,रीवा। हैरानी की बात है कि सत्ताधारी नेता सुपर स्पेशलिटी की सौगात बताते भाषणों में नहीं थक रहे है लेकिन सच्चाई यहीं है कि उपचार व जांच सुविधाओं के लिए अब भी मरीज बाहरी राज्यों पर निर्भर है। यह कैसा विकास है यह तो समझ के परे है लेकिन स्थानीय सत्ताधारी नेताओं द्वारा दिए जा रहे प्रवचन जरुर जनता में आक्रोश का कारण बन रहे है। भले की प्रदेश में भाजपा सरकार विकास का दावा कर रहीह हो लेकिन आज तक इस प्रकार की बिमारियों के लिए जांच सुविधा प्रदेश भर में वह उपलब्ध नहीं करा पाई है। संभाग भर में अनुवांशिक बीमारी से पीडि़त बच्चों की संख्या मे दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है। कारण यह कि गर्भ में पल रहा बच्चा किस गंभीर बीमारी से पीडि़त है, इसका पता चिकित्सक नहीं लगा पा रहे हैं जिससे अस्पताल में ऐसे प्रसव हो रहे हैं जो लाइलाज बीमारी से पीडि़त हैं जो भविष्य में चलने, फिरने, बोलने आदि में असमर्थ हा जाते है। संभाग भर से ऐसे विकलांग बच्चे इलाज के लिए प्रतिदिन दो दर्जन से अधिक आ रहे हैं, जिन्हें बीमारियां अनुवांशिक कारणों से हो रही हैं। लेकिन यहां पदस्थ चिकित्सक विकलांगता का कारण नहीं जान पा रहे हैं। कारण यह है कि अस्पताल में जेनेटिक जांच की मशीन उपलब्ध ही नहीं है। बताया गया है कि यहां के मरीज पीजीआई लखनऊ, बनारस और दिल्ली जैसे बड़े शहरो में जांच के लिए जा रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार श्यामशाह मेडिकल कालेज रीवा स्थित रिसर्च यूनिट में कुछ जेनेटिक जांच शुरू करने के लिए बजट भी आया लेकिन अभी तक इसकी शुरूआत नहीं हो पाई है।
जेनेटिक लैब उपलब्ध होने से गर्भ ठहरने के ढाई माह में पल रहा बच्चा किस बीमारी से पीडि़त है, उसकी जानकारी समय रहते मिल सकती है। यदि गर्भ में ही बच्चे के अनुवांशिक लाइलाज बीमारी से पीडि़त होने की जानकारी मिल जाये तो उसे टर्मिनेट का प्रावधान है। वहीं जांच की सुविधा न होने से चिकित्सक द्वारा केवल संदेह के आधार पर इलाज किया जाता है। बच्चे जिन अनुवंाशिक बीमारियों से पीडि़त होकर अस्पताल पहुंच रहे हैं उनमें मस्कुलर डिस्ट्रॉफी, थैलेसीमिया, हीमोफीलिया, डाउन सिंड्रोम आदि अन्य रोग हैं, जिनके बारे में जानकारी जेनेटिक लैब से मिल सकती है।
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