रीवा। पिछले 15 दिनों के अंदर दो ग्रहण का पडऩा ज्योतिष एवं खगोलीय दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। देश की सामाजिक, आर्थिक तथा आंतरिक परिस्थितियों के संबंध में भी यह ग्रहण महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। दीपावली के ठीक दूसरे दिन अर्थात 25 अक्टूबर को वर्ष का प्रथम दृश्य ग्रहण सूर्यग्रहण के रूप में दिखाई दिया था। अब ठीक 15 दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा गुरुनानक जयंती के अवसर पर वर्ष का दूसरा ग्रहण चंद्रग्रहण के रूप में मंगलवार को भारत में दिखाई देगा। ज्योतिर्विद राजेश साहनी ने बताया कि 8 नवंबर को होने वाला ग्रहण यद्यपि खग्रास चंद्रग्रहण है, लेकिन यह ग्रहण संपूर्ण भारतवर्ष में ग्रस्त उदय रूप में दिखाई देगा। अर्थात भारत के किसी भी नगर में जब मंगलवार को कार्तिक पूर्णिमा का सायंकाल चंद्रोदय होगा तो उससे काफी समय पहले से ही चंद्रग्रहण प्रारंभ हो चुका होगा। इसका प्रारंभ तथा खग्रास काल अथवा पूर्ण ग्रहण भारत के किसी भी नगर या राज्य में दिखाई नहीं देगा। भारत में स्थानीय चंद्रोदय से ही इस ग्रहण का प्रारंभ काल माना जाएगा, क्योंकि भारत में मुख्यत: चंद्रोदय के बाद इस ग्रहण की समाप्ति ही सिर्फ देखी जा सकती है। अत: यह ग्रहण ग्रस्तोदय के रूप में भारत में दिखाई देगा
ग्रहण का पर्व काल
रीवा सहित समस्त विंध्य क्षेत्र में ग्रहण की स्थिति और उसका पर्व काल निम्न प्रकार से प्रभावशाली रहेगा-
– चन्द्रग्रहण प्रारंभ चंद्रोदय के साथ- सायंकाल 5.22 बजे से।
– चंद्रग्रहण समाप्त सायंकाल- 6.18 बजे।
– रीवा क्षेत्र का चंद्रोदय सायंकाल- 5.22 बजे।
(रीवा में ग्रहण की कुल अवधि लगभग 56 मिनट)
नोट- ग्रहण के प्रारंभ से लेकर ग्रहण की समाप्ति के बीच की अवधि को ग्रहण का पर्व काल माना गया है।
ग्रहण का सूतक
हिंदू मान्यताओं के तहत सूर्य ग्रहण का सूतक ग्रहण के प्रारंभ होने से 12 घंटे पूर्व तथा चंद्र ग्रहण का सूतक ग्रहण प्रारंभ होने से 9 घंटे पूर्व प्रारंभ हो जाता है। ग्रहण की समाप्ति के बाद से ही सूतक भी समाप्त मान लिया जाता है। इस प्रकार चंद्रग्रहण का सूतक 8 नवंबर को प्रात:काल 9.02 बजे से प्रारंभ हो जाएगा। सूतक की समाप्ति चंद्रग्रहण समाप्त होने के साथ सायंकाल 6.18 बजे हो जाएगी। बता दें कि सूतक एक स्वस्थ एवं सशक्त व्यक्ति के ऊपर ही प्रभावशाली होता है। जिनक स्वास्थ्य ठीक नहीं है, जो दवाओं का सेवन कर रहे हैं या फिर जो अशक्त हैं अथवा वृद्ध लोगों के लिए सूतक काल की अवधि बदल जाती है। अशक्त अवस्था में सूतक 8 नवंबर को दोपहर 2.35 से प्रारंभ होगा जो कि सायंकाल 06.18 तक रहेगा।
स्नान, दान, जप करना शुभ
ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में स्नान, दान, जप, पाठ, मंत्र सिद्धि, तीर्थ स्थान जाना एवं हवन आदि करना शास्त्रों के अनुसार शुभ माना गया है। सूतक एवं ग्रहण काल में मूर्ति स्पर्श करना, खाना-पीना, निद्रा, मैथुन आदि वर्जित कहे गए हैं। धर्म सिंधु की मान्यता के अनुसार ग्रहण के प्रारंभ में स्नान, मध्य में देव पूजन तथा ग्रहण मोक्ष के समय पुन: स्नान तथा दान किया जाना चाहिए। धर्म परायण लोगों को 8 नवम्बर से सूर्यास्त के पूर्व अथवा सूतक से पहले अपनी राशि के अनुसार अन्न, जल, चावल, सफेद वस्त्र, फल एवं दक्षिणा आदि का संग्रह करके संकल्प कर लेना चाहिए तथा ग्रहण के पश्चात स्नान करते हुए संकल्प पूर्वक योग्य ब्राह्मणों को उक्त वस्तुएं दान दे देनी चाहिए। ग्रहण का सूतक लगने से पूर्व ही घर की खाद्य सामग्री में तुलसी दल अथवा कुशा रख देना श्रेयस्कर होता है। ग्रहण की किरणों का विकिरण इस प्रकार से खाद्य सामग्री को प्रभावित नहीं करता है। शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार कुश के स्थान पर दुर्वा भी खाद्य सामग्री में डाली जा सकती है।
ऐसे होता है चन्द्र ग्रहण
किसी भी पूर्णिमा पर जब चंद्र और राहु का अंतर 7 अंश से कम होता है तो उस पूर्णिमा पर ग्रहण अवश्य होता है। खगोल विज्ञान की भाषा में समझे तो पृथ्वी की छाया में जब चंद्रमा आ जाता है तब वह अप्रकाशित हो जाता है, यही अवधि चंद्र ग्रहण की कहलाती है। पूर्णिमा तिथि पृथ्वी की स्थिति सूर्य और चंद्रमा के बीच में होती है। इस कारण से पृथ्वी की छाया चंद्रमा की तरफ पड़ती है। यदि इस दिन चंद्रमा उस छाया में से होकर गुजर जाता है तो उसका कुछ भाग पृथ्वी की छाया में छिप जाता है। ऐसे में चंद्रमा के उस भाग पर सूर्य की रोशनी नहीं पहुंचती। चंद्रमा का यह प्रकाशहीन भाग हमें काला दिखाई देता है, जिसे चंद्रग्रहण कहा जाता है।
ग्रहण काल में सावधानियां
– ग्रहण काल की अवधि में बाल धोने एवं हजामत करने से बचना चाहिए।
– ग्रहण के बाद का दान अमोघ फलदाई माना गया है। मुद्रा वस्त्र अनाज बर्तन तथा धातुओं आदि के यथासंभव दान से ग्रहण के दुष्प्रभाव में कमी आती है।
– ग्रहण काल में अल्ट्रावायलेट किरणों से भोजन के तत्व विषाक्त हो जाते हैं अत: भोजन एवं जल में कुशा अथवा तुलसी डाल कर रखना चाहिए।
– आंखों के रेटिना पर अल्ट्रावायलेट किरणें घातक असर डाल सकती हैं अत: ग्रहण को नंगी आंखों से ना देखें।
– अर्थात जल में भी ग्रहण की अवधि के दौरान सूर्य-चंद्रमा का प्रतिबिंब नहीं देखना चाहिए।
– ग्रहण वाले दिन शुभ कार्यों का निषेध माना गया है। विशेषत: विद्या अध्ययन प्रारंभ करना सर्वाधिक दोषपूर्ण है।
– ग्रहण का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर शुभ नहीं होता। अत: गर्भवती महिलाओं को ग्रहण काल की अवधि में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। गर्भवती महिलाएं पेट पर गाय के गोबर का पतला लेप लगा कर रहे।
– समस्त प्रकार की समस्याओं के समाधान एवं रोग निवृत्ति हेतु ग्रहण की अवधि में महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाना उचित होता है।
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