रीवा। प्रदेश की भाजपा सरकार भले ही गौवंश के
सुरक्षा की बात कर रही हो लेकिन सरकार द्वारा बनाई गई गौशाला में गौवंशों
की हालत देख आप की रूह कांप उठेगी, ऐसे हालात इन दिनो जिले की सबसे बड़ी
गौशाला बसामन मामा गौशाला के हैं। यहां जिंदा गौवंशो को अवारा कुत्ते
नोच-नोच के अपना निवाला बना रहे हैं, तड़प-तड़प कर उनकी जान निकल रही है,
शुरुआत भूख से होती है और अंत कुत्तो के निवाला बनने के बाद होता है।
भूख-प्यास से तड़पने के बाद जब गौवंश उठने के हाल में नहीं रह जाते हैं तब
उन्हें अवारा कुत्ते नोंचना शुरु कर देते हैं और उसके बाद उनकी जान निकल
जाती है। शनिवार को दैनिक जागरण की टीम ने लगातार आ रही बसामन मामा गौशाला
के हालत जानने की कोशिस की तो जो हकीकत सामने आई वह जान कर आप भी हैरान रह
जाएंगे, इस गौशाला में गौवंशो की सुरक्षा की बात करने वाले व इस गौशाला का
नाम लेकर विकास का दावा करने वाले जनप्रतिनिधियों के मुह पर यहां के हालात
करारा तमाचा जड़ रहे हैं, प्रशासन भी इसको लेकर गंभीर नहीं है शायद यहीं
वजह है कि इस प्रकार से गौवंशो की दुर्दशा गौशाला में हो रही है।
उपचार व्यवस्था ठीक नहीं
बता
दें कि बसामन मामा गौशाला में सबसे बुरा हाल गौवंशो के उपचार का है, यहां
किसी गौवंश की आंख बाहर निकल रही है तो किसी के आंख और शरीर से खून की धार
बह रही है, कई मवेशी ऐसे है जिनके शरीर अंदर के अंग बाहर निकल आए हैं
जिन्हें कुत्तो द्वारा नोचा जा रहा है, सींघ टूटी हुई हैं, खून की धार उनके
शरीर से बह रही है और वह धूप में तड़पते हुए पड़े मिले, इतना ही नहीं कई
मवेशयों की गहरी चोंट के बाद भी उन्हें खुले में इस भीषण धूप में छोड़ दिया
गया है जहां तड़प-तड़प के उनकी जान निकल रही है।
भूसा-पानी की व्यवस्था ठीक नहीं
बतादें
कि दैनिक जागरण टीम ने गौशाला में करीब सुबह 8 बजे से लेकर 11 बजे तक के
हालात गौशाला के देखा, इस समय के बीच में गौवंशो को खाना-पानी नहीं दिया
गया था, जो गौवंश बाड़े में कैद थे वह भूख से चिल्ला रहे थे और जो खुले में
थे वह इधर-उधर धूप में भटक धूल चाट रहे थे, कई मवेशियों का भूख से इतना
बुरा हाल था कि वह खड़े होने लायक भी नहीं थे और भूख के मारे दम तोडऩे की
स्थिति में थे। मवेशियों को बाड़े में सूखा भूसा तक नहीं डाला जा रहा है,
वह भूख से तड़प कर चिल्लाते हुए मिले।
नवजात गौवंश के हाल बेहाल
बता
दें कि यहां इससे से बुरे हॉल गाय के बच्चों के हैं, जो गाय बच्चा देती है
उसकी भी देखभाल नहीं की जा रही है, एक गाय ने दो दिन पहले बच्चा दिया था
जिसके बच्चे को कुत्तो ने कई जगहों पर काटा हुआ था, इसी प्रकार कई नवजात
गौवंश अपनी मां से भी नहीं मिल पा रहे थे और भूख से चिल्ला रहे थे, कईयों
की मां उनसे बिछड़ी हुई थी, ऐसा इसलिए है कि समूह में बच्चों को भीड़ के
साथ अंदर कर दिया जाता है जिसके बाद उनकी मां जंगल में चरने के लिए लाई गई
और वापस नहीं लौटी या फिर गौशाला में ही किसी अन्य बेड़े में बंद कर दी गई
या मैदान में छोड़ दी गई। जिससे यह नवजात गौवंश अपनी मां से भी नहीं मिल
पाते है और भूख से दम तोड़ देते है इनको देखने वाला कोई नहीं।
लाशो के लगे ढ़ेर
बता
दें कि जब दैनिक जागरण टीम ने गौशाला के हालात देखे तो यहां लाशों के ढ़ेर
लगे हुए थे, दर्जन भर से अधिक गौवंश मरे मिले व कई ऐसे थे जो मरने की कगार
पर थे, इन मृत मवेशियों को भी उठाने की व्यवस्था नहीं थी, कई लाशे कई
दिनों पुरानी थीं जिनको कुत्ते नोंच रहे थे। मजदूर कर्मचारियों ने नाम न
छापने की शर्त पर बताया कि यह रोजाना के हालात है, यहां दर्जन भर से अधिक
