रीवा। कलफ चढ़ी खादी की चकाचौंध के आगे आरारोट चढ़ी कड़क खाकी की चमक फीकी पड़ गई है। शायद यही वजह है कि पुलिस और फौज के कई अधिकारियों ने नौकरी छोड़कर या फिर रिटायर आने के बाद खादी पहन कर राजनीति में प्रवेश किया। इतना ही नहीं, डॉक्टर, इंजीनियर सहित शिक्षा विभाग के महत्वपूर्ण पदों में बैठे लोग भी अफसरी छोड़ राजनीति को अंगीकार किया। हम रीवा संभाग के संदर्भ में बात करें तो आधा दर्जन पुलिस व आर्मी के अधिकारियों ने राजनीति में पदार्पण किया है। इनमें पुलिस डीजीपी व अमरपाटन विधानसभा के पूर्व विधायक स्व. शिवमोहन सिंह भी शामिल हैं। चिकित्सकों में डॉ आइएमपी वर्मा, राजेंद्र मेश्राम देवसर जबकि पीडब्ल्यूडी के उपयंत्री रहे गोविंद मिश्रा सीधी में सांसद रह चुके हैं।
nगौरतलब है कि पूर्व में डॉक्टर, इंजीनियर व किसी विभाग का अधिकारी होना स्टेट्स सिंबल माना जाता था और समाज में उनकी अलग इज्जत व सम्मान था। ऑफिस के भीतर की बात हो या बाहर, हर जगह उन्हेें लोग सम्मान की दृष्टि से देखते थे। लेकिन समय के साथ बढ़ते खादी की तजुर्बे ने खाकी व अफसरगिरी को गौड़ कर दिया है। यही कारण है कि अब पुलिस, सेना, डॉक्टर इंजीनियर व अन्य सिविल कर्मचारियों और अधिकारियों ने राजनीति को बेहतर मान लिया है। वैसे तो सभी का उद्देश्य जनसेवा ही है लेकिन राजनीति के माध्यम से शार्टकट तरीके से मंत्री, विधायक व सांसद बनने के बाद जिस तरह सरकारी मशीनरी लल्लू बनकर जी हजूरी करती है, उससे लोग भ्रमित हो रहे हैं। यही कारण है कि राजनीति की ओर सरकारी सेवकों का रुझान बढ़ा है।
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nशासकीय सेवा से इस्तीफा देकर विधानसभा चुनाव लड़़कर जीतने का इतिहास भी विंध्य क्षेत्र का रहा है। यहां से डॉक्टर, शिक्षक, पुलिस अधिकारी विधायक बन चुके हैं। कई अभी सक्रिय राजनीति में हैं तो कुछ टिकट की लाइन में हैं। भाग्य आजमा रहे हैं। फौजी लक्ष्मण तिवारी को छोड़ दिया जाय तो सभी किसी न किसी दल से ही सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचे हैं। पूर्व विधायक शिवमोहन सिंह पुलिस के सर्वोच्च अधिकारी पद से रिटायर होने के बाद कांग्रेस से अपना राजनैतिक सफर शुरू किया था। परिवहन विभाग की नौकरी छोड़कर राजेंद्र मिश्रा ने कांग्रेस की सदस्यता ली और गुढ़ विधानसभा से विधायक चुने गए। वहीं विधायक डॉ आईएमपी वर्मा बहुजन समाज पार्टी से विधानसभा के गलियारों में पहुंचे थे। लोग बताते हैं वह मऊगंज में डॉक्टर के पद पर पदस्थ थे। लोगों की मानें तो उन्हें एक बार निलंबित कर दिया गया था। इसके लिए तत्समय के विधायक स्व. अच्युतानंद मिश्रा को जिम्मेदार ठहराते हुए राजनीति में कदम रखा। जब वह बहाल हुए तो डॉक्टरी पेशा से इस्तीफा देकर बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए और नीली आंधी के एक ही झोंके से विधायक बन गए। वह लगातार बसपा तीन बार विधायक चुने गए थे। पूर्व सांसद स्व. भीम सिंह पटेल भी शिक्षक की नौकरी छोड़ कर संसद पहुंचे थे। भाजपा की सदस्यता लेने वाले कई अधिकारी हैं लेकिन अभी सफलता केवल देवसर के पूर्व बीएमओ डॉ राजेंद्र मेश्राम को ही मिली है। राजेंद्र मेश्राम डॉक्टरी छोड़ कर चुनाव लड़े और विधायक बन गए।
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संभाग में पुलिस की नौकरी छोड़ राजनीति में जाने वाले अधिकांश अधिकारी भाजपा के शरणागत हुए हैं। इनमें पूर्व टीआई अखंड प्रताप सिंह, एसडीओपी पन्नालाल अवस्थी ने पुलिस की नौकरी छोड़कर भाजपा ज्वाइन किया था। अखंड प्रताप सिंह मऊगंज विधानसभा से दो बार चुनाव लड़े लेकिन असफल रहे जबकि पन्नालाल अवस्थी चित्रकूट उप चुनाव में दावेदारी में ही असफल हो गए थे। हालांकि पूर्व एडिशनल एसपी डीके मिश्रा नौकरी छोडऩे के बाद समाजवादी पार्टी से 2013 का विधानसभा चुनाव त्योंथर से लड़े थे लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। सीधी के पूर्व सांसद गोविंद मिश्रा ने इंजीनियरी छोड़कर भाजपा ज्वाइन की और वह सांसद भी बने।
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nनौकरी छोड़ यह भी आए राजनीति में
nनौकरी की छोड़कर राजनीति में आने वालों की लंबी फेहरिस्त है। जिन अधिकारियों ने राजनीति में कदम रखा वे रीवा जनपद के पूर्व सीईओ रामायण गौतम, कैप्टन राज द्विवेदी, सहायक शिक्षा अधिकारी रहे रघुवंश पांडेय का नाम भी शामिल हैं। तेज तर्रार दरोगा व डीएसपी पद से रिटायर होने वाले भूपेंद्र यादव ने भी राजनीति की ओर कदम तो जरूर बढ़ाया लेकिन बाद में वापस खींच लिया। वहीं पूर्व एआरटीओ मणिराज साकेत भी राजनीतिक डगर पर चले जरूर लेकिन आगे नहीं बढ़ पाए। हां, एक बार संत रविदास जयंती कार्यक्रम का आयोजन कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को मंच मेें लाकर सुर्खियों में आए थे।
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nयह इंजीनियर भी राजनैतिक दंगल में
nवर्तमान में इंजीनियरों का कुनबा राजनीति में है। इनमें इंजीनियर राजेंद्र शुक्ल चार बार से विधायक व मंत्री, इंजी. राजेेंद्र शर्मा कांग्रेस , इंजी. जयवीर सिंह, इंजी प्रीति वर्मा सहित दर्जनों इंजीनियर हैं जो राजनीति में भविष्य तलाश रहे।