रीवा। कोविड में इंजीनियरिंग का ट्रेंड ही बदल गया। बदले हुए ट्रेंड से गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज को छात्र संकट का सामना करना पड़ रहा है। बीटेक और एमटेक की सीटें ही नहीं भर पा रही हंै। बीई मैकेनिकल के लिए छात्र नहीं मिल रहे हंै। वहीं एमटेक में मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल की सीटें खाली पड़ी हैं। लोकल लेबल काउंसलिंग में भी छात्र नहीं आ रहे हैं।
ज्ञात हो कि रीवा के शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज में बीई के लिए पांच ब्रांच संचालित हैं। इस साल से एमटेक में भी प्रवेश शुरू कर दिया गया है। तीन ब्रांच से इसकी भी शुरुआत हुई है। हालांकि बीई और एमटेक के लिए कॉलेज को छात्र ही नहीं मिल पा रहे हैं। कोविड ने इंजीनियरिंग का ट्रेंड ही बदल दिया। कोविड के दौरान उद्योग धंधे बंद हुए। इससे उद्योगों में काम करने वाले इंजीनियरों को घर बैठना पड़ा। अब इन्हीं हालातों से सबक लेकर छात्र एमटेक और बीटेक में ब्रांच का चयन कर रहे हैं। यही वजह है कि छात्रों की पहली पसंद कम्प्यूटर साइंस और इलेक्ट्रानिक बनकर सामने आई है। इंजीनियरिंग कॉलेज में यही दोनों ब्रांच सबसे पहले फुल हुए हैं। वहीं बीई मैकेनिकल की सीटें अब तक खाली हैं। कालेज लेबल काउंसङ्क्षलग तक बुलाई गई। छात्रों को प्रवेश देने का मौका दिया गया, लेकिन अब तक पूरी सीटें फुल नहीं हुई हैं। इनके भरने की संभावनाएं भी कम ही दिख रही हैं। बीई में छात्रों के प्रवेश की स्थिति को देखकर अब कॉलेज प्रबंधन भी सकते में है।
कौन सी ब्रांच रह गई खाली
गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में बीई मैकेनिकल, सिविल, इलेक्ट्रानिक, इलेक्ट्रिकल और कम्प्यूटर साइंस ब्रांच संचालित हंै। इनमें से सिर्फ बीई मैकेनिकल की ही सीटें खाली रह गई हैं। इस ब्रांच के लिए छात्रों को तलाशने में प्रबंधन के पसीने छूट रहे हैं। वहीं इसी साल से शुरू हुए एमटेक के लिए भी छात्र नहीं मिल रहे हैं। अब तक सिर्फ सिविल की ही सीटें भर पाई है। वहीं इलेक्ट्रिकल की 7 और मैकेनिकल में 5 सीटें ही भर पाई है। शेष सीटें खाली है। एमटेक में तीनों ब्रांच में 30-30 सीटें स्वीकृत हुई हैं।
इसलिए सिविल से रुझान हुआ कम
सिविल से इंजीनियरिंग का एक समय खूब रुझान था। इंजीनियरिंग कॉलेजों में सिविल ब्रांच में प्रवेश के लिए मारा मारी मची रहती थी लेकिन अब वह ट्रेंड खत्म हो गया। सिविल ब्रांच तक की सीटें बड़ी मुश्किल से भर रही है। इसके पीछे वजह नौकरी ही है। स्थानीय स्तर पर सिविल इंजीनियर करने वाले युवकों को नौकरी नहीं मिलती। सरकारी विभागों में नियुक्तियां नहीं हो रही है। जहां पोस्ट निकल भी रही हैं वहां नियुक्त नहीं हो पा रहे हैं। ठेकेदारों के अंडर में काम करने पर शोषण किया जा रहा है। खुद का काम शुरू करने में सक्षम नहीं हैं। यही वजह है कि रुझान कम हुआ है।
इनकी डिमांड इसलिए बढ़ गई
कोविड काल में सभी उद्योग धंधे बंद हो गए। मैकेनिकल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों को इस दौरान झटका लगा था। औद्योगिक संस्थाओं में काम करने वालों को घर बैठना पड़ा था लेकिन एक विभाग ऐसा भी था जिसमें नौकरियां नहीं गई थी। घर में बैठकर भी काम जारी रहा। यह विभाग कम्प्यूटर साइंस था। इलेक्ट्रानिक्स की भी डिमांड बनी रही। यही वजह है कि इन दोनों ब्रांच में सीट को लेकर मारामारी रही।
पढ़ाई तो शुरू हुई, लेकिन सुविधाएं जीरो
गवर्नमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज में एमटेक की पढ़ाई शुरू कर दी गई है। तीन ब्रांच में प्रवेश की स्वीकृति मिल गई है, लेकिन व्यवस्थाएं नहीं बढ़ाई गईं। शिक्षक से लेकर लैब टेक्नीशियन, कक्ष व अन्य चीजों का विस्तार नहीं हुआ है। पुराने शिक्षकों पर ही दोहरी जिम्मेदारी लादने का काम किया गया है। एमटेक के लिए अलग से लैब तक नहीं है। ऐसे में यहां एमटेक करने वालों को प्रैक्टिकल का ज्ञान मिलना मुश्किल है।
००००००००००००००००