रीवा। करोड़ों के अस्पताल सिर्फ डॉक्टरों के कमाई और प्रैक्टिस के लिए बना डाले। जहां एक्सीडेंट में घायलों की तुरंत जान बचती है, वह ट्रामा सेंटर ही बनाना भूल गए। रीवा में एक भी अस्पताल ऐसा नहीं है, जहां ट्रामा सेंटर शुरू कर दिया गया हो। जिला अस्पताल में सेटअप बना। डॉक्टर, नर्सों को ट्रेनिंग दी गई। अब सब ठप है। संजय गांधी अस्पताल में सिर्फ योजना ही बनती रह गई। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल भी सिर्फ स्पेशल मरीजों तक की सिमट गई है। लोग हर दिन मर रहे है लेकिन ट्रामा की सुध नहीं ली जा रही।
रीवा में ट्रामा सेंटर ही नहीं है। यहां के लोगों स्वास्थ्य सुविधाओं में इजाफा के नाम पर झलावा किया जा रहा है। हर दिन एक्सीडेंट में दर्जनों मरीज अस्पताल पहुंचते हैं लेकिन इन्हें तुरंत इलाज नहीं मिल पाता। वार्डों में ही बिना आपरेशन और इलाज के घायल दम तोड़ देते हैं। मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशलिटी और जिला अस्पताल बिना ट्रामा सेंटर के चल रहे हैं। सालों से सिर्फ हवा बाजी चल रही है,लेकिन सुविधा शुरू नहीं हुई। जिले में हर दिन तकरीबन 20 एक्सीडेंट के केस आते हैं। तुरंत इलाज के आभाव में कई मर जाते हैं। इन मौतों के ग्राफ को रोकने की कवायद शून्य है। यह मौतों का ग्राफ डरावना है फिर भी जिम्मेदार ट्रामा सेंटर को शुरू करने को लेकर खामोश हैं।
जिला अस्पताल में आया था बजट
ट्रामा सेंटर की शुरुआत के लिए कुशाभाऊ ठाकरे जिला अस्पताल में बजट और सेटअप आया था। यहां डॉक्टरों के पदस्थापना के निर्देश भी दिए गए थे। ट्रामा सेटर में काम करने वाले कर्मचारियों को बकायदा ट्रेनिंग भी दी गई थी। ट्रामा सेंटर की ओटी से लेकर वार्डों तक का निर्माण कार्य किया गया था। सालों बाद भी यहां ट्रामा सेंटर की शुरुआत नहीं हो पाई। अब सारी योजना ठप है। इसकी सुध तक कोई लेने को तैयार नहीं है।
एसजीएमएच में भी नहीं हुई शुरुआत
विंध्य के सबसे बड़े अस्पताल संजय गांधी में भी ट्रामा सेंटर नहीं है। यहां आकस्मिक चिकित्सा कक्ष में ही सारी कवायदें पूरी करने की कोशिश की जाती है। एसजीएमएच 800 बिस्तरों का अस्पताल है। यहां हर दिन करीब 10 से 12 एक्सीडेंट के मामले आते हैं। ट्रामा सेंटर के आभाव में इनमें से दो से तीन की जान हर दिन चली जाती है। एमरजेंसी वार्ड में प्रारंभिक जांच और इलाज के बाद घायलों को मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। यहां सारा काम जूनियर सम्हालते हैं। ओटी है पर मौके पर आपरेशन नहीं होते। वार्डों में शिफ्ट कर दिया जाता है। वार्ड में आपरेशन का नंबर ही नहीं लग पाता। तब तक मरीज की जान चली जाती है। यहां सालों से सिर्फ जुबान पर ही ट्रामा सेंटर खुल रहा है लेकिन कागजों में कभी उतर नहीं पाया
ट्रामा सेंटर खुले तो बचे मरीजों की जान
