रीवा। सियासी जमीन सज गई है। चुनावी बिसात भी बिछ गई है। दलों ने मोहरे भी बैठा दिए हैं। सभी मोहरे चाल चलने का इंतजार कर रहे हैं। शनिवार से चाल चलने के लिए पक्का सर्टिफिकेट देने का काम भी शुरू हो गया है। 30 अक्टूबर तक परचा दाखिले के बाद सभी मैदान में आ जायेंगे। किसकी बाजी भारी पड़ेगी किसकी नहीं, कौन बाजीगर होगा इसका फैसला तो 17 नवंबर को संबंधितों के सियासी खाने की जनता करेगी। रीवा-मऊगंज जिले के 8 विधानसभा क्षेत्रों में किस दल ने किसे प्रत्याशी बनाया और अब तक उनकी क्षेत्र के लिए क्या उपलब्धियां हैं जिनको लेकर जनता के बीच जायेंगे।
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nरीवा विधानसभा क्षेत्र: तीन इंजीनियरों के बीच जंग
nरीवा विधानसभा क्षेत्र में सियासी जंग में इस बार तीन इंजीनियरों का आमना-सामना होगा। सभी शिल्पी हैं। सियासत के जंग में किसकी सोशल इंजीनियरिंग कितनी भारी होगी, यह देखना है। यहां दो इंजीनियरों का आमना-सामना पहले भी हो चुका है लेकिन एक पहली बार मैदान में उतर रह रहे हैं। रीवा विधानसभा क्षेत्र से इंजी राजेंद्र शुक्ल पुराने व मझे हुए खिलाड़ी हैं। वह लगातार पांचवीबार मैदान में उतर रहे हैं। पहली बार 1998 के चुनाव में महाराजा पुष्पराज सिंह से शिकस्त खाई थी लेकिन उसके बाद 2003 के चुनाव में जमानत जबत कराकर मात दी थी। इसके बाद 2008 में कांग्रेस के वर्तमान प्रत्याशी इंजी. राजेंद्र शर्मा को पीछे छोड़ा था। 2013 में मुजीब खान व 2018 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस की टिकट पर पूर्व विधायक अभय मिश्रा मुकाबला करने आए लेकिन वह भी हार गए थे। श्री शुक्ल चार बार मंत्री भी बने हैं। उन्हें भाजपा के लोग विकास का पर्याय कहते हैं। इंजीनियर राजेंद्र शर्मा इस बार फिर प्रबंल विपक्षी के रूप में मैदान में हैं। उस बार संगठन की कमान किसी दूसरे हाथ में थी लेकिन इस बार संगठन की कमान उनके हाथ में है। पिछले 9 महीनों से वह केवल रीवा विधानसभा ही नहीं पूरे जिले की विधानसभाओं में जमीन पर कम किया है। कार्यकर्ताओं की फौज तैयार की है। हालांकि अमहिया कांग्रेस के अचानक भाजपा की ओर जाने व कुछ कांग्रेसियों के बागी होने की संभावना ने थोड़ा विचलित जरूर किया है लेकिन वह जानते हैं कि उन्हें किस पैमाने पर काम करना है। जबकि आप से इंजी. दीपक सिंह पहली बार मैदान में हैं। इससे पहले दीपक ने महापौर चुनाव में उतरे थे जहां वह 8 हजार से वोट पाकर सबको चौंकाया था। तब से वह लगातार क्षेत्र में सक्रिय हैं।
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सेमरिया विधानसभा क्षेत्र: तीन ठेकेदारों के बीच संघर्ष
nसेमरिया विधानसभा क्षेत्र के मजबूत प्रत्याशी अब तक सामने आए हैं उनमें भाजपा विधायक केपी त्रिपाठी, पूर्व विधायक अभय मिश्रा व बसपा से दो चुनाव लड़ चुके पकंज सिंह पटेल हैं। तीनों ठेकेदार भी हैं। अभय मिश्रा मिश्रा को सेमरिया का पहला विधायक होने का खिताब मिल चुका है। दूसरे चुनाव में उनकी पत्नी नीलम मिश्रा भाजपा की टिकट पर चुनाव जीती थीं। पिछला चुनाव रीवा विधानसभा क्षेत्र से लड़ा था और पहल की तुलना में कांग्रेस की हार अंतर बहुत कम कर दिया था। इस बार फिर वह अपनी जमीन पर हैं। विधायक केपी त्रिपाठी वर्तमान विधायक हैं। वह सेमरिया क्षेत्र के निवासी भी है। 