सीधी.जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय लूट का अड्डा बना हुआ है। अवैध वसूली की जिम्मेदारी जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में अटैच लिपिकों को मिली हुई है। उनके द्वारा खुलेआम हर कार्य के लिए वसूली की जाती है। तत्संबंध में विभागीय सूत्रों ने बताया कि विभाग के कर्मचारियों से भी यहां के लिपिक वसूली करनें में पीछे नहीं है। यदि उन्हें मुंह मांगी सुविधा शुल्क नहीं दी गई तो विभागीय कर्मचारी भी छोटे से कार्य के लिए महीनों चक्कर काटते रहते हैं।
nजिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में हर कार्य के लिए सुविधा शुल्क की दरें लिपिकों द्वारा निर्धारित कर दी गई हैं। बताया गया है कि विद्यालयों से आने वाले संबंधित प्रपत्रों को जमा करानें में भी लिपिकों द्वारा सुविधा शुल्क की मांग की जाती है। यदि कोई शिक्षा सुविधा शुल्क देने से इंकार कर देता है तो उसे लिपिकों द्वारा कारण बताओ नोटिस मनमानी तौर पर जारी करा दिया जाता है। जिससे संंबंधित शिक्षक उसमें उलझ कर परेशान हों और बाद में भारी भरकम सुविधा शुल्क देकर मामले को समाप्त किया जाए। हैरत की बात तो यह है कि जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. प्रेमलाल मिश्रा को सबकुछ जानकारी होने के बावजूद उनके द्वारा अवैध रूप से अटैच लिपिकों के विरुद्ध कोई कार्रवाई करने की जरूरत नहीं समझी जाती।
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जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में कुछ दिनों से टीसी सत्यापन का कार्य करानें के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से छात्र-छात्राएं आ रहे हैं। विडंबना यह है कि संबंधित लिपिक द्वारा बिना सुविधा शुल्क लिए टीसी सत्यापन का कार्य भी नहीं कराया जा रहा है। तत्संबंध में कई छात्रों ने अपनी समस्या बताते हुए कहा कि टीसी सत्यापन के लिए 100 रुपए की राशि मांगी जाती है। जो छात्र उक्त राशि दे देते हैं उनकी टीसी का सत्यापन कार्य भी जल्द ही पूरा करा दिया जाता है। जो छात्र सुविधा शुल्क देने में लाचार हैं उन्हेंं कई दिनों तक कार्यालय का चक्कर कटवाया जाता है। यदि छात्रों से लिपिक सुविधा शुल्क लेेने में गुरेज नहीं करते तो समझा जा सकता है कि अन्य लोगों से सुविधा शुल्क वसूली को लेकर यह कितना सख्त रहते हैं। जिला शिक्षा अधिकारी का पदभार डॉ. प्रेमलाल मिश्रा के संभालने के बाद सेे अवैध वसूली का गोरखधंधा काफी तेजी के साथ बढ़ गया है। स्कूलों की मान्यता एवं अन्य कार्यों के लिए यहां भारी-भरकम सुविधा शुल्क तय है। अशासकीय विद्यालयों के संचालकों को मालूम है कि जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से कोई भी कार्य बिना सुविधा शुल्क दिए नहीं हो सकता। इस वजह से उनके द्वारा मजबूरी में मुंह मांगी रकम दी जाती है। जिससे जल्द से जल्द काम हो सके। सुविधा शुल्क न मिलने पर कागजों में तरह-तरह की कमियां निकाली जाती हैं। यदि लिपिकों को मुंह मांगी सुविधा शुल्क पकड़ा दी जाए तो चाहे कागज अधूरे ही क्यों न हो काम कुछ घंटे के अंदर ही पूरा हो जाता है। जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा खास लिपिकों के माध्यम से ही सामान्य कागजों को भी बुलाया जाता है। जिससे संबंधित लिपिक उसमें केवल हस्ताक्षर करनें के लिए भी भारी भरकम सुविधा शुल्क वसूल कर सके।
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nमनमानी तरीके से विद्यालयों से अटैच किए गए हैं लिपिक
nजिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में करीब आधा दर्जन ऐसे लिपिक अवैधानिक रूप से अटैच हैं जिनकी पदस्थापना विभिन्न विद्यालयों में है। ऊपरी कमाई की मंशा से यह लिपिक जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में अटैच हैं। जिससे उनके द्वारा जिला शिक्षा अधिकारी के नाम पर अवैध वसूली की दुकान संचालित की जा सके। उक्त लिपिकों को जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से उनके पदस्थापना वाले विद्यालय के लिए मुक्त करनें की मांग लंबे समय से हो रही है लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा उन्हें अपने कार्यालय में ही अटैच करके रखा गया है। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में लिपिकों का अभाव बताकर विद्यालयों में पदस्थ लिपिकों को अपने कार्यालय में मनमानी तरीके से अटैच किया गया है। अटैच किए गए लिपिकों को ऐसे कार्य सौंपे गए हैं जिनके द्वारा उन्हें प्रति दिन अच्छी ऊपरी कमाई हो सके। जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय में विभागीय कार्य के सिलसिले भी दर्जनों कर्मचारियों की आवाजाही प्रतिदिन होती है। जिनके कार्यों को पूर्ण करनें के लिए भी अच्छी खासी वसूली की जाती है।
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nजिले में शिक्षा व्यवस्था के लिए हर साल जिला शिक्षा विभाग कार्यालय को करोड़ों का बजट अलग-अलग मदों के नाम पर मिलता है। जिला शिक्षा अधिकारी डॉ. प्रेमलाल मिश्रा जब से यहां पदस्थ हुए हैं उनके द्वारा विभिन्न मदों में प्राप्त राशियों के खर्च को लेकर पूरी तरह से मुस्तैद हैं। उनके द्वारा यह प्रयास भी किया जा रहा है कि जो राशि विद्यालयों में प्राचार्यों के माध्यम से खर्च होनी है उसमें भी उनका एकाधिकार बना रहे। यहां तक कि आवश्यक सामग्रियों की खरीदी के लिए भी दुकान एवं फर्मो की व्यवस्था बनाई जाती है। जिससे कोई भी खरीदी हो उससे भारी भरकम कमीशन जिला शिक्षा अधिकारी तक पहुंच सके। चर्चा के दौरान कुछ संकुल प्राचार्यों का कहना था कि इस तरह के जिला शिक्षा अधिकारी से पहली मर्तबा सामना हुआ है। इनका पूरा ध्यान केवल विद्यालयों को मिलने वाले बजट पर ही रहता है। उसके संंबंध में तरह-तरह के दबाव बनाए जाते हैं। इस वजह से अधिकांश प्राचार्यों ने खरीदी संबंधी कार्य स्वयं के स्तर से करना ही बंद कर दिया है। जिला शिक्षा अधिकारी के माध्यम से जो निर्देश मिलते हैं उसी के अनुसार राशि खर्च करने की व्यवस्था हो जाती है। जो प्राचार्य इस मामले में कोई आपत्ति नहीं करते हैं उनसे जिला शिक्षा अधिकारी को कोई शिकायत भी नहीं रहती। कुछ प्राचार्य अवश्य ऐसे है जो कि विद्यालय को मिलने वाले बजट को अपने स्तर से खर्च करने के लिए प्रयास करते हैं। इसमें वह कहां तक सफल होते हैं यह संबंधित प्राचार्य ही बता सकते हैं।