रीवा। लोकशाही की ठाटबाट को देखकर हर कोई चुनावी दंगल में दो-दो हाथ मारना चाहता है। क्या पता सियासी ऊंट कब उसकी तरफ करवट ले ले। फिर तो सारी दुनिया मुट्ठी में। शायद यही कारण है कि हर विधानसभा चुनाव में प्रत्येक सीट से दर्जनों उम्मीदवार अपना भाग्य आजमाते हैं। दो चार उम्मीदवारों को छोड़ कर शेष सभी यह जानते हुए कि वह सफल नहीं होंगे, इसके बावजूद चुनावी दंगल में हर बार विधायक बनने की प्रत्याशा में कूद पड़ते हैं। कुछ तो इसलिए भी चुनाव लड़ते हैं कि पूर्व विधानसभा प्रत्याशी तो कहलायेंगे ही जिससे उनका रुतबा बढ़ेगा। प्रदेश के 1990 से अब तक पिछले 7 विधानसभा चुनावों के संदर्भ में बात करें तो रीवा जिले में 966 उम्मीदवार सियासी खेल में शामिल हो चुके हैं। हालांकि इन 7 चुनावों में केवल 52 की ही जीत हुई। इनमें कई दो से तीन बार जीते हैं। यदि यह कहें कि लगभग तीन दर्जन की ही सियासी हसरत पूरी हुई तो गलत न होगा। वैसे तो समय के साथ क्रमश: हर चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या में इजाफा होता है, लेकिन 1990 के चुनाव में रीवा विधानसभा से 49 प्रत्याशी मैदान में थे, जो तत्समय तीन विधानसभा क्षेत्र त्योंथर, मनगवां, देवतालाब के कुल प्रत्याशियों से भी अधिक थे। तत्समय रीवा विधानसभा से कांग्रेस से पुष्पराज सिंह चुनाव मैदान में थे। यह संयोग ही कहा जाय कि 49 प्रत्याशियों के मैदान में होने के बावजूद पुष्पराज सिंह ने 49 प्रतिशत से अधिक मत पाकर जीत दर्ज की थी।
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जबकि 1985 में विधायक चुने गए प्रेमलाल मिश्रा को 11 प्रतिशत के करीब ही मत मिले थे। 6 प्रत्याशियों ने तो हजार का आंकड़ा पार कर लिया था, लेकिन 42 प्रत्याशी हजार के करीब भी नहीं पहुंचे थे। दो प्रत्याशी तो महज 48 मत ही पाये थे। विधानसभा चुनाववार आकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो सबसे अधिक 2013 में जिले के सभी आठ विधानसभा क्षेत्रों में 170 प्रत्याशी मैदान में थे। 2008 में 169 और 1990 में 155 प्रत्याशी चुनाव लड़े थे। सबसे कम 1998 के चुनाव में 87 प्रत्याशी ही मैदान में थे, हालांकि तब केवल सात विधानसभा क्षेत्र ही थे। 2018 के चुनाव में 150 प्रत्याशी मैदान में रहे।
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nरीवा में सबसे अधिक व मनगवां में सबसे कम रहे प्रत्याशी : पिछले 7 चुनावों में जिले की सभी विधानसभाओं में उतरने वाले प्रत्याशियों की संख्या पर नजर दौड़ाई जाय तो सबसे अधिक 185 प्रत्याशी रीवा विधानसभा से एवं सबसे कम 96 प्रत्याशी मनगवां विधानसभा चुनावों में दांव अजमाये थे, जबकि देवतालाब से 110 प्रत्याशी मैदान में थे। वैसे तो सबसे कम सेमरिया विधानसभा में 75 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे, लेकिन सेमरिया का गठन 2008 में हुआ और पहली बार विधानसभा चुनाव भी इसी साल हुए। अब तक केवल 03 चुनाव ही हुए हैं।
nपहले देवतालाब उसके बाद मनगवां सुरक्षित सीट : 1990 से अब तक हुए चुनावों पर गौर करें तो 1990 से 2003 तक चार चुनावों में देवतालाब सुरक्षित सीट थी, जबकि 2008 व 2013 में मनगवां विधानसभा सीट सुरक्षित हो गई। इस कारण भी प्रत्याशियों की संख्या कम कही जा सकती है।
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nविपक्षियों की जमानत जब्त कराकर चुनाव जीते व जमानत गवां कर हारे : 1990 में रीवा विधानसभा में सभी 48 प्रत्याशियों की जमानत जब्त कराकर चुनाव जीतने वाले राजघराने के पुष्पराज सिंह 2003 के चुनाव में जमानत गवांकर चुनाव हार भी गए। 2003 में मंत्री राजेंद्र शुक्ला ने पुष्पराज सिंह को करारी शिकस्त दी थी। अब पुष्पराज सिंह भाजपा में शामिल हो गए हैं और मंच साझा कर रहे हैं।
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1990 के चुनाव से अब तक पांच नेताओं ने हैट्रिक लगाई है। इनमें कांग्रेस से पुष्पराज सिंह व स्व. श्रीनिवास तिवारी, बसपा से डॉ आइएमपी वर्मा व भाजपा से राजेंद्र शुक्ल व गिरीश गौतम का नाम शामिल है। वैसे तो भाजपा के गिरीश गौतम लगातार चार बार चुनाव जीत चुके हैं लेकिन 2003 का चुनाव मनगवां विधानसभा क्षेत्र से जीता था। लगातार तीन बार देवतालाब विधानसभा से जीत चुके हैं। स्व. रमाकांत तिवारी भी चार बार विधायक बने, लेकिन वह लगातार तीन बार चुनाव नहीं जीते। वहीं रामलखन शर्मा भी तीन बार विधायक चुने गए, लेकिन ये भी लगातार नहीं जीते। बता दें कि पुष्पराज सिंह व स्व. श्रीनिवास तिवारी 1990, 1993, 1998 में लगातार कांग्रेस विधायक बने, जबकि डॉ.आईएमपी वर्मा 1993, 1998, 2003 तक लगातार चुने गए। वहीं राजेंद्र शुक्ल 2003, 2008, 2013,2018 में चुनाव जीते। वहीं गिरीश गौतम ने भी जीत की हैट्रिक लगाते हुए 2003 में मनगवां, 2008, 2013, 2018 में देवतालाब से जीत दर्ज की। त्योंथर से रमाकांत तिवारी 1990 में कांग्रेस से व भाजपा से 1998, 2003 व 2013 में जीते। रामलखन शर्मा सिरमौर विधानसभा क्षेत्र से 1990, 1993, 2003 में चुनाव जीते। 1990 के बद लगातार दो बार चुनाव जीतने वालों में भाजपा के नागेंद्र सिंह गुढ़ 1998, 2003 व पंचूलाल प्रजापति 1998, 2003 तथा बसपा के जयकरण साकेत 1990, 1993 का नाम शामिल हैं।