रीवा। अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय में 4 साल पहले लगा रेस्को मॉडल का सोलर पैनल कबाड़ होने लगा है। इन 4 वर्षों में लाखों रूपये बहाने के बाद भी विश्वविद्यालय को पैनल से बिजली नसीब नहीं हो सकी। इसका नजारा आये दिन देखने को मिलता है। गुरुवार की दोपहर भी करीब घंटे भर विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन व पुस्तकालय भवन में बिजली गुल रही। फिर भी सोलर पैनल से इन भवनों को किसी तरह की ऊर्जा नहीं मिल सकी। हर स्थिति में विश्वविद्यालय को विद्युत विभाग द्वारा दिए गए विद्युत कनेक्शन से ही काम चलाना पड़ रहा है, जिसका मासिक 2 से 3 लाख रूपये भुगतान विश्वविद्यालय द्वारा किया जा रहा है। हालांकि विश्वविद्यालय द्वारा विद्युत सप्लाई के समय सोलर पैनल से बिजली उत्सर्जित होने की बात कही जा रही है, जिसकी सत्यपरक पुष्टि अभी नहीं हो पाई है। इस प्रकार विश्वविद्यालय के जिम्मेदारों ने शासन की महत्वाकांक्षी योजना पर जबरदस्त पलीता लगा दिया है। बता दें कि शासन ने विद्युत खर्चे की बचत के लिहाज से सभी शासकीय संस्थानों की छत पर सोलर पैनल लगाने के निर्देश दिए थे। इस निर्देश के पालन में पैसा बहाने में स्वायत्त संस्थान रीवा विश्वविद्यालय लगभग संस्थाओं से आगे निकल गया लेकिन हमेशा की तरह शासन की उक्त योजना यहां रिश्वतखोरी की भेंट चढ़ गई। यही वजह है कि सोलर पैनल स्थापना दिनांक से आज तक सेवा देने लायक नहीं बन सका।
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n25-25 किलोवाट के हैं पैनल
nगौरतलब है, जनवरी 2019 में विश्वविद्यालय प्रशासनिक भवन व लाइब्रेरी भवन में ग्रिड कनेक्टेड सोलर रूफटॉप स्थापित हुआ है। इंदौर की उजास एनर्जी लिमिटेड ने 25-25 किलोवॉट के दो सोलर पैनल लगाये हैं। सोलर पैनल लगाने का उद्देश्य बिजली बिल में कटौती व विश्वविद्यालय को पर्याप्त बिजली उपलब्ध कराना रहा। अब जिम्मेदार अधिकारियों के ऐसे कारनामों के कारण विश्वविद्यालय कोष को दोतरफा चपत भी लग रही है।
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nभुगतान में गड़बड़ी की आशंका
nस्थापना के समय भुगतान में भी गड़बड़ी की आशंका जाहिर की जाती रही। चूंकि विश्वविद्यालय के मुताबिक पैनल की स्थापना में अनुमानित 35 लाख खर्च हुए। पैनल लगाने वाली इंदौर की कंपनी 30 लाख का भुगतान बताती रही। इधर, बिना कार्यादेश क्रमांक के विश्वविद्यालय ने मार्च 2018 में बिल नंबर 171 में 26 लाख 68 हजार 650 रुपये का भुगतान संबंधित को किया। इसके तीन महीने बाद 8 लाख के लगभग और राशि सोलर पैनल लगाने वाली एजेंसी को देने की जानकारी है। चर्चा रही कि इंदौर की उजास कंपनी ने सतना से जुड़ी एजेंसी के जरिये उक्त काम कराया, जिसमें 40 प्रतिशत कमीशन वितरित होने की सुर्खियां विश्वविद्यालय के गलियारों में रहीं।
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nयूजीसी से मिला था पैसा
nसोलर पैनल के इस फोटोवोल्टैइक पॉवर प्लांट को स्थापित करने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने राशि जारी की थी। यूजीसी ने 12वीं पंचवर्षीय योजना की जनरल डेवलपमेंट असिस्टेंस स्कीम के तहत विश्वविद्यालय को 2 करोड़ 44 लाख रुपये दिए थे। विगत 17 जुलाई 2017 को यूजीसी ने आवंटन पत्र जारी किया, जिसके बाद विश्वविद्यालय ने 18 अगस्त 2017 को बैठक बुलाई। बैठक के निर्णयानुसार पत्र क्रमांक विकास/2017/605 में कई निर्माण, मरम्मत कार्यों के लिए राशि का बंटवारा हुआ। इसी बंटवारे में 35 लाख रुपये यूसिक विभाग को सोलर पैनल लगवाने दिया गया।
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nऑडिट आपत्ति के बाद भी एडवांस हुआ था भुगतान
nविश्वविद्यालय ने सोलर पैनल की स्थापना के 10 महीने पहले ही एजेंसी को एडवांस पैसा भुगतान कर दिया था। जबकि पैनल की स्थापना जनवरी 2019 हुई। सूत्रों के मुताबिक विश्वविद्यालय ने तत्कालीन जिला अक्षय ऊर्जा अधिकारी के माध्यम से सोलर पैनल लगाने की कार्यवाही की थी, तब संंबंधित कंपनी का स्टीमेट न होने व एडवांस भुगतान करने पर ऑडिट ने आपत्ति लगा दी थी। फिर भी ऑडिट आपत्ति का निराकरण किये बगैर विश्वविद्यालय ने संबंधित को भुगतान कर दिया।
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