Code of conduct screw up, Rewa Municipal Corporation is not able to start this facility:रीवा। नगर निगम प्रशासन द्वारा बीते 8 वर्षों से की जा रही कवायद आखिरकार पूरी हो गई। गैस शवदाह गृह बनकर तैयार हो गया। हालांकि इसे अभी तक शुरू नहीं किया जा सका है। जिसका मुख्य कारण आचार संहिता का पेच है। निगम प्रशासन द्वारा इसके लिए रेट का निर्धारण अभी तक नहीं किया गया है।
आचार संहिता के चलते एमआईसी और परिषद् की बैठक नहीं हो पा रही है, जिसके चलते अब इसे शुरू नहीं किया जा रहा है। जबकि अधिकारियों की मानेे तो वह पूरी तरह से तैयार है और उसे शुरू करना है। बता दें कि इसके शुरू होने के बाद शमशान घाट में होने वाली समस्याओं से छुटकारा मिलेगा। गैस शवदाह गृह का निर्माण 72 लाख रुपए की लागत से कराया गया है।
कोविड काल में आए थे आदेश : बता दें कि वैसे तो नगर निगम परिषद ने वर्ष 2015 में तत्कालीन आयुक्त कर्मवीर शर्मा के कार्यकाल में विद्युत शवदाह गृह बनाने की घोषणा की थी लेकिन उस समय आई टीम ने निरीक्षण में बदरिया को विद्युत शवदाह गृह के लिए सही नहीं बताया था, क्योंकि यह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र था। इसके बाद लगातार इसको लेकर घोषणाएं बजट में होती रहीं लेकिन निर्माण नहीं हुआ।
कोविड काल में शासन स्तर से इसके लिए आदेशित हुआ लेकिन नगर निगम जगह नहीं खोज पाया, लक्ष्मणबाग में भी नदी किनारे जगह चिन्हित की गई लेकिन विरोध के बाद इसे अंतत: बदरिया में ही बनाया गया और विद्युत शवदाह गृह की जगह गैस शवदाह गृह बनाया गया। अधिकारियों की मानें तो यह बाढ़ आने पर भी सुरक्षित रहेगा।
19 किलो गैस होगी खर्च
अधिकारियों की मानें तो इस गैस शवदाह गृह में एक बॉडी को जलाने में औसतन 19 किलो गैस खर्च होगी, यदि बॉडी लगातार जलती हैं तो निगम पर गैस के खर्च का भार कम होगा। बताया गया कि रोजाना 6-7 बॉडी जलाई जा सकती हैं, एक से डेढ़ घंटे का समय बॉडी जलाने में लगेगा। बताया गया कि इससे लकड़ी का उपयोग कम होने से पर्यावरण सुरक्षित रहेगा। फिलहाल निगम ने इसमें शुल्क निर्धारित नहीं किया है। वर्तमान में लकड़ी और पांच हजार रुपए देने का प्रस्ताव गरीब परिवार के लिए है, इससे माना जा रहा है कि गरीब परिवारों को यह नि:शुल्क रहेगा और गरीबी रेखा से बाहर वालों से शुल्क वसूला जा सकता है। वहीं चर्चाओं में कहा जा रहा है कि इसका संचालन किसी एनजीओ के हाथ में दिया जाए तो इससे निगम इसका बेहतर संचालन कर सकता है।