रीवा। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की सुरक्षा में ही सेंध हैं। अस्पताल के पास खुद के सुरक्षाकर्मी ही नहंी है। पद ही स्वीकृत नहीं किए गए। हालात बदतर हैं। उधार के सिक्योरिटी गार्ड के भरोसे ही सुरक्षा व्यवस्था चल रही है। सिर्फ 16 सिक्योरिटी गार्ड लगे हैं। वह भी पर्याप्त नहीं है।
nज्ञात हो कि 150 करोड़ की लागत से सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की शुरुआत हुई। यहां नए पद श्रृजित किए गए। डॉक्टरों से लेकर सुरक्षा कर्मियों, वार्ड ब्वाय, नर्स, हाउसकीपिंग स्टाफ की भी नियुक्ति की रूप रेखा तैयार की गई। शुरुआत में यहां पदस्थ अधिकारियों ने व्यवस्थाओं में ही सेंध लगा दी। शुरुआती दौर में सभी विभाग शुरू नहीं हुए तो वाहवाही लूटने के चक्कर में कई पदों पर ही कटौती कर दी गई। सुरक्षागार्ड की तैनाती के लिए प्रस्ताव ही नहीं भेजा गया। अब यही लापरवाही भारी पड़ रही है। सालों से संचालित हो रहे सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के पास खुद के सुरक्षागार्ड ही नहीं है। यही वजह है कि इन्हें संजय गांधी अस्पताल से उधार मांगना पड़ा। एसजीएमएच से 16 सुरक्षागार्ड सुपर स्पेशलिटी अस्पताल को दिए गए हैं। इन्हीं के भरोसे सुरक्षा व्यवस्था सम्हाली जा रही है। तीन शिफ्ट में इन्हीं के माध्यम से अस्पताल सम्हाला जा रहा है। हर वार्ड, फ्लोर और ओपीडी में सुरक्षा गार्ड चाहिए लेकिन सिर्फ 16 सुरक्षाकर्मियों से यह संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की सुरक्षा व्यवस्था भगवान भरोसे ही कही जाए तो गलत नहीं होगा।
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nवार्ड ब्वाय के पदों में कर दी कटौती
nसुपर स्पेशलिटी अस्पताल की शुरुआत हुई तो यहां के लिए 100 पद वार्ड ब्वाय के लिए स्वीकृत किए गए। शुरुआत में कुछ ही विभाग शुरू हुए तो इनकी जरूरत समझ में नहीं आई। अधिकारियों ने भोपाल से इन पदों में कटौती करा दी। 100 से घट कर संख्या 60 कर दी गई। अब अस्पताल में इतनी भीड़ बड़ी की सम्हाले नहीं सम्हल रहे हैं। 60 वार्ड ब्वाय से भी व्यस्थाएं नहीं सम्हल पा रही हैं। 6 फ्लोर के अस्पताल में एक शिफ्ट में 20 वार्ड ब्वाय से काम लिया जा रहा है। शिफ्ट बाय शिफ्ट इन 60 वार्ड ब्वाय को ही तैनात किया जा रहा है। यही वजह है कि फिर से पदों को बढ़ाने के लिए प्रस्ताव भोपाल भेजना पड़ा है।
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nहाउस कीपिंग की संख्या भी कम
nऐसे ही हालत हाउस कीपिंग में लगे कर्मचारियों के साथ भी है। सुपर स्पेशलिटी में सिर्फ 30 पद हाउस कीपिंग के हैं। एक शिफ्ट में 10 की ड्यूटी लगाई जाती है। तीन शिफ्ट में इन्हें अर्जेस्ट किया जाता है। सभी पद आउट सोर्स से ही भरे गए हैं। इतने कम संख्या में कर्मचारी होने से वार्डों में साफ सफाई की व्यवस्था ही नहीं सम्हल पा रही है।
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nटेक्नीशियन भी हैं कम
nसुपर स्पेशलिटी मे टेक्नीशियन की संख्या कम है। कई विभागों में मशीनें हैं लेकिन इन्हें चलाने वाले टेक्नीशियन नहीं है। यही वजह है कि मरीजों को जांच के लिए परेशानी उठानी पड़ती है। महंगी मशीनें रखी है लेकिन इन्हीं मशीनों को आपरेट करने वाला कोई नहीं है। जांच के लिए बाहर जाना पड़ रहा है। यूरो, कार्डियो, नेफ्रो, न्यूरो आदि विभागों में टेक्नीशियन की बड़ी संख्या में जरूरत है। इन सभी की डिमांड शासन के पास भेजी गई है।
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