रीवा। रीवा सहित विंध्य के सभी जिलों में अतिकुपोषण ज्यादा है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों में कुपोषण की समस्या रहती है। अतिकुपोषित बच्चों के शरीर में दूसरे अन्य जीन्स होते हैं, जिसका अध्ययन होना चाहिए। यह पुष्टि श्यामशाह मेडिकल कॉलेज की मल्टी डिसीप्लीनरी रिसर्च यूनिट ने की है। चार साल के शोध अध्ययन के बाद यूनिट इस निष्कर्ष पर पहुंची है। अतिकुपोषण के कारण बच्चों के हृदय पर दुष्प्रभाव डालने वाले कारकों पर यूनिट ने अध्ययन किया है। यूनिट के अध्ययन के मुताबिक जो जीन्स हृदय का निर्माण करते हैं, उससे अलग जीन्स होने के कारण वह बच्चों के हृदय पर दुष्प्रभाव डालते हैं। यूनिट द्वारा किए गए इकोटेस्ट से पता चला हैं कि अतिकुपोषित बच्चों के शरीर में इकोपैरामीटर पूरी तरह से असामान्य है। यूनिट ने अपनी रिपोर्ट में कुपोषित बच्चों और सामान्य बच्चों की लिपिड प्रोफाइल में कोई अंतर नहीं पाया। इस शोध में यूनिट ने अनुशंसा करते हुए लेख किया है कि कुपोषण से ठीक होने के बाद भी इकोटेस्ट कर उसकी स्थिति पता किया जाना चाहिए। कुपोषण बच्चों के हृदय पर बुरी तरह प्रभाव डालता है। वहीं, कुपोषण से उबरकर बड़े होने पर भी हृदय विकार संबंधी समस्या का खतरा बना रहता है।
ऐसे बच्चों पर किया अध्ययन
यह शोध पूर्व विभागाध्यक्ष शिशु एवं बाल्य रोग विभाग डॉ ज्योति सिंह ने वर्ष 2019 में प्रारम्भ कराया था। इस अध्ययन में यूनिट ने 100 अतिकुपोषित व 100 सामान्य बच्चों पर इकोकार्डीयोग्राफी, हीमोग्राम, लिपिड प्रोफाइल एवं 6 वसा संबंधी जीन का अध्ययन किया। वर्तमान में इस परियोजना का नेतृत्व डॉ जीतेंद्र सिंह कर रहे थे। शोध परियोजना में डॉ ज्योति, डॉ जीतेंद्र के अलावा डॉ सुधाकर द्विवेदी, डॉ संजय पाण्डेय, विनीत शाह, भृगु सिंह, विवेक चमकेल सम्मलित रहे।
क्या कहते है विशेषज्ञ
पीडियाट्रिक विभाग के डॉ.जीतेन्द्र सिंह ने कहा कि वैसे तो अतिकुपोषित बच्चों में हर तरह के रोगों का खतरा रहता है। हमने हृदय विकार संबंधी समस्याओं का अध्ययन किया है। इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि कुपोषण के कारण होने वाली बीमारियों से हम बच्चों को बचा सकें। कुपोषितों को 18 वर्ष की आयु होने तक हम ओपीडी में इलाज के लिए बुलाते हैं और दवा देते हैं। शोध के जरिये हम कह सकते हैं कि कुपोषित बच्चों की और ज्यादा मानिटिरिंग करने की जरूरत है।