रीवा। बाघों ने रीवा के जंगलों से मुंह मोड़ लिया है। उन्हें यहां की आबोहवा रास नहंी आ रही है। चहल कदमी नहीं दिख रही है। वन विभाग भी इनकी दूरियों से परेशान है। कहीं भी पदचिन्ह और इनकी मौजूदगी नहीं मिल रही है। ज्ञात हो कि रीवा के जंगलों में हाल ही में वन्यजीवों की गणना की गई थी। गणना में सेम्पल के आधार पर वन्यजीवेां की उपस्थिति का अंदाजा लगाया गया था। इसमें बाघों की भी मौजूदगी में कुछ क्षेत्रों में मिली थी। हालांकि अब वह दिखाई नहीं दे रहे हैं। ठंड के शुरुआती दिनों में ही बाघ रीवा के जंगलों में दस्तक देना शुरू कर देते हैं। गोविंदगढ़, टीकर, बांसा आदि क्षेत्रों में इनकी मौजूदगी देखी जाती है। इसके अलावा सेमरिया के जंगलों में भी बाघों की मौजूदगी मिली है। हालांकि इस साल बाघ रीवा की तरफ कम ही रुख कर रहे हैं। सूत्रों की मानें तो रीवा के जंगल अब बाघों के लिए सुरक्षित नहीं है। इसी वजह से बाघों ने भी रास्ता बदल दिया है। इस तरफ आ ही नहीं रहे हैं। बाघों की रीवा के जंगल से बेरुखी ने भी वन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों को परेशानी में डाल दिया है।
सभी ताजा खबरें पढ़ने के लिए कृपया जरूर जुड़े🙏
Join Now
पन्ना से सीधी, बांधवगढ़ तक बना है कॉरीडोर
बाघों का कॉरीडोर बना हुआ है। पन्ना से बाघ रीवा के जंगलों से होते हुए बांधवगढ़ और सीधी के संजय टाइगर रिजर्व तक जाते हैं। मैहर होते हुए मुकुंदपुर से बाघ गोविंदगढ़ से टीकर और फिर सीधी तक जाते हंै। इसके कारण ही आए दिन बाघों की मौजूदगी यहां दिखाई और सुनाई पड़ती रहती है लेकिन इस साल ऐसा नहीं हो रहा है। जो चिंता का विषय है।
इन गांवों में दिख चुके है
रीवा में बाघ कई मर्तबा दिख चुके हैं। टीकर, बांसा, आमिन, पड़ोखर, बैसा में बाघ दिखाई दे चुका है। इसके अलावा सेमरिया के ककरेड़ी और मैनहा में भी बाघों को देखा जा चुका है। पदचिन्ह भी मिले हैं। इस साल अब तक इनकी मौजूदगी की खबर वन विभाग तक कहीं से नहीं पहुंची है।
यह मानी जा रही है वजह
बाघों की रीवा से दूरी के पीछे वनों में अवैध कटाई है। इसके अलावा बाघ कॉरीडोर को भी प्रभावित किया गया है। इसके कारण बाघों ने इस तरफ रुख करना ही छोड़ दिया है। जंगलों में आए दिन शिकार की बातें सामने आती रहती है। वन माफियाओं का भी घुसपैठ बड़ा है। वन अमला निष्क्रिय हुआ है।