रीवा। लोकतांंत्रिक सरकार के गठन के लिए आजदी के बाद रीवा लोकसभा क्षेत्र के लिए अब तक हुए चुनावों में 268 कंडीडेटों ने अपना भाग्य अजमाया लेकिन अभी तक 12 को ही सफलता मिल पायी है, शेष को निराशा हाथ लगी। इनमें कई को दो से तीन बार सांसद बनने का मौका मिला। जनतांत्रिक सरकार चुनने के लिए पहली बार 1951 में आम चुनाव हुए। पहले आम चुनाव से लेकर 2019 तक हुए रीवा संसदीय क्षेत्र के लिए 17 चुनावों में अब तक 268 उम्मीदवार चुनाव लड़े। यह अलग बात है कि 234 उम्मीदवारों को पराजय का मुंह देखना पड़ा। सांसद बनने का अवसर केवल 12 उम्मीदवारों को ही मिला है। देखा यह गया है कि इमरजेंसी के बाद लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की बाढ़ आई। 1996 में तो सर्वाधिक 75 प्रत्याशी मैदान में थे, जबकि उससे पहले के 6 चुनावों में प्रत्याशियों की संख्या अधिकतम 9 ही रही। इससे यह कहना गलत न होगा कि लोगों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति विश्वास व जागरुकता आपातकाल के बाद आई। यही कारण है कि उसके बाद के हर चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या 10 से ऊपर रही।
उल्लेखनीय है कि आजादी के पूर्व में देश छोटे-छोटे राज्यों व कबीलों में बटा था और राजतंत्रीय व्यवस्था थी। यानी जनता का रहनुमा या उन पर राज करने वाला माँ की कोख से जन्म लेता था। राज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा के आगे जनता के हित गौड़ होते थे। समय के साथ आयातित शासकों ने देश की जनता पर न केवल मनमर्जी थोपी अपितु सितम भी ढाए। राजकोषीय घाटा पूरा करने के लिए मनमानी टैक्स लगाकर कोड़े के दम पर वसूली भी करते रहे। 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो पहली बार देश में संवित सरकार बनी। 26 जनवरी 1950 को देश का संवैधानिक ढांचा तैयार होने के बाद लोकतांत्रिक सरकार के गठन के लिए देश में पहली बार 1951 में आम चुनाव हुए। पहली बार चुनाव होने के कारण रीवा संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 2 लाख 84 हजार 152 थी और पांच प्रत्याशी मैदान में थे। इनमें मुख्य रूप से राजभानु सिंह तिवारी, राव कमलाकर सिंह, देवीशंकर खंडेलवाल, मुनि प्रसाद शुक्ला व ब्रजेंद्रनाथ रहे। राजभानु सिंह ने साढ़े 26 हजार वोट पाकर रीवा के पहले सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। दूसरे चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या बढ़ कर 8 हुई। 1971 व 77 के चुनाव में 4-4 प्रत्याशी ही रहे। इसके अलावा हर चुनाव में मतदाताओं के साथ ही प्रत्याशियों की संख्या में इजाफा हुआ।
किस चुनाव में कितने प्रत्याशी
लोससभा चुनाव प्रत्याशी मतदाता
1951 05 2.84 लाख
1957 08 3.95 लाख
1962 09 4.46 लाख
1967 07 5.59 लाख
1971 04 5.98 लाख
1977 04 6.59 लाख
1980 11 7.18 लाख
1984 14 8.01 लाख
1989 23 10.58 लाख
1991 16 10.72 लाख
1996 75 12.81 लाख
1998 14 13.00 लाख
1999 14 13.69 लाख
2004 12 14.61 लाख
2009 15 12.48 लाख
2014 14 15.44 लाख
2019 23 16.79 लाख
2024 — 18.45 लाख
2009 के चुनाव के पूर्व थे सवा दो लाख फर्जी मतदाता?
जनसंख्या वृद्धि के साथ ही हर साल पांच साल में मतदाताओं का बढऩा स्वाभाविक प्रक्रिया है। पहले चुनाव के बाद से देख जाय तो हर पांच साल में एक लाख से अधिक मतदाताओं की वृद्धि हुई है। लेकिन 2009 के चुनाव में 2.13 लाख मतदाता मतदाता कम हुए। यानी यह कहना गलत न होगा कि 2004 के चुनाव में फर्जी मतदाता थे, जिन्हें हटाया गया। उल्लेखनीय है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवास तिवारी के कार्यकाल में यह आरोप लगे थे की फर्जी वोटिंग कराने के लिए फर्जी मतदाताओं के नाम जोड़वाए गए हैं। शिकायत पर आयोग की टीम ने जांच की थी और मनगवां विधानसभा क्षेत्र के मढ़ी गांव में एक घर में 1100 मतदाता मिले थे। अभियान के तहत कार्रवाई की गई और 2004 के आम चुनाव के 14.61 लाख में से 2009 के चुनाव के लिए 12.48 लाख मतदाता ही बचे। लेकिन 2014 के चुनाव में लगभग 3 लाख मतदाता फिर बढ़ गए। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में लगभग 60 हजार डुप्लीकेट मतदाताओं का नाम फिर हटाया गया था।
17 चुनावों में 15.61 लाख बढ़े मतदाता
रीवा लोकसभा क्षेत्र में अब तक हुुए 17 चुनावों में 15.61 लाख बढ़ेे। पहले चुनाव में मतदाताओं की संख्या 2,84,152 थी जो अब बढ़कर 18,45,102 हो गई है। इस तरह कहा जा सकता है कि विगत 73 सालों में मतदाताओं की संख्या में 8 गुना वृद्धि हुई है।
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