रीवा। अवधेश प्रताप ङ्क्षसह विश्वविद्यालय को राज्य सरकार ने सालाना अनुदान के नाम पर फूटी कौड़ी नहीं दी। सत्र 2020-21 में आधी राशि ही दी थी। फिर सत्र 2021-22 में बिल्कुल भी सालाना अनुदान राशि राज्य सरकार ने जारी नहीं की। अब अगले सत्र में भी अनुदान राशि मिलने की उम्मीद नहीं है। यानि पूरी तरह से हर तरह के खर्च का बोझ उठाने विश्वविद्यालय को छोड़ दिया। सम्भवत: आत्मनिर्भर मप्र योजना के तहत राज्य सरकार ने यह कमाल किया है। इधर, राज्य सरकार से जो भी थोड़ी बहुत राशि मिल रही थी, वह भी न मिलने से अब विश्वविद्यालय के अधिकारियों में निराशा है। वैसे भी लगभग पिछले 32 साल से विश्वविद्यालय के खर्च की पूर्ति छात्रों से मिल रहे शुल्क से हो रही है। उच्च शिक्षा विभाग द्वारा पिछले 3 साल में कई दफा विश्वविद्यालय से प्रस्ताव मांगे गए। साथ में विभिन्न प्रकार की जानकारियां भी विभाग ने विश्वविद्यालय से एकत्रित की। आखिर में उक्त सभी दस्तावेजों के साथ हुई बैठकें फाइलों में सिमट गईं। उक्त सभी कार्यवाही भी अब ठंडी पड़ चुकी है। इस अवधि में विश्वविद्यालय का न तो सालाना अनुदान बढ़ा और न ही किसी प्रकार का आश्वासन विश्वविद्यालय को मिल सका।
कोरोना के कारण चलाई थी कैंची
मप्र शासन उच्च शिक्षा ने सत्र अप्रैल 2020 में विश्वविद्यालय को 1 करोड़ 2 लाख 72 हजार रूपये मात्र अनुदान जारी किया था। अनुदान की शेष राशि भुगतान करने की बात कही गई थी, परंतु विभाग ने जुलाई 2020 में जारी करने के लिए कहा था लेकिन आज तक नहीं किया। कोविड-19 के कारण निर्मित आपात स्थिति के चलते तब विभाग ने अनुदान में कैंची चलाई थी। अब दूसरी किस्त तो छोडि़ए सालाना अनुदान देना ही शासन भूल गया है।
पहले भी भेजा था 25 करोड़ का प्रस्ताव
बताते हैं कि गत फरवरी 2019 में विभाग के पूर्व में विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने विश्वविद्यालय कुलपति और कुलसचिव की बैठक ली थी। इस बैठक में एसीएस ने सालाना अनुदान की जानकारी विश्वविद्यालय अधिकारियों से ली थी। सालाना अनुदान कम होने पर एसीएस ने विश्वविद्यालय अधिकारियों से जरूरत के हिसाब से प्रस्ताव पेश करने के लिए कहा था। उक्त निर्देश पर ही विश्वविद्यालय ने सालाना अनुदान वृद्धि 25 करोड़ तक का प्रस्ताव विभाग को भेजा, जो अब तक डम्प पड़ा है।
2 करोड़ मासिक वेतन में खर्च
विश्वविद्यालय को मार्च 2019 तक सालाना अनुदान 3 करोड़ 21 लाख के लगभग राज्य शासन से मिलता रहा है। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से विकास राशि न के बराबर मिलती है। इसके विपरीत नियमित शिक्षकों, अतिथि विद्वानों व सभी तरह के कर्मचारियों को विश्वविद्यालय मासिक 2 करोड़ 10 लाख रुपये वेतन बांटता है। यानि राज्य शासन जो सालाना अनुदान देता रहा, वह ऊंट के मुंह में जीरा ही था।
1992 के बाद नहीं बढ़ा अनुदान
वर्ष 1992 के बाद राज्य सरकार ने किसी भी विश्वविद्यालय के सालाना अनुदान में इजाफा नहीं किया है। विश्वविद्यालय अधिकारी-कर्मचारियों को उसके बाद पांचवां और छठवां वेतनमान भी दिया जा चुका है, जिसका भुगतान विश्वविद्यालय अपने आय स्रोत से कर रहा है। अब सातवां वेतनमान का भार भी फिलहाल विश्वविद्यालय के कंधों पर ही आ रहा है।
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