गौवंश की मौत हो रही है, सबसे बुरे हालात शहर से आने वाले पालतू गौंवशो की
होती है वह दो-तीन दिन से ज्यादा यहां जीवित नहीं रह पाते है।
पानी तक पर्याप्त नहीं
बता
दे कि गौशाला में तीन बोर है लेकिन इनमें से कुछ सूखे हुए हैं तो कुछ के
मोटर खरा है जिससे पानी भी पर्याप्त मवेशियों को नहीं मिल पा रहा है। वहीं
प्रबंधन ने बताया कि एक ट्राली भूसा के साथ आहार मिलाकर रोजाना दिया जाता
है लेकिन भूसा लेकर रामपुर से आए टे्रक्टर चालक ने बताया कि वह तीन दिन में
भूसा लेकर ट्रॉली में आता है जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि किस प्रकार
से गौंवशों के भोजन की व्यवस्था की जा रही है, जंगल में सूखे चारे के लिए
चरवाह लेकर जाते है और आधे-अधूरे गौवंश वापस लेकर चले आते हैं।
नगर निगम की भी बड़ी भूमिका
बता
दें कि गौवंशो की इस दुर्दशा में नगर निगम प्रशासन की भूमिका सबसे बड़ी
है, निगम प्रशासन द्वारा पालतू मवेशियों को भी पकड़कर गौशाला पहुंचा दिया
जाता है, जिससे वहां गौवंशो की संख्या और बढ़ रही है, जब तक की पशुपालक
वहां पहुंच पाते हैं उनकी मौत हो जाती है या फिर वह जंगलो में छोड़ दिए
जाते हैं। एक चक्कर में टारगेट पूरा कराने के लिए गोदाम प्रभारी मुरारी
कुमार द्वारा दर्जन भर से अधिक गौवंश वाहन में लोड करा दिए जाते हैं जिससे
वह चोटिल हो जाते है और गौशाला में उपचार के आभाव में दम तोड़ देते हैं।
मवेशी वाहन के कर्मचारियों का कहना है कि गोदाम प्रभारी का कहना है कि अधिक
से अधिक गौवंश लोड किए, कम संख्या होने पर नोकरी से भगाने की धमकी गोदाम
प्रभारी देते हैं, ऐसे में मजबूरन गौवंशो को भूसे की तरह भरना पड़ रहा है।
प्रशासनिक लापरवाही से बन रही स्थिति
बतादें
कि गौवंशो की इस दुर्दशा का सबसे बड़ा कारण गौशाला में कर्मचारियों का
आभाव है, जब जागरण टीम पहुंची तो वहां दर्जन भर कर्मचारी ही थे, जिनमें से
अधिकतर महिलाएं थी जो बाड़ो की सफाई के लिए आई हुईं थी और चार पशु चराने
वाले थे जो पशुओं को लेकर जंगल की ओर जाते हैं, वहीं देखरेख के लिए एक
प्रबंधक मौजूद थे उनका नाम राजीव द्विवेदी बताया गया, करीब 10 बजे एक
कंपपाउंडर भी पहुंचे जो मवेशियों के उपचार के लिए पर्याप्त नहीं थे, शायद
यहीं वजह है कि मवेशी बीमारी और गहरी चोंटो से तड़प रहे थे। हजारों की
संख्या में गौशाला में मवेशियों के बीच यह इतने कर्मचारी पर्याप्त नहीं
लेकिन प्रशासन द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिस प्रकार से
गौशाला का क्षेत्र है और मवेशियों की संख्या है यहां पशु चिकित्सकों की कम
से कम 12 सदस्यीय टीम, 150-200 की संख्या में मवेशियों की देख-रेख करने
वाला स्टाफ व तीन दर्जन से अधिक चरवाह जैसे कर्मचारियों की जरूरत है। बताया
जाता है कि बजट भी पर्याप्त मिल रहा है लेकिन कागजों में गौशाला का संचालन
किया जा रहा है।
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वर्जन
यदि
ऐसे हालात है तो देखा जाएगा, निरीक्षण भी किया जाएगा। गौवंशो की देख-रेख
ठीक से हो और उनको पर्याप्त दाना-पानी मिले इसकी पूरी व्यवस्था है। उपचार
की भी व्यवस्था है।
राजेश मिश्रा, संयुक्त संचालक पशुपालन विभाग।
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निगमायुक्त
का आदेश है कि अधिक से अधिक गौवंशो को पकडऩे के बाद उन्हें गौशाला में ही
छोड़ा जाए, यदि कोई अपना गौवंश यहीं शहर में लेने आता है तो नहीं दे सकते
हैं क्योंकि निगमायुक्त के आदेश हैं। जुर्माना भी उनको वहीं देके गौवंश
वापस लेना पड़ेगा।
मुरारी कुमार, गोदाम प्रभारी ननि।
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