रीवा। सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में एक के बाद एक सफल जटिल आपरेशन किए जा रहे हैं। इसी कड़ी में चिकित्सकों ने कैंसर का जटिल आपरेशन किया है। बताया गया कि इस आपरेशन में 23 वर्षीय युवक के पेट से 7 किलो की गांठ निकाली गई है। चिकित्सकों की माने तो सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में मरीज पेट की गांठ की समस्या के साथ आया था, मरीज के पेट में यह गांठ 4 से 5 सालों से थी परंतु पिछले कुछ दिनों से मरीज को पेट में दर्द होना शुरू हो गया था सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल में डॉ.बृजेश तिवारी को दिखाने के बाद जांच कराने की सलाह दी गई। जांच में में यह भी पाया गया की मरीज की दाएं तरफ की किडनी जन्म से ही नहीं थी, साथ ही मरीज का दाएं तरफ का अंडकोष मैं टेस्टिस भी नहीं था। साथ में ही जब खून की जांच कराई गई तो पता चला कि मरीज का दाएं तरफ का अंडा (अंडकोष) में ना होकर जन्म से ही पेट में रह गया था एवं उस अंडे में कैंसर हो चुका था। कैंसर का साइज लगभग 25 बाई 15 सेंटीमीटर का हो चुका था और वह खून की नसों के आसपास भी बुरी तरीके से फैल चुका था मरीज एवं उसके परिजनों को समझाने के पश्चात डॉ.बृजेश तिवारी द्वारा अंडकोष को निकालने का फैसला लिया गया ऑपरेशन दूरबीन द्वारा किया गया एवं लगभग 7 किलो की अंड की कैंसर की गांठ (टेस्टीकुलर कैंसर) को 1 घंटे तक और चले ऑपरेशन द्वारा निकाला गया।
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तीन दिन में किया डिस्चार्ज
चिकित्सकों की माने तो ऑपरेशन के पश्चात मरीज को अगले दिन ही चलने फिरने के लिए कहा गया एवं 3 दिन पश्चात मरीज को डिस्चार्ज कर दिया गया। बताया गया कि अंडकोष की गांठ के कैंसर की रिपोर्ट के बाद उसका आगे का इलाज कैंसर रोग विभाग में किया जाएगा। फिलहाल मरीज पहले से स्वस्थ्य बताया गया है।
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रेयर होता है ऐसा कैंसर
विशेषज्ञ डॉ.बृजेश तिवारी की माने तो इस प्रकार का कैंसर बहुत ही कम लोगों में पाया जाता है। जन्म से ही बच्चों में टेस्टिस का अंडकोष में न होना एक जटिल बीमारी है और इसका मुख्य इलाज ऑपरेशन द्वारा समय रहते अंडों को वापस अंडकोष में फिक्स कर देना होता है, जब यह अंडे अंडकोष में नहीं फिक्स किए जाते हैं तो इनमें कैंसर होने की संभावना होती है ऐसा लाखों लोगों में किसी एक व्यक्ति को होता है। मरीज द्वारा इसके पहले भी रीवा शहर में एवं इसके अलावा अन्य शहरों में अंडे के ना होने की समस्या को दिखाया जाता रहा लेकिन इस बीमारी का पता नहीं चल पाया। इस बीमारी को ढूंढ पाना एवं इसका इलाज अपने आप में ही एक जटिल प्रक्रिया है जिसे सुपर स्पेशलिटी अस्पताल के डॉक्टरों की टीम के सहयोग से उनके द्वारा किया गया है।
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टीम में यह थे शामिल
ऑपरेशन डॉ.बृजेश तिवारी यूरोलॉजिस्ट द्वारा किया गया सहायक में सीनियर रेजिडेंट डॉ.पारस साहू (एनेसथिसिया विभाग)के सहयोग से व डॉ आलोक सिंह, डॉ.सुभाष अग्रवाल, डॉ.रवि प्रकाश का प्रमुख योगदान रहा। इसमें नर्सिंग स्टाफ में अनीता व संध्या सहित टेक्नीशियन वेद प्रकाश व अंकित का योगदान रहा।
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इस तरह होती है बीमारी
चिकित्सकों की माने तो टेस्टीक्यूलर कैंसर टेस्टिकल्स में होता है, जो अंडकोष के अंदर होता है। टेस्टिकल्स का काम पुरुष हॉर्मोन का निर्माण करना और स्पर्म बनाना होता है। अगर पुरुषों को होने वाले अन्य कैंसर से टेस्टीक्यूलर कैंसर की तुलना की जाए तो हमारे देश में पुरुषों को इस कैंसर के होने की संभावना बहुत कम होती है। हालांकि अमेरिका में 15 से 35 की उम्र के पुरुषों में इस तरह का कैंसर होना आम है। टेस्टीक्यूलर कैंसर के लक्षणों की पहचान होते ही तत्काल ईलाज कराना चाहिए।
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वर्जन
मरीज जब दिखाने आए तो कई टेस्ट कराए गए, जिसके बाद मरीज के शरीर में टेस्टीक्यूलर कैंसर की बीमारी मिली, आपरेशन का निर्णय लिया गया और टीम के साथ सफल आपरेशन किया गया। अब मरीज का आगे का ईलाज कैंसर रोग विभाग में होगा।
डॉ.बृजेश तिवारी, यूरोलॉजिस्ट सर्जन सुपर स्पेशलिटी रीवा।
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