रीवा। रानीतालाब के सौंदर्यीकरण में हैदर अब्बास का मकान जमींदोज किया गया था। मकान और जमीन के बदले पीडि़त ने कोर्ट की शरण ली थी। कोर्ट ने भूमि का अधिग्रहण कर उचित मुआवजा देने के निर्देश दिए थे। इस फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील प्रशासन ने की, लेकिन अदम पैरवी खारिज हो गई। इसी प्रकरण में 2 करोड़ 95 लाख प्रतिकर का इजराय जिला न्यायालय में लगा था। इसे सरकारी अधिवक्ता के तर्कों को सुनने के बाद खारिज कर दिया गया है।
मामला रानीतालाब के सौंदर्यीकरण के दौरान फंसे मकान और जमीन से जुड़ा हैं। वर्ष 2007-08 के दौरान सौंदर्यीकरण में हैदर अब्बास जैउदी तनय अलमदार जैदी का भी मकान फंसा था। भूखंड क्रमांक 4001, अंश रकवा 1760 वर्गफीट जमीन फंसी थी। इस पर रिहायशी मकान भी बना था। सौंदर्यीकरण के दौरान मकान और जमीन प्रभावित हुई थी। इसके बदले मुआवजा को लेकर प्रभावित व्यक्ति ने कोर्ट में याचिका दायर की थी। कोर्ट में 12 लाख रुपए क्षतिपूर्ति राशि वादीगण को दिलाए जाने की वाद प्रस्तुत किया गया था। तब प्रथम अतिरिक्त न्यायाधीश संजय शुक्ला ने आदेश जारी करते हुए वादग्रस्त भूमि रकवा 1760 वगफीट की भूमि और उस पर निर्मित भवन के एवज में भू अर्जन अधिनियम के तहत विधि अनुसार मुआवजा देने का आदेश दिए थे।
इसी निर्णय के खिलाफ प्रशासन ने हाईकार्ट में भी अपील की थी लेकिन अदम पैरवी में प्ररकण खारिज हो गया था। इसी मामले में वादीगण के अधिवक्ता ने 2 करोड़ 95 लाख 84 हजार 483 रुपए प्रतिकर राशि की वसूली के लिए इजराय प्रकरण कोर्ट में प्रस्तुत किया। इसकी पैरवी सरकारी अधिवक्ता कुंवर बहादुर सिंह ने किया। अधिवक्ता कुंवर बहादुर सिंह ने बताया कि उन्होंने कोर्ट में तर्क रखा कि निर्णय दिनांक 16 अप्रैल 2015 के अनुसार भू अर्जन अधिनियम के अनुसार डिक्रीदार मुआवजा राशि प्राप्त कर सकते हैं लेकिन डिक्रीदार ने भूअर्जन अधिनियम में दिए गए प्रावधान का बिना पालन किए स्वयं प्रतिकर राशि का मूल्यांकन कर यह इजराय प्रकरण प्रस्तुत किया है, इसलिए यह इजराय प्रकरण प्रचलनशील नहीं है।
दोनों पक्षों का तर्क सुनने के बाद पंचम जिला न्यायाधीश विवेकानंद त्रिवेदी ने आदेश में कहा कि निर्णय दिनांक 16 अप्रैल 2015 की कंडिका 20 के अनुसार वादीगण वादग्रस्त भूमि रकवा 1760 वर्गफीट की भूमि और उस पर निर्मित भवन का मुआवजा भू अर्जन अधिनियम के अनुसार प्राप्त करनेे के हकदार हैं। भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता अधिकार अधिनियम 2013 की धारा 23 से लेकर 30 तक में जो प्रावधान दिए गए हैं उसके अनुसार भूमि अर्जन के संबंध में प्रतिकर निर्धारित करने की शक्ति और उसके संबंध में अधिनिर्णय पारित करने का अधिकार कलेक्टर को है। इस प्रकरण में इसका पालन नहीं किया गया है। वादीगण ने भूमि अर्जन अधिनियम के अनुसार प्रतिकर राशि निर्धाीित किए जाने के लिए कलेक्टर रीवा के समक्ष कोई आवेदन या कार्रवाई प्रस्तुत नहीं किया है।
जब तक कलेक्टर के द्वारा भूमि अर्जन अधिनियम के अनुसार वादग्रस्त भूमि और उस पर निर्मित भवन के प्रतिकर राशि का निर्धारण नहीं कर दिया जाता है तब तक निर्णय व डिग्री दिनांक 16 अप्रैल 2015 के अनुसार यह इजराय प्रकरण प्रचलनशील नहीं हो सकता। न्यायाधीश ने इजराय प्रकरण को प्रचलनशील नहीं होने पर खारिज कर दिया है।