रीवा। एसजीएमएच के ब्लड बैंक का मिस यूज हो रहा है। अस्पताल में भर्ती मरीजों को यहां से ब्लड नहीं मिलता। प्राइवेट से महंगे दाम पर खरीदना पड़ रहा। वहीं प्राइवेट अस्पतालों को सस्ते दर पर थोक में खून भेजा रहा है। प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर सरकारी सिस्टम का पूरा उपयोग कर रहे हैं। वहीं गरीब पिस रहा है।
nसंजय गांधी अस्पताल में संचालित ब्लड बैंक का दुरुपयोग किया जा रहा है। प्राइवेट अस्पताल से मरीजों को ब्लड के लिए यहीं भेजा जाता है। जबकि शहर में एक और भी प्राइवेट ब्लड बैंक संचालित हैं। ऐसा सिर्फ सस्ती दर पर खून मिलने के कारण किया जा रहा है। इस पूरे सिस्टम का यहीं के डॉक्टर बाहर बैठ कर फुल उपयोग कर रहे हैं। प्राइवेट अस्पतालों में सेवाएं देने वाले एसजीएमएच के डॉक्टर मरीजों को फायदा पहुंचाने के लिए ही यहां भेजते हैं। यहां सिर्फ 1 हजार 50 रुपए के प्रोसेसिंग फीस में खून उपलब्ध हो जाता है। यही वजह है कि संजय गांधी अस्पताल के ब्लड बैंक में हर दिन एक दर्जन से अधिक यूनिट ब्लड बाहर जा रहा है। हद तो यह है कि संजय गांधी अस्पताल में भर्ती मरीजों को इसके विपरीत प्राइवेट ब्लड बैंक भेजने के लिए मजबूर किया जाता है। गरीबों से हजारों रुपए वसूला जाता है। इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है।
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nशासन ने फ्री ब्लड का नियम बनाया है
n10 मई को आयुक्त स्वास्थ्य सेवाएं ने आदेश जारी कर कहा था कि सभी शासकीय अस्पतालों में भर्ती होकर उपचार प्राप्त करने वाले सभी मरीजों को रक्ताधान की जरूरत होने पर उन्हें सभी शासकीय ब्लड सेंटरों से नि:शुल्क रक्त एवं कम्पोनेंट दिया जाना अनिवार्य होगा। सभी गर्भवती महिलाओं, गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों एवं हिमोग्लोबिनोपेथरी से प्रभावित मरीजों, ट्रामा व एक्सीडेंट के मामले में रक्ताधान की जरूरत होने पर नि:शुल्क एवं रिप्लेसमेंट फ्री रक्त एवं कम्पोनेंट दिया जाएगा। इस निर्देश और नए नियम को एसजीएमएच में पालन नहीं हो पा रहा है। मरीजों को खून ही नहीं मिलता। प्राइवेट ब्लड बैंक से खरीदना पड़ रहा।
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nहर महीने दर्जनों यूनिट ब्लड फेंका जा रहा
nमरीजों को खून नहीं मिल रहा और ब्लड बैंक से दर्जनों यूनिट खून हर महीने नष्ट कर दिया जाता है। यह सब विभाग के डॉक्टरों की लापरवाही से हो रहा है। मरीजों के परिजनों पर दबाव देकर खून तो निकलवा लिया जाता है लेकिन उन्हें चढ़ाया नहीं जाता। इस दौरान यदि मरीज की मौत हो जाती है तो भी ब्लड बैंक को सूचना नहीं दिया जाता। ब्लड मरीज के नाम से ब्लड बैंक में ही रखा रहता है। बाद में खराब होने पर इसे नष्ट किया जाता है। हाल ही में फिर से कई यूनिट ब्लड नष्ट कराया गया है।
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nरात में करते हैं परेशान
nगायनी विभाग और शिशु रोग विभाग में खून को लेकर सबसे अधिक परिजनों को परेशान किया जाता है। एमरजेंसी बताकर रात में ही दौड़ाया जाता है। जब रात में कहीं से भी खून उपलब्ध नहीं होता तब परिजन को मजबूरी में प्राइवेट ब्लड बंैक का सहारा लेना पड़ता है। महंगी कीमत पर खून खरीदकर लाते हैं। हद तो यह है कि एक साथ कई यूनिट ब्लड की उपलब्धता सुनिश्चित करने का दबाव दिया जाता है।
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nइसलिए एसजीएमच भेजते हैं
nएसजीएमएच के अधिकांश डॉक्टरों की प्राइवेट क्लीनिक और अस्पताल हैं। कई दूसरों के अस्पताल में सेवाएं दे रहे हैं। इनके अस्पताल में भर्ती मरीजों को राहत देने के लिए एसजीएमच भेजा जाता है। यहां सिर्फ 1050 रुपए के प्रोसेसिंग शुल्क में खून आसानी से उपलब्ध हो जाता है। इन्हें किसी तरह की परेशानी नहीं होती। वहीं एसजीएमएच के मरीजों को नि:शुल्क खून उपलब्ध कराना है। यह सुविधा इन्हें नहीं मिलती। 5 हजार रुपए में बाहर से खून खरीदकर लाना पड़ता है।
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