रीवा। इस वर्ष अश्विन अथवा शारदीय नवरात्रि अश्विन शुक्ल प्रतिपदा, 26 सितंबर, सोमवार से आरम्भ होने जा रही है। नवरात्रि में दुर्गा माता की नौ दिनों में 9 स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। वैसे तो माता रानी सिंह की सवारी करती हैं, लेकिन जब नवरात्रि में मां दुर्गा धरती पर आती हैं तो उनकी सवारी बदल जाती है। मां जगदंबे की सवारी नवरात्रि के प्रारंभ होने वाले दिन पर निर्भर करती है। नवरात्रि की शुरुआत जिस दिन होती है, उस दिन के आधार पर उनकी सवारी तय होती है। इसी प्रकार से वह जिस दिन विदा होती हैं, उस दिन के आधार पर प्रस्थान की सवारी तय होती है।
इस वर्ष नवरात्रि सोमवार से प्रारंभ हो रही है, इसलिए मां भगवती हाथी पर सवार होकर आएंगी। मां का हाथी पर सवार होकर आगमन ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बेहद शुभ माना गया है। ऐसी मान्यता है कि गज पर सवार होकर मां भगवती भक्तों के समस्त मनोरथ सिद्ध करती हैं।
पौराणिक मान्यताएं है कि भगवान राम ने शारदीय नवरात्रि की परंपरा की शुरुआत समुद्र के किनारे भगवती की 9 दिवसीय उपासना करते हुए प्रारंभ की थी। फिर भी शारदीय नवरात्रि का महत्व केवल राम द्वारा पूजित होने से नहीं है, बल्कि इसके पूर्व में भी देवी पूजा का विधान रहा है। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार समय-समय पर अश्विन मास में देवों ने भी देवी की पूजा की थी तथा भगवान राम ने इसी क्रम को आगे बढ़ाया था। शरद ऋ तु देवताओं की रात्रि मानी गई है तथा यह काल भगवती का शयन काल है। अत: शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार शरद काल में देवी का बोधन करते हुए पूजन किया जाता है। भगवान राम ने भी ब्रह्मा को आचार्य बनाकर देवी का बोधन करते हुए उन्हें अकाल में जगाया था। यही कारण है कि दोनों प्रकट नवरात्रि अर्थात अश्विन एवं चैत्र मास की नवरात्रि बोधन नवरात्रि मानी गई है। इस वर्ष 26 सितम्बर से प्रारम्भ हो रही नवरात्रि को लेकर बाजार में भी उत्साह नजर आने लगा है। जिले में जगह-जगह मां भगवती की मूर्ति स्थापना हेतु पंडाल सजने लगे हैं। इस त्योहारी मौसम आने के पहले व्यापारियों ने अपनी तैयारी पूरी कर ली है। दुकानें सजने लगी हैं। वहीं, विगत दो वर्ष से कोरोनाकाल के चलते भक्तगण जिन देवी मंदिरों तक नहीं पहुंच पाये, वहां जाने की तैयारी अभी से करने लगे हैं।
भक्तिभाव में गुजरेंगे अगले नौ दिन
उल्लेखनीय है कि आश्विन मास की प्रतिपदा में अधिकांश श्रद्धालु घर में घट स्थापना अर्थात् कलश की स्थापना करते हैं। पूजन विधान के अनुसार नवरात्रि के नौ दिन भक्तगण जप, स्त्रोत रत्नावली, दुर्गा सप्तशती का नित्य पाठ भी करते हैं। नवरात्रि की सप्तमी, अष्टमीं, नवमीं एवं दशमी तिथि में विशेष पूजन क्रम, पत्रिका पूजन, शमी पूजन इत्यादि समस्त विधाओं से करना चाहिए, तभी नवरात्रि व्रत संपूर्ण एवं पूर्ण फलदाई माने जाते हैं।
नवरात्रि की तिथियां
– 26 सितंबर, प्रतिपदा माँ शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना
– 27 सितंबर, द्वितीया तिथि, माँ ब्रह्मचारिणी पूजा
– 28 सितंबर, तृतीया तिथि, माँ चंद्रघंटा पूजा
– 29 सितंबर, चतुर्थी तिथि, माँ कुष्मांडा पूजा
– 30 सितंबर, पंचमी तिथि, माँ स्कंदमाता पूजा
– 1 अक्टूबर, षष्ठमीं तिथि, माँ कात्यायनी पूजा
– 2 अक्तूबर, सप्तमी तिथि, माँ कालरात्रि पूजा
– 3 अक्टूबर, अष्टमी तिथि, माँ महागौरी पूजा
– 4 अक्टूबर, नवमी तिथि, माँ सिद्धिदात्री दुर्गा
– 5 अक्टूबर, दशमी तिथि, दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी
इस बार पूरे नौ दिन रहेगी नवरात्रि
26 सितंबर से प्रारंभ होने वाली शारदीय नवरात्रि इस बार पूरे 9 दिन रहेगी, जो 4 अक्टूबर को महानवमी के साथ संपन्न होगी। तत्पश्चात 5 अक्टूबर को विजयादशमी पर्व के दिन दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाएगा। नवरात्रि व्रत की पारणा महानवमी रहते हुए कन्या पूजन तथा हवन के पश्चात की जानी चाहिए। दशमी तिथि को व्रत की पारणा नहीं करनी चाहिए, केवल विसर्जन करना चाहिए।
द्वि-स्वभाव लग्न व अभिजित मुहूर्त में करें घट स्थापना
शास्त्रों के अनुसार कलश सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक होता है। 26 सितंबर को प्रात:काल 3.30 से प्रतिपदा तिथि प्रारंभ हो जाएगी, जो 27 सितंबर प्रात: 3.08 तक व्याप्त रहेगी। शास्त्रों में चित्रा नक्षत्र में घट स्थापना का निषेध कहा गया है। ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया कि इस वर्ष 26 सितंबर को प्रात: 5.55 से हस्त नक्षत्र संचरण करेगा, जो घट स्थापना के लिए शुभ कहा गया है। 26 सितंबर को ही प्रात: 8 बजे तक शुक्ल योग एवं उसके पश्चात ब्रह्म योग का संचरण भी शुभ माना गया है। घटस्थापना केवल द्विस्वभाव लग्न तथा अभिजीत मुहूर्त में से किसी एक कालखंड में की जानी चाहिए लेकिन अति आवश्यकता होने पर अपराह्न काल व्याप्त रहते हुए किसी शुभ चौघडिय़ा में भी घट स्थापना की जा सकती है। घटस्थापना में मुहूर्त का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है क्योंकि शुभ मुहूर्त में की गई घटस्थापना ही आपके संपूर्ण नवरात्रों को सफल बनाती है।
रीवा सूर्याेदय के अनुसार घटस्थापना का मुहूर्त
26 सितम्बर 2022,आश्विन शुक्ल प्रतिपदा
द्वि स्वभाव लग्न कन्या व हस्त में-
– प्रात:काल 5.55 बजे से 7.31 बजे तक।
– अभिजीत मुहूर्त- प्रात:काल 11.32 बजे से लेकर मध्यान्ह 12.20 तक।
– चर चौघडि़य़ा- अपरान्ह 1.26 से 2.57 बजे तक।
– अपराह्न काल के पश्चात घट स्थापना को शास्त्रों में निषेध कहा गया है।
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