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अभय चोरसिया की रिपोर्ट.. n
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भगवान महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग उज्जैन नगरी में स्थित है।
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पावन क्षिप्रा नदी के तट के किनारे स्थित उज्जैन नगरी का प्राचीन नाम अवंतिका था जहां के अंतिम शासक के रूप में महाकाल को जाना जाता है।
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प्राचीन काल से ही उज्जैन नगरी के राजा के रूप में महाकाल विद्यमान है।
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पौराणिक कथाओं और धर्म ग्रंथों के अनुसार उज्जैन का महाकालेश्वर महाकाल का मंदिर 800 से 1000 वषाॆ से भी पुराना मदिर माना जाता है।
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इस मंदिर का निर्माण महाराजा विकमादित्य के शासनकाल में करवाया गया था।
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यह मंदिर अत्यंत प्राचीन महाकालेश्वर महाकाल की नगरी उज्जैन के नाम से प्रसिद्ध था।
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12 ज्योतिर्लिंगों में शामिल महाकालेश्वर की महाकाल भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग दक्षिण मुखी मूर्तिब्रह्म कार रूप में विद्यमान है।
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उज्जैन नगरी की पावन धरती में भगवान श्रीकृष्ण को द्वापर युग में महर्षि संदीपनी के द्वारा शिक्षा प्राप्त हुई थी।
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इसलिए इसे ज्ञान की नगरी भी कहा जाता है।
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उज्जैन नगरी का विस्तार 18 वीं सदी में पूर्ण करवाया गया था।
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आधुनिक कॉरिडोर का निर्माण 2022 मे करवाया गया था जो कि वर्तमान 2023 में बनकर पूरी तरह से तैयार हो चुका है ।
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जिसने महाकाल महाकालेश्वर के दिव्य मंदिर की आभा को चौमुखी विकास उन्नति हुई है।
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आज ही समझते हैं उज्जैन (अवंतिका) और महाकाल के मंदिर निर्माण की ऐतिहासिक एवं पौराणिक कथाएं क्या वर्णन करती हैं ?
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उज्जैन की रहस्य का…!
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महाकाल की नगरी उज्जैन में कोई भी मंत्री यह राजा के पद का व्यक्ति रात्रि विश्राम नहीं कर सकता है।
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प्रारंभिक शासक भी महाकाल को ही माना जाता है।
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है कि संपूर्ण भारत में विक्रमादित्य प्रशासन होने के बावजूद भी विक्रमादित्य का शासन उज्जैन में नहीं था क्योंकि उज्जैन के महाराजा महाकाल हैं।
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यहां तक कि स्वयं प्राचीन काल में महाराज विक्रमादित्य नगरी उज्जैन में नहीं रुका करते थे।
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आइए समझते हैं भस्मारती से जुड़ी कथा व रहस्य को!!!!
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दरअसल भगवान भोलेनाथ को चिता की भस्म अत्यधिक प्रिय है ।
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भगवान भोलेनाथ भूत प्रेत पिशाच इन सबके साथ शमशान में निवास करने वाले अघोर साधना में लीन ऐसे बाबा महाकाल हैं ।
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जो कि स्वयं साक्षात्कार स्वरूप उज्जैन की पावन धरती पर विद्यमान है।
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भारत का ही नहीं अभी तो विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है ।
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जहां प्रातः काल भस्म आरती होती हैं ।
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पौराणिक कथा के अनुसार ,, ब्रह्म मुहूर्त की पावन बेला में प्रतिदिन महाराजा विक्रमादित्य अपने राजमहल से उज्जैन महाकाल मंदिर तक साधारण नागरिक की भगवान महाकाल की आराधना किया करते थे।
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उसमें प्रतिदिन एक चिता की भस्म से बाबा महाकाल की आरती की जाती थी लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया और एक कथा के अनुसार यह मान्यता है,,
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एक बार जो भस्म आरती के लिए कोई भी चिता जल्दी दिखाई नहीं दी बाबा महाकाल की नगरी उज्जैन में तो पुजारी ने अपने बेटे को जिंदा जला दिया और उसके भस्म से बाबा महाकाल की आरती की।
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तब भगवान महाकालेश्वर श्री भूत भवन महादेव महाकाल ने उन पुजारी को वरदान दिया और उसी दिन से कहा कि मुझे चिता की भस्म नहीं।
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चिता से भस्म चाहिए अर्थात् मृत शरीर आवश्यक नहीं है ।
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चिता सजाई हुई लकड़ियों और कंडे से बनी भस्म की आरती अब बाबा महाकाल को की जाती है।
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भस्म आरती में शामिल होने के लिए खादी की धोती पहन कर ही गर्भगृह में प्रवेश प्राप्त हो पाता है।
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भगवान भोलेनाथ को भस्म की आरती प्रातः 4:00 की जाती है।
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उसमें प्राचीन काल में चिता की भस्म से महाकाल की आरती की जाती थी।
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परंतु वर्तमान में चिता की लकड़ी की चीता जो की लकड़ियों को उसकी होती है। उसमें जिंदा लाश नहीं हुआ करती है उसकी भस्म से बम महाकाल का अभिषेक तथा भस्म आरती की जाती है।
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बाबा महाकाल अपने श्रृंगार के लिए विश्व प्रसिद्ध मंदिर है ।
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बाबा महाकाल न जाने कितने रूपों में प्रतिदिन भक्तों को दर्शन देते हैं।
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हर श्रंगार गार के बाद बाबा महाकाल की एक अद्भुत छवि के दर्शन होते हैं और भक्तगण महाकाल के दर्शन कर अपनी मनोकामना को पूर्ण करते हैं।
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प्रत्येक 11 वर्ष के बाद यहां महाकुंभ का आयोजन किया जाता है ।
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इस महाकुंभ पर में करोड़ों की संख्या में लोग दर्शन करने व पावन नदी मां क्षिप्रा की गोद में स्नान करने के लिए भक्तजन आते हैं।
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ज्यादातर युवाओं के सबसे प्रिय देवता बाबा महाकाल को ही माना जाता है।
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यहां बहुत सारे मंदिर है जिनके बारे में एक-एक कर हम आपको विस्तार से जानकारी प्रदान करेंगे।
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भव्य मंदिर कॉरिडोर का निर्माण करवाया गया है उज्जैन में इस भव्य निर्माण से उज्जैन की आभा और यहां टूरिज्म को बढ़ावा मिला है।
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जो कि भारतीय संस्कृतिक विरासत की एक अभूतपूर्व पहचान के रूप में उज्जैन नगरी का नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया।
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इसी प्रकार से मंदिरों के रहस्य से जुड़े हर पहलू और तथ्य के लिए जुड़े रहिए 📰✍️ विंध्य वाणी न्यूज़ 📰✍️के साथ!!