रीवा। शहर हो या गांव, मंदिरों और तालाबों की जमीन लगातार अतिक्रमण की चपेट में आती जा रही है। प्रशासन ऐसे अतिक्रमणों को नहीं हटा पा रहा है, इसी का भरपूर फायदा अतिक्रमणकारी उठा रहे हैं। कुछ मामलों में तो प्रशासनिक अधिकारियों की संलिप्तता भी देखी जा रहा है। यही हाल शहर के अंदर सैकड़ों वर्ष पूर्व से संचालित लक्ष्मणदास कुंडा घाट मंदिर घोघर का भी है। इसकी जमीन पर पिछले करीब 28 वर्ष पहले अतिक्रमण कर लिया गया है। मंदिर के पुजारी की ओर से प्रशासनिक अधिकारियों को दी गई सीमांकन की अर्जी धूल खा रही है। आज तक मंदिर की जमीन का सीमांकन नहीं किया गया ह।
n बताया गया है घोघर स्थित लक्ष्मणदास कुंडा घाट मंदिर में साढ़े सात एकड़ जमीन में से साढ़े छ: एकड़ जमीन का अतिक्रमण कर लिया गया है। जो मंदिर बचे हुए हैं वह धीरे-धीरे खंडहर होते जा रहे हैं।
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इस संबंध में पुजारियों ने कई बार शासन प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कराना चाहा लेकिन राजस्व विभाग के कर्मचारियों ने मंदिर की सुरक्षा करने के बजाय अतिक्रमणकारियों को पट्टे जारी कर दिए। मंदिर में नवनियुक्त पुजारी हीरालाल पाठक ने बताया कि लक्ष्मणदास कुंडा घाट मंदिर में कुल साढ़े सात एकड़ जमीन थी। यह मंदिर लगभग 300 साल पुराना है। इस मंदिर परिसर में काफी भवन तथा बगीचा आदि थे। जिसमें कब्जा कर लिया गया है। पुजारी ने बताया कि इस साढ़े सात एकड़ जमीन में से मंदिर के लिए अब 9 डिसमिल जमीन बची है। पटवारी रिकार्ड में केवल 1 एकड़ 36 डिसमिल दर्शाई गई है।
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मंदिर के अंतर्गत 14 मकान थे जिसे किराए पर दिया गया था। उसका किराया भी मंदिर के नाम पर कोषालय में जमा होता था लेकिन बाद में इन लोगों ने किराया देना बंद कर दिया और राजस्व विभाग के अधिकारियों से मिलकर जमीनों का पट्टा बनवाकर मालिक बन बैठे। वरिष्ठ समाजसेविका डॉक्टर निशा सिंह बघेल ने प्रशासन से मांग करते हुए कहा कि खंडहर पड़ी बाबा घाट मंदिर, लक्ष्मणदास कुंडाघाट मंदिर को संरक्षित किया। बघेलखंड की तमाम धरोहरों को सुरक्षित व संरक्षित नहीं किया गया तो बघेलखंड की बड़ी धरोहरें विलुप्त हो जाएंगी।
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6 वर्ष पूर्व संयुक्त कलेक्टर ने दिया था आदेश
nमंदिर की जमीन के सीमांकन को लेकर वर्ष 2017 में तत्कालीन संयुक्त कलेक्टर ने तहसीलदार नजूल को आदेशित किया था कि मंदिर की जमीन में न्यायालय में वर्ष 1993 से अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही चल रही है। मंदिर परिसर में अतिक्रमणकारियों की सूची भी भेजी गई थी, लेकिन दुर्भाग्य यही रहा है कि इस आदेश का कहीं पालन नहीं किया गया।
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