2018 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरे और अच्छी जीत दर्ज की। पिछले पांच सालों में वह क्षेत्र की जनता के सतत संपर्क में रहे। जनता के पास अभय मिश्रा के पास उनके पुराने काम हैं तो केपी त्रिपाठी के पास नए काम हैं। हर मामले में एक शेर तो दूसरा सवा शेर है। बसपा प्रत्याशी पंकज सिंह पटेल तीसरी बार सेमरिया के मैदान में उतरे हैं। दो चुनाव वह भले हार गए हों लेकिन उनका मत प्रतिशत नहीं घटा। इसबार वह नई रणनीति के साथ मैदान में उतर रहे हैं। केपी व पंकज को स्थानीय विरोध झेलने की गुंजाइश कम है लेकिन अभय मिश्रा को कांग्रेस के लोगों के विरोध का भी सामना करना पड़ सकता है।
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nसिरमौर विधानसभा क्षेत्र: राजा को चुनौती देंगे चार योद्धा
nसियासी समर में तीसरीबार उतने रीवा राजघराने के वारिस व विधायक दिव्य राज सिंह को इस बार चार योद्धा चुनौती दे रहे हैं। यहां कांग्रेस ने दांव खेलते हुए आदिवासी नेता पूर्व विधायक रामगरीब वनवासी को मैदान में उतारा है। दिव्यराज सिंह दो बार से विधायक हैं। दोनो चुनावों में अमहिया कांग्रेस को मात देकर जीत दर्ज करायी थी। इस बार बसपा से वीडी पांडेय, सपा से पूर्व विधायक लक्ष्मण तिवारी व आम आदमी पार्टी से जनता पार्टी सरकार के पूर्व खाद्य मंत्री सीता प्रसाद की बहू सरतिा पांडेय मैदान में हैं। इन चारों को योद्धा ही माना जा रहा है। वीडी पांडेय पिछले साल जनपद अध्यक्षी अपने घर में रखने में सफल रहे ओर जनता के बीच जा रहे हैं तो लक्ष्मण तिवारी भी पिछले दो तीन सालों से अस्मिता यात्रा निकाल कर सिरमौर के गली कूचे में घूम चुके हैं। इस तरह राज को इन चारों योद्धाओं से चुनौती कड़ी होगी।
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nत्योथर विधानसभा क्षेत्र: कांग्रेस बनाम कांगे्रस का द्वंद्व
nत्योथर विधानसभा क्षेत्र में इस बार कांग्रेस बनाम कांग्रेस के बीच द्वंद्व है। यहां भाजपा ने भी कांग्रेस नेता को अपने सिंबल में उतारा है। कांग्रेस ने रमाशंकर सिंह को मैदान में उतारा है तो भाजपा ने पूर्व कांग्रेस के पूर्व लोकसभा प्रत्याशी सिद्धार्थ तिवारी को मैदान में उतारा है। कांग्रेस प्रत्याशी रमाशंकर तीसरी बार मैदान में हैं। वह पहली बार भाजपा प्रत्याशी रमाकांत तिवारी व दूसरी बार भाजपा के श्याम लाल द्विवेदी को टक्कर दे चुके हैं। रमाशंकर अपने पिता पूर्व विधायक स्व. रामलखन सिंह पटेल सियासी जमीन तो सिद्धार्थ तिवारी अपने बाबा पूर्व विधानसभा की श्रीनिवास तिवारी की सियासी जमीन में वोटों की फसल उगाएंगे। यहीं से भाजपा के बागी महाराजा स्कूल के संचालक देवेंद्र सिंह बसपा से धमक पड़े हैं। स्थानीय होने के कारण वह पिछले कई सालों से जमीन पर काम भी कर चुके हंैं। विधायक व पूर्व विधायक के बेटे का टिकट कटा है इसलिए यहां भाजपा कंडीडेट को डैमेज कंट्रोल होने तक अपने ही दल के विरोध का सामना करना पड़ सकता है।
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nमऊगंज विधानसभा क्षेत्र: पुराने खिलाडिय़ों का फिर आमना-सामना
