रीवा। किसी भी घटना की विवेचना करने वाले विवेचक को उस समय खुशी मिलती है, जब आरोपी को न्यायालय में सजा मिलती है। यदि न्यायालय ने आरोपी को निर्दोष बरी कर दिया तब विवेचक को इस बात की हैरानी होती है कि विवेचना में आखिर कहां चूक हो गई जिसका फायदा आरोपी उठा ले गया। कई ऐसे विवेचक है जो अपनी जिंदगी विवेचना में खपा दी और आरोपी को न्यायालय से लाभ मिल गया। लेकिन सोहागी थाना में निशा खूता एक ऐसी महिला उप निरीक्षक है जो महज चार साल की नौकरी में मासूम से की गई दरिंदगी की विवेचना कर आरोपी को जीवन पर्यन्त तक के लिए सलाखों के पीछे धकेल दिया। इस उपब्धि में एक ओर जहां एसपी नवनीत भसीन की भूमिका सराहनीय है तो वहीं दूसरी ओर एसडीओपी सोहागी समरजीत सिंह परिहार की भी अहम भूमिका रही है। घटना जनेह थाना क्षेत्र के ग्राम महुली गांव की है, जहां तीन माह पूर्व गांव का ही दरिंदा शैलेंद्र आदिवासी पिता जगदीश आदिवासी 19 वर्ष ने 3 साल की मासूम के साथ दरिंदगी की थी। जिसे न्यायालय ने अलग-अलग धाराओं में सजा सुनाते हुये जीवन पर्यन्त के लिए सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
घटना तीन माह पूर्व 6 अक्टूबर 21 के रात की है। गांव की एक महिला अपनी 3 साल की बच्ची को आंचल में छुपा कर सो रही थी। वहीं से ददिंदा शैलेंद्र आदिवासी निकला और उसकी नजर मां के आंचल में छुपी मासूम पर जा पड़ी। आरोपी सो रही मां के आंचल से मासूम को उठा कर घर के पीछे ले गया और वहां उसके साथ ददिंगी की। बच्ची जब रोने लगी तो आरोपी मासूम को वापस वहीं मां के पास लिटा दिया। इस बीच मां की नींद खुली और अपनी बच्ची को देखा तो उसके होश उड़ गये। और आरोपी द्वारा किये गये घिनौने कृत्य की जानकारी घर के लोगों को दी। गांव में शोर मच गया जिसकी आवाज थाना प्रभारी जनेह तक के कानों में जा गूंजी। थाना प्रभारी बिना देर किये घटना स्थल पर जा पहुंचे और दरिंदे को धर दबोचा।
पीडि़त मासूम को पुलिस ने रात्रि ही उपचार के लिए रीवा स्थित संजय गांधी अस्पताल ले आई। उसकी हालत नाजूक बताई जा रही थी। घटना की जानकारी लगते ही कलेक्टर, एसपी अस्पताल जा पहुंचे और डॉक्टरों से मासूम के उपचार में कोई कोताही न बरते जाने की बात की। डॉक्टरों ने अथक प्रयास कर मासूम को स्वस्थ्य कर दिया। कुछ दिनों बाद अस्पताल से उसकी छुट्टी कर दी गई थी।
पुलिस और समाज के लिए यह बड़ी उपब्धि मानी जा रही है। किसी भी प्रकरण में चाहे वह गंभीर अपराध ही क्यों न हो आरोपी को कई वर्षो तक न्यायालय के फैसले का इंतजार करना पड़ता है। लेकिन तीन साल की मासूम के साथ हुई हैवानियत पर त्योंथर एडीजे न्यायालय ने भी प्रकरण को संज्ञान में लेते हुये तीन महीने के अंदर ही अपना फैसला सुना दिया। आरोपी को आईपीसी की धारा 450 में 10 वर्ष की सश्रम सजा, धारा 366 में 10 वर्ष की सश्रम सजा और पास्को एक्ट के साथ ही आईपीसी की धारा 376 (ए)(बी) में जीवन पर्यन्त तक सलाखों के पीछे रहने की सजा सुनाई गई।
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