रीवा। इस बार रीवा लोकसभा क्षेत्र का चुनाव बिना अमहिया कांग्रेस के होगा। हालांकि कांग्रेस ने अमहिया कांग्रेस पर 7 बार भरोसा जताया था, लेकिन अमहिया कांग्रेस का ही कांग्रेस से भरोसा टूट गया। अमहिया कांग्रेस के वारिस ने कांग्रेस से नाता तोड़ लिया। उन्होंने पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस की टिकट पर लड़ा, लेकिन साढ़े चार साल बाद 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अलविदा कह कर भाजपा का दामन थाम लिया। हालांकि ऐसा सौदा उनके लिए फायदेमंद रहा और वह भाजपा की टिकट पर त्योंथर विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी हैं। इतिहास के पन्ने पर नजर दौड़ाई जाय तो पिछले 17 चुनावों में 7 बार विंध्य में कांग्रेस की धुरी कहे जाने वाले पूर्व विधानसभा अध्यक्ष स्व. श्रीनिवास तिवारी परिवार को कांग्रेस ने अजमाया था। यह अलग बात है कि सफलता केवल एक बार 1999 में मिली।
यदि हम रीवा लोकसभा क्षेत्र के अब तक हुए चुनावों के संबंध में बात करें तो 17 बार चुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस ने सिर्फ 15 बार ही प्रत्याशी उतारे। इमरजेंसी व उसके बाद के चुनाव में कांग्रेस ने कोई प्रत्याशी उतारा ही नहीं। रीवा के राजनीतिक पंडित बताते हैं कि इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव व 1980 के चुनावों में कांग्रेस ने निर्दलीय प्रत्याशी रीवा महाराजा मार्तण्ड सिंह को समर्थन दे दिया था। हालांकि मार्तण्ड सिंह को कांग्रेस टिकटvदेना चाह रही थी, लेकिन वह तैयार ही नहीं हुए तो कांग्रेस नेदो दशक बाद अमहिया कांग्रेस के बाहर का प्रत्याशी कांग्रेस ने दो दशक बाद अमहिया कांग्रेस से बाहर का प्रत्याशी पहली बार मैदान में उतारा है। वह भी जब अमहिया कांग्रेस का अवसान हो गया। कांग्रेस ने इस बार सेमरिया विधायक अभय मिश्रा की पत्नी पूर्व विधायक नीलम मिश्रा पद दांव लगाया है।
कहा जा रहा है कि विधानसभा चुनाव में जब रीवा की 8 सीटों में 7 में कांग्रेस हार गई तब भी आनन फानन में कांग्रेस में आएअभय मिश्रा ने सेमरिया में अपने चुनावी मैनेजमेंट के दम परकांग्रेस की साथ बचा ली। इसी भरोसे पर कांग्रेस ने लोकसभाका भी टिकट उनकी पत्नी को दिया है लेकिन देखना है कि इस बार उनका चुनाव मैनेजमेंट कितना कारगर असर करता है।
अपना प्रत्याशी ही नहीं उतारा। 1977 के पूर्व हुए पांच चुनावों में कांग्रेस ने केवल ब्राह्मण नेताओं को मौका दिया, जिसमें पहली बार 1951 में राजभानु सिंह तिवारी को और शिवदत्त उपाध्याय व शंभूनाथ शुक्ल को दो-दो बार मैदान में उतारा। 1984 के लोकसभा चुनाव में महाराजा मार्तंड सिंह कांग्रेस के चुनाव चिन्ह पर चौथी बार मैदान में उतरे। इसके बाद के 9 चुनावों में 1989 में महारानी प्रवीण कुमारी व 1998 के चुनाव में वैश्य समाज से मदनमोहन गुप्ता को उतारा गया। कांग्रेस ने 1991 में श्रीनिवास तिवारी, 1996 में सुंदरलाल तिवारी को उतारा। 1999 चुनाव के बाद सुंदरलाल तिवारी को लगातार प्रत्याशी बनाया। पिछले चुनाव में तिवारी परिवार की तीसरी पीढ़ी को मौका दिया था लेकिन वह भी असफल रहे।
अब तक के कांग्रेस प्रत्याशी
चुनाव वर्ष
प्रत्याशी
हारे/जीते
1951
राजभानु सिंह तिवारी
जीते
1957
शिवदत्त उपाध्याय
जीते
1962
शिवदत्त उपाध्याय
जीते
1967
शंभूनाथ शुक्ल
जीते
1971
शंभूनाथ शुक्ल
हारे
1977
कोई नहीं
1980
कोई नहीं
1984
महाराजा मार्तंड सिंह
जीते
1989
महारानी प्रवीण कुमारी सिंह
हारी
1991
श्रीनिवास तिवारी
हारे
1996
सुंदरलाल तिवारी
हारे
1998
मदन मोहन गुप्त
हारे
1999
सुंदरलाल तिवारी
जीते
2003
सुंदरलाल तिवारी
हारे
2009
सुंदरलाल तिवारी
हारे
2014
सुंदरलाल तिवारी
हारे
2019
सिद्धार्थ तिवारी राज
हारे
2024
नीलम मिश्रा
मैदान में