nमऊगंज में दो पुराने खिलाडिय़ों का आमना सामना हो रहा है। कांग्रेस ने पूर्व विधायक सुखेंद्र सिंह बन्ना को मैदान में उतारा है तो भाजपा ने वर्तमान विधायक प्रदीप पटेल आमने सामने हैं। बन्ना अपने पिछले कार्यकाल की तो प्रदीप पटेल अपने कार्यकाल की उपलब्धियों के साथ लोगों के बीच पहुंच रहे हैं। यहां बसपा व सपा ने पत्ते नहीं खोले हैं। यहां से केवल एक ब्राह्मण प्रत्याशी उमेश त्रिपाठी आप की टिकट पर मैदान में हैं।
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nदेवतालाब विधानसभा क्षेत्र: काका-भतीजे की सियासत
nदेवतालाब विधानसभा क्षेत्र में सियासत रोचक होगी। यहां मप्र विधान सभा अध्यक्ष गिरीश गौतम को उनके सगे भतीजे पद्मेश गौतम चुनौती दे रहे हैं। गिरीश गौतम भाजपा की टिकट पर देवतालाब से चौथीबार मैदान में उतरे हैं तो कांग्रेस की टिकट पर पद्मेश पहली बार। पद्मेश ने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव अपने चचेरे भाई राहुल गौतम से जीतने के बाद लंबी छलांग लगाते हुए अब काका के सामने खड़े हो गए हैं। यहां से बसपा ने पटेल वर्ग का प्रत्याशी उतारा है। पिछले चुनाव में विधानसभा अध्यक्ष से कड़ी टक्कर के बाद महज एक वोटों से हारने वाली सीमा जयवीर सिंह कांग्रेस से टिकट कटने के बाद वह सपा की टिकट पर मैदान में उतरने की तैयारी में हैं। आम आदमी पार्टी ने भी दिलीप सिंह गुड्डू को मैदान में उतारा है। इसलिए यहां काका भतीजे की जंग के बीच कई और योद्धा भी हैं।
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nमनगवां विधानसभा क्षेत्र: प्रत्याशियों से ज्यादा वोटरों में द्वंद्व
nमनगवां विधानसभा अजा आरक्षित होने के कारण यहां प्रत्याशियों से ज्यादा मतदाताओं के बीच द्वंद्व रहता है। भाजपा ने चार बार के विधायक पंचूलाल-पन्नाबाई प्रजापति का टिकट काट दिया गया है। इसके पूर्व भाजपा की टिकट से पति-पत्नी दोनो मिलाकर पांच बार चुनाव लड़ चुके हैं। जिसमें एक बार हार मिली थी। इस बार कांग्रेस ने कहा पूर्व प्रत्याशी बबिता साकेत को फिर अजमाया हैं वहीं दो साल पूर्व कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए इंजी. नरेंंद्र प्रजापति को मैदान में उतारा है। तो रामायण साकेत को उतारा है। नरेंद्र प्रजापति भले ही सियासी मैदान पर पहली बार उतर रहे हैं लेकिन वह पिछले 10 वर्षों में मनगवां की हर गली घर तक अपनी पहुंच बना रखी है।
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nगुढ़ विधानसभा: चेहरे पुराने, सियासत नई
nगुढ़़ विधानसभा क्षेत्र से फिर पुराने चेहरे ही आमने-सामने हैं। पिछले दो चुनावों में दोनो उम्मीदवार अपना दम-खम एक दूसरे को दिखा चुके हैं। अब तीसरी बार फिर सियासी जंग है। पांच बार के विधायक नागेंद्र सिंह बढ़ती उम्र को नजरंदाज कर पुराने उत्साह के साथ फिर मैदान में हैं। इस कांग्रेस की टिकट पर कपिध्वज सिंह पूरी ताकत के साथ मैदान उतरे हैं। वह 2013 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सेकंड रनर व 2018 में सपा की टिकट पर फस्र्ट रनर रहे हैं। यहां इस बार बसपा व सपा ने अभी प्रत्याशी नहीं उतारे हैं। इनके बीच में आम आदमी पार्टी से प्रखर प्रताप सिंह ने इंट्री मारी है।
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