हद तो यह है कि करोड़ों के अस्पताल सरकार बना रही है। नेता वाहवाही लूट रही है लेकिन ट्रामा सेंटर का ख्याल किसी को नहीं आता। एक्सीडेंट में घायल को तुरंत आपरेशन और ट्रीटमेंट की जरूरत होती है। ऐसे में ट्रामा सेंटर संजीवनी का काम करता है। यहां सर्जन से लेकर आर्थोंपेडिक, न्यूरो सर्जन, एनेस्थीसियालॉजिस्ट आदि की नियुक्ति की जाती है। तुरंत आपरेशन कर मरीज की जान बचाई जाती है। मरीज का आपरेशन चंद घंटों में हो जाता है। इसी ट्रामा सेंटर को इग्रोर किया जा रहा है
इसलिए प्रबंधन और डाक्टर बचते हैं
ट्रामा सेंटर में सीनियर डॉक्टर और स्पेशलिस्ट की ड्यूटी लगाई जाती है। 24 घंटे सेवा देना पड़ता है। यही वजह है कि डॉक्टर इस सर्विस से बचते हैं। सीनियर डॉक्टरों, पीजी और स्पशेलिस्ट को ट्रामा सेंटर में काम करना पड़ेगा। दिन रात रहना पड़ेगा। इसके अलावा उन्हें और कोई काम नहीं करने को मिलेगा। यही वजह है कि प्रबंधन और डॉक्टर भी ट्रामा सेंटर से कन्नी काटते हैं।
सिर्फ ड्यूटी और खानापूर्ति चल रही
ट्रामा सेंटर को नजर अंदाज कर दिया गया है। रीवा में सुपर स्पेशलिटी जैसे अस्पताल खुल गए। इन पर 150 करोड़ रुपए खर्च किए गए लेकिन ट्रामा सेंटर इग्नोर कर दिया गया। एसजीएमएच में एमरजेंसी सेवा के नाम पर खानापूर्ति चल रही है। पीजी छात्र ही इलाज करते हैं। यहां गंभीर घायलों को भी मरहम पट्टी के बाद वार्ड भेज दिया जाता है। आपरेशन के लिए इंतजार करना पड़ता है। सीनियर और स्पेशलिस्ट नहीं मिलते। रूटीन में ही एमरजेंसी केस भी निपटाते हैं। तय दिन में आपरेशन करते हैं। इसके अलावा वार्डों में भर्ती मरीजों से प्रैक्टिस चलती है। इसी व्यवस्था में पूरे सिस्ट में उलझाए हुए हैं।
इतने लोग बेमौत मर जाते हैं
रीवा में हर दिन सड़कों पर औसतन 20 से 30 एक्सीडेंट होते हैं। इनमें से कई गंभीर मामले भी सामने आते हैं। 108 एम्बुलेंस से अस्ताल तक पहुंचने वाले सड़क दुर्घटना में घायलों की संख्या 20 से ज्यादा है। इसके अलावा नेशनल हाइवे की एम्बुलेंस से पहुंचने वाले मरीजों की संख्या अलग है। स्थानीय स्तर पर परिजन जिन्हें लेकर पहुंचते हैं उनकी संख्या भी 5 से 10 है। इतना ही नहीं दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल में से हर दिन 2 से 3 लोग दम तोड़ देते हैं। इन लोगों को तुरंत इलाज और आपरेशन नहीं मिल पाता।
वर्सन….
ट्रामा सेंटर के लिए पोस्ट वगैरह आ गए थे। काम ही आगे नहीं बढ़ पाया। कमरे वगैरह बन गए हैं। हड्डी का एक भी डॉक्टर नहीं था। अभी हाल ही में एक पदस्थ किया गया है। ऊपर से ही कोई कवायद नहीं हो रही है।
डॉ एनएन मिश्रा
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, रीवा
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हमारे यहां ट्रामा सेंटर नहीं है। एमरजेंसी यूनिट है। वहां मरीजों की जांच और इलाज हो रहा है। ओटी भी है।
डॉ अवतार सिंह
अधीक्षक, संजय गांधी स्मृति चिकित्सालय रीवा
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