Author: Vindhya Vani

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न शोला न शबनमn कहती आग की दरिया, शोला बनके आई है।nमगर तासीर तेरी नम, तेरे रग रग में छाई है।nछुअन वाले कहते हैं, तू शोला हो नहीं सकती।nये ठंडक भरा जीवन, तू शबनम बनके आई है।nतेरी मुस्कान भी देखा, तेरी देखी ठिठोली भी।nमैं देखा आंख का गुस्सा, इशारा देखा अंगुली की।nफडफ़ड़ाते हैं देखे होंठ, मैं देखा बाजू भी हिलते।nमगर जीवन में तू मेरे, तुहिन कण बनके आई है।nअमित कुमार द्विवेदी, रीवाnnnnnमनnभीड़ में खोया इक प्राणी मात्रnसुनता जीवन में वही है,nजो सुनना चाहता है उसका मन !nशून्य की तलाश में भटकता रहता,nजबकि खाली हाथ आए, और जाना भी खाली ही हाथ…

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