठकी वसूली बंद करने का निर्णय पारित कर दिया। मजे की बात तो यह है कि मध्यप्रदेश नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 130 अंतर्गत कोई भी कर समाप्त करने का अधिकार अध्यक्ष के पास है ही नहीं, उक्त बाजार बैठकी वसूली की समस्त शक्तियां शासन के पास है। शासन की पूर्व अनुमति के कोई भी कर समाप्त नहीं किया जा सकता। नियम 132 में कर में छूट की भी शक्तियां शासन के पास निहित हैं। वीडियो कान्फ्रेंन्सिंग में स्पष्ट निर्देश दिये गये हैं कि निकाय अपने आय के स्त्रोंतों में वृद्धि करें तथा शतप्रतिशत वसूली करें। संभागीय संयुक्त संचालक नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग के पत्र क्रमांक 761 के माध्यम से मुख्य नगर पालिका अधिकारी को निर्देशित किया है कि जब तक शासन से परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव का अनुमोदन नहीं किया जाता।
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विभागीय रूप से बाजार बैठकी की वसूली की जाये। वहीं बाजार बैठकी वसूली से नगर पालिका को 35 लाख रूपये सालाना आय होती है। सोचनीय पहलू यह है कि जब अध्यक्ष और परिषद को बैठकी वसूली में कर समाप्त करने या छूट देने का अधिकार ही नहीं है तो आखिर बैठक में परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव से पूर्व अनुमोदन को लेकर क्या तैयारी की गई है। निकाय में सबसे बड़ी समस्या अनियमित नियुक्ति की है। बीते वर्षो के दौरान निकाय के चुने हुए जनप्रतिनिधि सबसे पहले अपने चहेतों की निकायों में अनियोजित नियुक्तियां करवाई हैं। सूत्रों की माने तो इसी के चलते नगर पालिका का आर्थिक बोझ ज्यादा बढ़ा हुआ है और नपा की माली हालत प्रभावित होती जा रही है। एक बार नियुक्ति मिलने के बाद इन दैवेभो कर्मियों को हटाना मुश्किल हो चुका है। बीते वर्षो में लगातार नियुक्तियों का बोझ नपा में बढ़ाए जो सबसे बड़ी मुसीबत है। इससे निपटने के लिए फिलहाल नपा
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नहीं मिल रहा लाभ
nअंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी, टका सेर खाजा की कहावत जिले की नगर पालिकाओं में चरितार्थ हो रही है। दैनिक वेतन भोगी के रूप में नौकरी के लिए वास्तविक हकदार ठोकरे खा रहे हैं। सूत्रों की माने तो कुछ दैनिक वेतन भोगी प्रतिमाह नगर पालिका सहित परिषद से पगार ले रहे है। लेकिन वह केवल राजनीतिक पार्टियों का झण्डा और दरी बिछा रहे हैं। जहां इससे नगर पालिकाओं पर बोझ बढ़ रहा है। वहीं दूसरी ओर जिन कामों के लिए इन कर्मचारियों को जनता के टैक्स के पैसे से वेतन दिया जा रहा है। वह कार्य भी प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन दोनों ही दल के जिम्मेदार इस मामले में चुप्पी साध लेते हैं।