रीवा। जिले में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के दावे खोखले साबित हो रहे हैं। सबसे अधिक मातृत्व सुरक्षा की बात की जा रही है लेकिन हकीकत यह है कि मातृत्व सुरक्षा के नाम पर सिर्फ सरकारी आंकड़े ही तैयार किए जा रहे हैं। जिला मुख्यालय में जिला अस्पताल में ही मातृत्व सुरक्षा की योजनाएं दम तोड़ रही हैं। यहां सबसे अधिक समस्या प्रसूताओं को ही हो रही है। बता दें कि प्रसूताओं के लिए सोनोग्राफी तक की सुविधा जिला अस्पताल में उपलब्ध नहीं है। इसके लिए प्रसूताओं को दर-दर भटकना पड़ रहा है। हालांकि पोर्टेबल मशीन से गर्भवती महिलाओं की सोनोग्राफी का दावा किया जा रहा है लेकिन हकीकत यह है कि इसका लाभ भी महिलाओं को नहीं मिल रहा है।
डेढ़ वर्ष से मशीन ही नहीं
बता दें कि जिला अस्पताल में सोनोग्राफी की सुविधा बीते डेढ़ वर्ष से बंद है, सोनोग्राफी मशीन खराब होने के बाद से यहां यह सुविधा उपलब्ध नहीं हो सकी और मरीज भटक रहे हैं। बता दें कि जेपी प्रबंधन ने एक खटारा मशीन दान में दी भी तो वह चल नहीं सकी। बीच में अस्पताल प्रबंधन ने फिर नई मशीन मिलने का दावा किया लेकिन अब वह खराब होने की बात की जा रही है। मशीन है या नहीं यह भी स्पष्ट नहीं हैं। फिलहाल मरीज भटक रहे हैं।
1200 रुपए तक का खर्च
बताया गया कि नार्मल सोनोग्राफी होने में करीब 1200 रुपए तक का खर्च करना पड़ता है, इमरजेंसी होने पर यह खर्च और बढ़ जाता है। बता दें कि सबसे अधिक समस्या गर्भवती महिलाओं को होती है। आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं को ज्यादा समस्या होती है, जिला अस्पताल से उन्हें सोनोग्राफी के लिए बाहर भेजा जाता है। जिससे उन्हें आर्थिक क्षति के साथ-साथ मुसीबतों का सामना करना पड़ता है।
जिले भर में परेशानी
सोनोग्राफी की समस्या केवल जिला अस्पताल में नहीं बल्कि जिले भर के स्वास्थ्य केन्द्रों में है, हैरानी इस बात की है लगातार जिले की रैंक भी फिसड्डी होती जा रही है लेकिन मातृत्व सुरक्षा के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे हैं। जिला अस्पताल प्रबंधन ने शासन से कई दफा मांग की लेकिन समस्या का समाधान नहीं हो सका।