रीवा। रीवा व शहडोल सम्भाग में उच्च शिक्षा विभाग से मान्यता प्राप्त 73 सरकारी व 126 गैर सरकारी मिलाकर 199 महाविद्यालय हैं। इन महाविद्यालयों में 90 हजार के लगभग छात्र अध्ययनरत् हैं। इन छात्रों से प्राय: हर वर्ष छात्रसंघ चुनाव के नाम पर शुल्क लिया जाता है। पिछले 5 साल में अनुमानित साढ़े 4 करोड़ रुपये वसूले जा चुके हैं, लेकिन महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव नहीं हो रहे हैं। मप्र शासन के नियमानुसार प्रति छात्र 10 रुपये वसूलने का प्रावधान है, जो वर्ष 2018 से लेकर वर्ष 2022 तक निरंतर वसूला गया। जबकि वर्ष 2017 के बाद से मप्र शासन ने छात्रसंघ चुनाव नहीं कराये। बताते हैं कि प्रवेश शुल्क या प्रवेश नवीनीकरण शुल्क के साथ उक्त शुल्क छात्रों ले लिया जाता है, जो महाविद्यालयों के खाते में ही जमा होता है। यह राशि कितने महाविद्यालयों में जमा होगी, यह प्रश्न का विषय है। सरकारी महाविद्यालय तो ठीक लेकिन निजी महाविद्यालयों में भी उक्त राशि अभी होगी, मुश्किल लगता है। उल्लेखनीय है कि फिलहाल सभी महाविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया चल रही है। लिहाजा, सरकारी महाविद्यालयों में लगभग शांति छाई हुई है। कोरोना संक्रमणकाल झेलने के बाद महाविद्यालयोंं में इस वर्ष रौनक दिखाई दे रही है। पिछले 10 महीने से नियमित कक्षाएं भी प्रारम्भ हैं। अब ऐसे में अपनी राजनीति का सफर शुरु करने की लालसा रखने वाले छात्र चुनाव को लेकर आशान्वित हैं, लेकिन अभी तक सरकार की तरफ से इस दिशा में कोई सार्थक पहल नहीं हो रही है। जबकि छात्रसंघ चुनाव के लिए शैक्षणिक कैलेण्डर में सितम्बर-अक्टूबर का महीना ही निर्धारित है।
अगले महीने स्पष्ट हो जायेगी स्थिति
गौरतलब है कि अब तक शासन की रणनीति के अनुसार युवाओं को खुश करने छात्रसंघ चुनाव कराये जाते रहे हैं। लेकिन पिछले 4 साल से जिला समेत प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव नहीं हो सके हैं। वैसे भी युवा नेतृत्व को उभारने वाले ये चुनाव सरकार के लिए सिरदर्द ही होते हैं। छात्रसंघ चुनाव को लेकर इस वर्ष क्या होना है, अगले महीने तक स्पष्ट हो जायेगा।
2017-18 मेें हुए थे चुनाव
बता दें कि विभाग ने आखिरी दफा सत्र 2017-18 में छात्रसंघ चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराये थे। इसके पहले सत्र 2011-12 में छात्रसंघ चुनाव हुए थे। अर्थात विधानसभा चुनावों के पहले युवाओं को रिझाने की यह तरकीब शासन को सूझती रही। वर्ष 2017 के बाद दो साल छात्रसंघ चुनाव कराने की चर्चा ने जोर पकड़ा था, लेकिन समय के साथ वह चर्चा ठंडी पड़ गई। कोरोनाकाल में कक्षाएं बंद होने पर इस बारे में कोई विचार ही नहीं हो सका।
प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने की मांग कभी नहीं मानी
एनएसयूआई व अभाविप दोनों ही प्रमुख संगठन हमेशा प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव कराने की मांग करते रहे हैं। प्रत्यक्ष प्रणाली का मतलब है, जिसमें विद्यार्थी सीधे छात्रसंघ अध्यक्ष व सचिव के लिए वोट करता है। हिंसा की आशंका प्रबल होने पर ही सरकार ने 1987 से इस प्रणाली पर रोक लगा दी। अब उसके बाद से जब कभी भी छात्रसंघ चुनाव हुए तो अप्रत्यक्ष प्रणाली से ही हुए, जिसमें छात्र कक्षा प्रतिनिधि को चुनते हैं। फिर कक्षा प्रतिनिधि अध्यक्ष व सचिव के लिए वोटिंग करते हैं।
नेतृत्व प्रतिभा का हनन
छात्र संगठनों की दलील रहती रही कि प्रत्यक्ष प्रणाली से चुनाव न होने के कारण छात्र नेतृत्व की प्रतिभा का हनन हो रहा है। ऐसे में छात्र बेहतर राजनेता बनने की दौड़ में पीछे रह जाता है। छात्र संगठन मानते हैं कि अप्रत्यक्ष प्रणाली व उसमें आरक्षण से ऐसे लोगों को भी प्रतिनिधित्व का मौका मिल जाता है, जो स्वयं राजनीति से वास्ता नहीं रखना चाहते। इस तरह छात्रों का नेतृत्वकर्ता किसी काम का नहीं रह जाता। बहरहाल छात्र संगठन अभी तो हर हाल में छात्रसंघ चुनाव की मांग कर रहे हैं।
वर्जन
शुल्क अलग से नहीं लिया जाता है। प्रवेश शुल्क में यह शुल्क समाहित रहता है। छात्रसंघ चुनाव के लिए अभी विभाग से कोई निर्देश नहीं मिले हैं। निर्देश मिलने पर नियमानुसार कार्यवाही की जायेगी।
डॉ प्रभात पाण्डेय, ओएसडी, एडी रीवा कार्यालय
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