रीवा। पौधरोपण के नाम पर निजी एजेंसियों और कंपनियों को उपकृत किया जा रहा है। सरकारी विभाग को ही सरकारी व्यवस्था पर भरोसा नहंी है। यही वजह है कि वन विभाग से काम छींन कर निजी नर्सरी संचालक को पौधरोपण की जिम्मेदारी दे दी गई। पीडब्लूडी ने प्राइवेट एजेंसी से सड़क के किनारे 250 पौधे लगवाए, यही काम वन विभाग सरकारी व्यवस्था के तहत फ्री में काम करता। हालांकि इसमें लाखों का वारा न्यारा कर दिया गया।
ज्ञात हो कि पिछले कई सालों से रीवा को ग्रीन रीवा बनाने की कवायद चल रही है लेकिन यह सफल नहीं हो पाया। यह अभियान वर्ष 2009 से 2016 तक चला। इसके बाद इस योजना को विस्तार वानकी नाम दे दिया गया। अब फिर से रीवा में ग्रीन रीवा अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान के तहत पिछले साल करीब 10 हजार पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया था। इसमें कई एनजीओ को भी पौधरोपण के लिए शामिल किया गया। पौधरोपण तो हुए लेकिन पौधे बचे नहीं। कहीं जिंदा पौधे नजर नहीं आए। सिर्फ निजी एजेंसियों और नर्सरी संचालकों की जेबें भरी। अब फिर से वहीं चीजें दोहराई जा रही हैं। नीम चौराहा से करहिया तक बनी सड़क के दोनों तरफ वन विभाग को पौधे लगाने की पहले जिम्मेदारी दी गई थी। वन विभाग ने चेलवा टोला से करहिया तक करीब 500 पौधे लगाए थे। इन पौधों को हालांकि वन विभाग सुरक्षित और संरक्षित नहीं रख पाया। यही वजह है कि कई पौधे सूख गए। अब इसी खामी का फायदा निजी नर्सरी संचालकों को दिया जा रहा है। इस मर्तबा फिर से एक नर्सरी संचालक को नीम चौराहा से चेलवा टोला तक की सड़क को हरा भरा करने का ठेेका दे दिया गया है। लाखों रुपए के पौधे लगवाए गए। इस पौधरोपण से सरकारी विभाग की व्यवस्था और गुणवत्ता पर फिर सवाल खड़े किए गए हैं।
अल्ट्राटेक से झटक लिए थे 20 लाख
रीवा की दो सड़कों को हरा भरा करने का जिम्मा अल्ट्राटेक ने उठाया था। इसके लिए करीब 20 लाख रुपए का खर्च करने किए गए। पौधे लगाने का काम रीवा जनप्रतिनिधि के खास एक नर्सरी संचालक को सौंपा गया। निजी नर्सरी संचालक ने ही सड़कों के किनारे पौधे लगाए। इस बेतरतीब पौधरोपण से सड़कों की सुंदरता तो नहीं बढ़ी लेकिन समस्याएं जरूर बढ़ गई हैं। डिवाइडर में लगे पौधे इधर उधर झुकने लगे हैं। इससे एक्सीडेंट का खतरा बढ़ गया है। कई पौधे गायब हो चुके हैं।
वन विभाग को नहीं मिला काम
पौधरोपण अभियान में वन विभाग को जिम्मेदारी नहीं मिली। वन विभाग सिर्फ पार्क ही बनाता रह गया और पौधरोपण की जिम्मेदारी किसी और को दे दी गई। हद तो यह है कि वन विभाग के पास निजी नर्सरी संचालक से कहीं अधिक पौधे और कर्मचारी है। फिर भी पौधरोपण का काम वन विभाग को न देकर निजी नर्सरी संचालक को देना पूरी तरह से उपकृत करने जैसा ही है।
कई कर्मचारी घर बैठे हैं उन्हें मिलता काम
पौधरोपण का जो काम निजी नर्सरी संचालक को दिला दिया गया है यदि वह काम और बजट वन विभाग को मिलता तो शायद घर बैठे दैनिक वेतन भोगियों को काम मिल जाता। ज्ञात हो कि करीब 30 से अधिक विस्तार वानकी के कर्मचारियों को वन विभाग ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इन कर्मचारियों को इस बजट से काम मिलता और पौधरोपण की जिम्मेदारी भी मिल जाती। हालांकि ऐसा नहीं हुआ।
लोक निर्माण विभाग ने किया पौधारोपण
अंकुर अभियान के तहत पौधारोपण किया जा रहा है। लोक निर्माण विभाग द्वारा नीम चौराहा से सैनिक स्कूल रोड पर पौधरोपण किया गया। कार्यपालन यंत्री तथा अन्य अधिकारियों ने 250 पौधे सड़क के किनारे रोपित किए। अब यह पौधे कितने दिन जिंदा रहते हैं। यह कहना मुश्किल होगा।
वन विभाग फेल हो गया
पिछले साल वन विभाग ने करहिया तक करीब 500 पौधे सड़क के किनारे लगाए थे। इनकी सुरक्षा के लिए ट्री गार्ड भी लगाया गया लेकिन इन्हें बचाने में वन विभाग फेल हो गया। पौधें भगवान भरोसे ही रहे। अधिकांश ट्री गार्ड चोरी हो गए। इनकी सुरक्षा के लिए पुख्ता इंतजाम वन विभाग नहीं कर पाया। इसी में विभाग फेल हुआ। इसका सीधा फायदा निजी एजेंसी संचालक को मिला।